परिषद की कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं: राजशरण शाही

युगवार्ता    12-Dec-2023   
Total Views |
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजशरण शाही से परिषद के कार्य, छात्र राजनीति से लेकर देश में शिक्षा और राजनीति की वर्तमान स्थिति पर हमारे ब्यूरो प्रमुख गुंजन कुमार  ने विस्तृत बात की। यहां उसके प्रमुख अंश प्रस्तुत हैं।

Rajsharan J.
विद्यार्थी परिषद का 69 वां अधिवेशन कितना और क्यों महत्वपूर्ण है?
यह अधिवेशन कई मायनों में महत्वपूर्ण है। सर्वप्रथम, इस वर्ष विद्यार्थी परिषद के न केवल 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं बल्कि इस साल रिकॉर्ड 50 लाख से ज्यादा युवा सदस्य बने हैं। परिषद पिछले 75 सालों से निरंतर अपने ध्येय और निष्ठा के साथ आगे बढ़ रहा है। हमारा स्पष्ट विजन है। हमारी अब तक की यात्रा परिवर्तनकारी रही है। परिषद के कई आंदोलनों और संघर्षों से समाज में व्यापक परिवर्तन आया है। आज विश्व के सामने कई चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों का समाधान भारत की जीवन पद्धति में ही समाहित है। कोरोना काल के दौरान पूरे विश्व ने इसे माना भी। समाज में मूल्यों का संकट हो या पर्यावरण का इन सभी का समाधान भारतीय संस्कृति से ही निकलता है। विश्व कल्याण के लिए भारतीय जीवन मूल्य पर युवाओं को तैयार करना परिषद की प्रासंगिकता को बरकरार रखता है। इसलिए विद्यार्थी परिषद को सिर्फ भारत के ही नहीं बल्कि विश्व परिप्रेक्ष्य में देखना आवश्यक है।
विद्यार्थी परिषद के 75 साल का कालखंड कितना चुनौतीपूर्ण रहा है?
विद्यार्थी परिषद ने अब तक जो भी मांग उठाई, आज वे सभी पूरी होती दिख रही है। चाहे अनुच्छेद 370 का खात्मा हो या शिक्षा में रचनात्मक बदलाव का अथवा नक्सलवाद व आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई। इसे हम विद्यार्थी परिषद की गौरवगाथा कह सकते हैं। लेकिन इसके पीछे परिषद के युवाओं का लंबा संघर्ष रहा है। हमें अपनी कार्य पद्धति ध्येय और निष्ठा पर भरोसा है। इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि आगे आने वाली चुनौतियों का समाधान भी विद्यार्थी परिषद ही देगी।
वर्तमान सरकार का विजन 2047 तक विकसित भारत व विश्वगुरु बनने का है। इसमें परिषद की भूमिका किस प्रकार की हो सकती है?
स्वामी विवेकानंद हमारे आदर्श हैं। उनका कहना है कि हरेक राष्ट्रका अपना चरित्र होता है। भारत पीछे तब रहा, जब उसने दूसरे के अनुकूल अपने को गढ़ने का प्रयास किया। पश्चिम की संस्कृति, सभ्यता और शिक्षा को आगे कर स्वयं में हीनता का बोध, जब पीछे की सरकारों ने लाया, तब भारत पीछे रहा। विश्व गुरु केवल इस सरकार का नहीं बल्कि सनातन संस्कृति का संकल्प है। दुनिया के देश स्वत: को विश्व की महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। जिसमें दूसरे का दमन, शोषण, दूसरे का अधिकार छिन लिया जाता है। लेकिन भारतीय संस्कृति में कहीं महाशक्ति बनने की बात नहीं है। हम अपनी संस्कृति के संकल्प को आगे बढ़ाते हुए विश्व गुरु बनने की बात करते हैं। क्योंकि गुरु अपनी संपूर्णता के बाद सबको साथ लेकर आगे बढ़ने का भाव होता है।
नई शिक्षा नीति पर परिषद की क्या राय है?
बहुत विचार विमर्श के बाद नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई है। यह छात्र केंद्रित नीति है। मसलन, इस नीति के बाद छात्रों को किसी भी कारण से पढ़ाई छोड़ना पड़ता है तो भविष्य में कभी भी आगे की शेष पढ़ाई कर सकता है। उसने या जितनी पढ़ाई की उतने का डिग्री या सर्टिफिकेट मिल जाएगा। छात्र अपनी पसंद का विषय अपनी स्थानीय भाषा में पढ़ सकता है। छात्र को अपने विषय की पढ़ाई के साथ किसी न किसी स्किल की भी पढ़ाई अनिवार्य है ताकि देश में शिक्षित बेरोजगार न बढ़ सके। बल्कि विश्वविद्यालय और महाविद्यालय रोजगार सृजन का केंद्र बने। इसके क्रियान्वयन में अभी कुछ कमी दिख रही है। साथ ही नई नीति के नाम पर कई स्थानों पर शिक्षा के बाजारीकरण के प्रयास हो रहे हैं, यह ठीक नहीं है।

Rajsharan Joshi 
नई शिक्षा नीति छात्र को स्थानीय भाषा में मेडिकल, इंजीनियरिंग या विज्ञान की पढ़ाई करने की सुविधा तो देती है लेकिन उनकी भाषा में स्टडी मटेरियल उपलब्ध कहां है?
महाराष्ट्र में इंजीनियरिंग की पढ़ाई मराठी में सिर्फ शुरू ही नहीं हुई है बल्कि कंटेंट भी उपलब्ध कराया गया है। मध्यप्रदेश में भी स्टडी मटेरियल हिंदी में उपलब्ध है। गुजरात में गुजराती भाषा में स्टडी मटेरियल उपलब्ध है। नई शिक्षा नीति में विश्वविद्यालय को अपनेयहां ट्रांसलेशन विभाग स्थापित करने को कहा गया है।
आज छात्र अपने भविष्य को लेकर दबाव में है। वह सुसाइड जैसा कदम उठा रहा। कोटा में ऐसी घटना लगातार बढ़ रही है। परिषद इसे कैसे देखती है?
विद्यार्थी परिषद ने पिछले बैठक में इस पर प्रस्ताव पास किया है। इस वर्ष इसे हमलोग अभियान के रूप में ले रहे हैं। हमारा मानना है कि शिक्षा दबाव या तनाव उत्पन्न करने की प्रक्रिया नहीं है बल्कि यह प्रभाव उत्पन्न करने की प्रक्रिया है। लेकिन आज की शिक्षा वास्तव में तनाव उत्पन्न करती है। छात्रों पर एक तो पाठ्यक्रम का दबाव होता है दूसरा, परिवार और समाज का दबाव रहता है। जबकि बच्चों की प्रतिभा को पहचान कर उसे उसके पसंदीदा क्षेत्र में आगे बढ़ने दिया जाए। अगर तेंदुलकर के पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते तो आज सचिन को कोई नहीं जानता।
कई राज्यों में छात्र संघ चुनाव नहीं हो रहे हैं। परिषद इसके लिए क्या कर रहा है?
विद्यार्थी परिषद की मान्यता है कि छात्र राजनीति से नेतृत्व खड़ा होता है। छात्रों में लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास होता है। इसलिए चुनाव अवश्य होना चाहिए। हमारा स्पष्ट मानना है कि छात्र संघ सिर्फ जिंदाबाद-मुर्दाबाद के लिए न हो बल्कि वह निर्णय लेने वाली प्रक्रिया में शामिल हो। छात्र संघ को सीनेट में भी प्रतिनिधित्व दिया जाए। विभिन्न बोर्डों, समितियों में भी उनको प्रतिनिधित्व मिले। ताकि वे एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका में रहे।
मणिपुर पिछले कुछ महीनों से अशांत है। विद्यार्थी परिषद वहां शांति के लिए क्या कोई प्रयास कर रहा है?
मणिपुर की स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। मणिपुर सहित पूरे नॉर्थ ईस्ट में परिषद शील प्रकल्प चलाती है। 'स्टूडेंट एक्सपिरियंस इन इंटरस्टेट लिविंग' मणिपुर ही नहीं पूरे भारत में चलता है। ताकि सभी छात्र एक -दूसरे के भाव को समझे। हमारे कार्यकर्ता मणिपुर में लगातार सभी समुदायों के बीच कार्यकर रहे हैं। साथ ही हमारे लोग वहां के राहत कैंपों में भी काम कर रहे हैं।
परिषद 75 वर्षों के कालखंड में अल्पसंख्यक वर्ग को आकर्षित नहीं कर पाया है। क्यों?
कुछ लोगों ने परिषद को लेकर भ्रम फैलाया था। अब वह भ्रम दूर हो रहा है। हमारे राष्ट्रीय मंत्री कश्मीर के अल्पसंख्यक वर्ग से हैं। हमारे नॉर्थ ईस्ट के बहुत से कार्यकर्ता ईसाई समुदाय से आते हैं। तो यह कहना सही नहीं है। जो हमारे नजदीक आए हैं वही इस भ्रम को तोड़ रहे हैं।
विद्यार्थी परिषद संघ का प्रकल्प है या भाजपा का छात्र संगठन?
परिषद एक स्वायत्त संगठन है। एक छात्र संगठन है। परिषद के किसी कार्यकर्ता की कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। हमारा ध्येय सत्ता परिवर्तन नहीं है। हम जिस परिवर्तन की बात करते हैं, उसमें व्यक्ति निर्माण, व्यक्ति निर्माण से समाज निर्माण और समाज निर्माण से राष्ट्र निर्माण करना है और यह काम एक राजनीतिक व्यक्ति नहीं कर सकता। इसलिए राजनीति से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। संघ से हमारा वैचारिक जुड़ाव है लेकिन सभी एक -दूसरे से स्वतंत्र हैं।
Tags

गुंजन कुमार

गुंजन कुमार (ब्‍यूरो प्रमुख)
प्रिंट मीडिया में डेढ़ दशक से ज्‍यादा का अनुभव। 'दैनिक हिंदुस्तान' से पत्रकारिता का प्रशिक्षण प्राप्त कर 'हरिभूमि' में कुछ समय तक दिल्ली की रिपोर्टिंग की। इसके बाद साप्ताहिक 'दि संडे पोस्ट' में एक दशक से ज्यादा समय तक घुमंतू संवाददाता के रुप में काम किया। कई रिपोर्टों पर सम्मानित हुए। उसके बाद पाक्षिक पत्रिका 'यथावत' से जुड़े। वर्तमान में ‘युगवार्ता’ पत्रिका में बतौर ब्‍यूरो प्रमुख कार्यरत हैं।