शांतिनिकेतन अब वर्ल्ड हेरिटेज

युगवार्ता    09-Oct-2023   
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सऊदी अरब के रियाद में संपन्न यूनेस्को विश्व धरोहर समिति के 45वें सत्र में पश्चिम बंगाल स्थित शांतिनिकेतन को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया गया है। रवींद्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में ही विश्व भारती की स्थापना की थी।


शांतिनिकेतन अब वर्ल्ड हेरिटेजपश्चिम बंगाल में 'लाल माटी के देश' के नाम से मशहूर बीरभूम ज़िले में बसे शांति निकेतन का नाम देश और दुनिया में अनजाना नहीं है। इसे मशहूर बनाया कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर की ओर से स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय ने। कोलकाता से 180 किलोमीटर दूर उत्तर की ओर पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित शांतिनिकेतन ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना अहम योगदान दिया है। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1901 में शांतिनिकेतन में एक छोटे-से स्कूल की स्थापना की तथा 1919 में उन्होंने 'कला भवन' की नींव रखी जो 1921 में स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय का एक हिस्सा बन गया। 5 छात्रों के साथ शुरू उस विश्वविद्यालय में आज भी छात्रों को पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर पढ़ते देखा जा सकता है। दुनिया में आज उस विश्वविद्यालय को विश्वविरासत का दर्जा दिया गया है। भारतीयों के लिए यह गौरव का क्षण है। एक दशक चले अभियान के बाद संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने शांतिनिकेतन को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी है।

विश्वविरासत घोषित होने के बाद शांतिनिकेतन, भारत का 41वां और दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे व सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान के बाद बंगाल का तीसरा विश्व धरोहर स्थल बन गया है। शांति निकेतन का शाब्दिक अर्थ है शांति का निवास यानी वह जगह जहां शांति हो। हालांकि हाल के वर्षों में विश्व भारती विश्वविद्यालय के विवाद के कारण यह शहर अपने नाम के विपरीत ग़लत वजहों से सुर्खियों में रहा। यह शहर केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव का भी केंद्र रहा। बंगाल की कला और संस्कृति का केंद्र कहे जाने वाला यह शहर इतिहास के अनेक गौरवशाली अध्याय का साक्षी रहा है। शांतिनिकेतन की स्थापना भले यहां विश्वविद्यालय की स्थापना के बहुत पहले हुई हो लेकिन रवींद्रनाथ टैगोर की ओर से स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय ने ही इस शहर को वैश्विक पहचान दिलाई। यह दोनों लंबे अरसे से एक-दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। इस शहर को सरकारी कामकाज़ की भाषा में बोलपुर कहा जाता है। इसे हेरिटेज लिस्ट में शामिल करने की कोशिशें तो 2010 में ही शुरू हुईं थीं। लेकिन कामयाबी अब मिली है।

शांतिनिकेतन का नाम बंगाल के इतिहास और संस्कृति से काफ़ी गहरे जुड़ा है। बंगाल के इतिहास और संस्कृति पर कोई भी बहस शांतिनिकेतन के ज़िक्र के बिना अधूरी ही रहेगी।वर्ष 1901 में शांतिनिकेतन में पहली बार एक स्कूल की स्थापना की गई थी। दुनिया भर में मशहूर शांति निकेतन विश्वविद्यालय की स्थापना 1921 में हुई थी। विश्वविद्यालय के संचालन के लिए 1922 में विश्व भारती सोसाइटी का गठन किया गया। कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने इसी सोसाइटी को अपनी पूरी संपत्ति दान दे दी थी। साल 1951 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला था।

इस शहर की स्थापना कविगुरु रवींद्रनाथ के पिता महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर ने 1863 में की थी। तब उस जगह को भुवनडांगा के नाम से जाना जाता था। उन्नीसवीं सदी के मध्य में बोलपुर एक छोटी-सी जगह थी। इस कस्बे का एक हिस्सा रायपुर के सिन्हा परिवार की जमींदारी का हिस्सा था। उसी परिवार के भुवन मोहन सिन्हा ने भुवनडांगा गांव बसाया था। उन्होंने करीब 20 एकड़ जमीन सालाना पांच रुपए की लीज पर ली। उसके बाद वहां एक आश्रम की स्थापना की गई। देवेंद्रनाथ ने उस आश्रम का नाम शांतिनिकेतन रखा था। उसी के आधार पर धीरे-धीरे यह इलाक़ा शांतिनिकेतन के नाम से मशहूर हो गया। कविगुरु रवींद्रनाथ 1878 में पहली बार यहां आए थे। बीसवीं सदी की शुरुआत में यह शहर धीरे-धीरे राज्य की कला और संस्कृति के केंद्र के तौर पर उभरने लगा। यहां आयोजित होने वाला पौष मेला और होली उत्सव भी विश्व भारती विश्वविद्यालय की तरह पूरी दुनिया में मशहूर है। इस दौरान पूरी दुनिया से पर्यटक यहां पहुंचते हैं।

विश्वविरासत घोषित होने के बाद शांतिनिकेतन, भारत का 41वां और दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे और सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान के बाद बंगाल का तीसरा विश्व धरोहर स्थल बन गया है।
शांतिनिकेतन ने भले स्वाधीनता आंदोलन के दौरान कोई बड़ा क्रांतिकारी नहीं पैदा किया हो, लेकिन बंग-भंग और स्वाधीनता आंदोलन में इस शहर की भूमिका बेहद अहम रही। कविगुरु रवींद्रनाथ अपनी रचनाओं के ज़रिए लोगों में अलख जगाने का काम करते रहे। महात्मा गांधी के साथ उनकी पहली मुलाक़ात भी यहीं हुई थी। गांधी जी से कई मुद्दों पर मतभेद के बावजूद कविगुरु ने स्वदेशी आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने 'नाइट' की उपाधि का त्याग कर दिया था। गुरुदेव ने यहीं लिखा था कि 'जोदि तोर डाक सुने केउ ना आसे, तोबे एकला चलो रे'। अर्थात अगर बुलाने पर भी कोई न आये तो अकेले ही चल पड़ो। उनकी यह पंक्तियां सर्वत्र प्रासंगिक हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर ने 1905 में बंग-भंग आंदोलन के दौरान बंगाली आबादी को एकजुट करने के लिए 'बांग्लार माटी, बांग्लार जल' (बंगाल की मिट्टी, बंगाल का पानी) गीत लिखा। उन्होंने मशहूर गीत 'आमार सोनार बांग्ला' भी लिखा। इस गीत ने लोगों में राष्ट्रवाद की भावना मजबूत करने में मदद की। रवींद्रनाथ ने उसी दौरान सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए राखी उत्सव की शुरुआत की। इसमे हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक-दूसरे की कलाई पर रंग-बिरंगे धागे बांधे थे। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के इतिहास विभाग के प्रोफेसर योगेन्द्र सिंह कहते हैं, ''शांति निकेतन को यूनेस्को की सूची में बहुत पहले ही जगह मिल जानी चाहिए थी। लेकिन देर आयद दुरुस्त आया। सांप्रदायिक सद्भाव, संस्कृति और कला के क्षेत्र में इस शहर के योगदान का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है। बंग-भंग और स्वाधीनता आंदोलन में भी इसने अहम भूमिका निभाई थी।

वहीं कोलकाता के रवींद्र भारती विश्वविद्यालय में इतिहास के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हितेंद्र पटेल कहते हैं, ''यह महान कवि चिंतक रवींद्रनाथ टैगोर के सपनों का सम्मान है। शांतिनिकेतन को वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया जाना हमारे लिए गर्व का विषय है।'' शांतिनिकेतन के यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल होने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी खुशी व्यक्त करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, "गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के दृष्टिकोण और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक शांतिनिकेतन को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करना सभी भारतीयों के लिए गर्व का पल है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी खुशी जाहिर की है। ममता बनर्जी ने कहा, विश्व बांग्ला के गौरव, शांतिनिकेतन को कवि ने तैयार किया था। पिछले 12 साल में इसके बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है और अब दुनिया इस धरोहर की महिमा को पहचानती है।

किन स्थानों को किया गया है शामिल

यूनेस्को ने शांतिनिकेतन की कुल 537।37 एकड़ जगह को विश्व विरासती स्थल में शामिल किया है। जिन स्थलों को विश्व विरासती स्थल में शामिल किया गया है, उनमें आश्रम भवन, कला भवन, संगीत भवन, उत्तरायण, उपासना गृह व छातिमतला शामिल हैं। उत्तरायण में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का निवास स्थल है। शांतिनिकेतन के छात्रावास व खेल के मैदान को इससे बाहर रखा गया है। वहां आने वाले समय में जरूरत पड़ने पर नए निर्माण किए जा सकते हैं। हालांकि, उसके लिए विश्वभारती विश्वविद्यालय प्रबंधन को नई कमेटी का गठन करना पड़ सकता है। नए निर्माण की स्थापत्य कला यहां के विरासती महत्व के अनुरूप होनी चाहिए।

शांतिनिकेतन से जुड़ी कुछ खास बातें

टैगोर हाउस

शांतिनिकेतन में रविन्द्रनाथ टैगोर जिस जगह पर सबसे ज्यादा वक्त बिताते थे। उसे टैगोर हाउस के नाम से जाना जाता है। रविन्द्रनाथ टैगोर के पिता देवेन्द्रनाथ ने इस भवन को बनवाया था। बंगाल के आर्किटेक्चर में बनी ये बिल्डिंग वाकई खूबसूरत है। ये इमारत काफी बड़ी और इसमें कई कमरे भी हैं। भवन में कई चित्र और पेंटिंग्स हैं।

कला भवन

शांतिनिकेतन की सबसे खास जगहों में से एक है, कला भवन। ये कल्चर और आर्ट से जुड़ी हुई है। इसी कला भवन में विश्व भारती शिक्षा संस्थान है। रविन्द्रनाथ टैगोर ने ही इसकी स्थापना की थी।

विश्व भारती यूनिवर्सिटी

विश्व भारती यूनिवर्सिटी शांति निकेतन की सबसे खास जगहों में से एक है। यहां पेड़ के नीचे क्लास होती है और विद्यार्थी जमीन पर बैठते हैं। कोर्स भी एकदम अलग होता है। प्रकृति से जुड़कर शिक्षा का महत्व यहां पर समझाया जाता है।

रविन्द्र भारती म्यूजियम

शांति निकेतन के इस संग्रहालय में रविन्द्रनाथ टैगोर की साहित्यिक और कला से लेकर सभी रचनाएं आपको मिल जाएंगी।

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विजय कुमार राय

विजय कुमार राय (वरिष्‍ठ संवाददाता)
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। साल 2012 से दूरदर्शन के ‘डीडी न्यूज’ से जुड़कर छोटी-बड़ी खबरों से लोगों को रू-ब-रू कराया। उसके बाद कुछ सालों तक ‘कोबरापोस्ट’ से जुड़कर कई बड़े स्टिंग ऑपरेशन के साक्षी बने। वर्तमान में ये हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ और ‘नवोत्थान’ के वरिष्‍ठ संवाददाता हैं। इन दिनों देश की सभ्यता-संस्कृति और कला के अलावा समसामयिक मुद्दों पर इनकी लेखनी चलती रहती है।