नई दिल्ली, 04 अगस्त । मैंने जितना भी समाज और इतिहास को समझने की कोशिश की, उतना पाया कि हर समय समाज के सामने नई चुनौती पैदा होती रही है। जबकि वर्तमान को देखने पर ऐसा लगता है कि जो चुनौती है वह अनंतकाल से है और आगे भी चलती रहेगी। प्राचीन इतिहास यथा सिंधु सभ्यता के समय भी जो चुनौती थी उसका समाधान खोजा गया। लेकिन तब के रास्ते से वर्तमान का काम नहीं चल सकता है। महावीर के सामने जो नई चुनौती आई तो उन्होंने नया रास्ता खोजा।
इसी तरह बुद्ध के सामने जो नई चुनौती आयी तो उन्होंने भी समस्या के समाधान के लिए नया पथ चुना। ये बातें कहीं दिल्ली सरकार के कैबिनेट मंत्री गोपाल राय ने "वर्तमान संदर्भ में सकारात्मक राष्ट्रवाद की आवश्यकता क्यों" के कार्यक्रम में। दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन ( डीटीए) ने इस कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यकाम भवन में हुआ।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गोपाल राय ने कहा कि अमूमन हमारा संवाद अक्सर आम जनता से अधिक रहता है। लेकिन इस कार्यक्रम में प्रबुद्ध लोगों से संवाद रचनात्मक है। उन्होंने कहा कि मेरी पुस्तक "सकारात्मक राष्ट्रवाद" जो कि अलग-अलग बिंदुओं पर जो मेरे वक्तव्य हैं, उसी का ये संकलन इस पुस्तक में है। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने इलाहाबाद विश्व विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय के अपने छात्र जीवन की कई घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मेरी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट 1992 था। जहां से मेरा कारवां आगे बढ़ता गया। यहीं से मेरे छात्र जीवन का प्रारम्भ हुआ। आज अन्ना आंदोलन से यहां तक पहुंचा हूं। उन्होंने कहा कि आज नकारात्मक राष्ट्रवाद हावी है। उसका प्रतिउत्तर सकारात्मक राष्ट्रवाद से ही दिया जा सकता है। साथ ही कमजोर होते रुपये को भी उन्होंने ऐतिहासिक क्षति बताया और कहा कि देश के युवाओं को वर्तमान समस्या के निदान के लिए जागना होगा। नहीं देश कमजोर हो जाएगा। इसलिए वर्तमान समस्या का समाधान केवल सकारात्मक राष्ट्रवाद से ही संभव है।
उन्होंने केंद्र सरकार के ध्रुवीकरण पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हुए कहा कि इसका उत्तर सकारात्मक राष्ट्रवाद से दिया जा सकता है। गोपाल राय ने कहा कि आपकी जो विचारधारा हो उससे मोहब्बत करिए लेकिन अपने विचार को खुला रखिए। इमोशन को नियंत्रित करते हुए हिम्मत करके उठिए और सकारात्मक राष्ट्रवाद से उसका मुकाबला कीजिए। उन्होंने 1925 में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का जिक्र करते हुए कहा कि पहले आरएसएस की शाखाओं में 30-40 लोग होते थे। लेकिन चुनौती स्वीकारने की उसकी कला से आज वह पहाड़ जैसे संगठन है। इसलिए आज की समस्या जैसी ध्रुवीकरण आदि का समाधान सकारात्मक राष्ट्रवाद से ही संभव है।