मानहानि की सजा

बद्रीनाथ वर्मा    01-Apr-2023
Total Views |

राजनीतिक मर्यादा को ताक पर रखकर मोदी सरनेम पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व वायनाड से सांसद राहुल गांधी द्वारा की गई अपमानजनक टिप्पणी को लेकर आखिरकार उन्हें अपनी सांसदी से हाथ धोना पड़ गया है। राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द किये जाने के बाद से पूरी कांग्रेस भन्नाई हुई है। सदस्यता रद्द हुई है मानहानि की सजा के तौर पर जबकि कांग्रेस इसे मोदी व अडाणी से जोड़कर नया नेरेटिव सेट करने में लगी है। प्रश्न है कि क्या वह इसमें कामयाब हो पायेगी या जिस तरह भाजपा ने इस मामले को ओबीसी के अपमान से जोड़ दिया है उसका खामियाजा कांग्रेस को पहले 5 राज्यों के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ेगा। इन्हीं सब सवालों की पड़ताल करती इस बार की आवरण कथा।

 
rahul ghandi

पने बयानों से एक समाज को अपमानित करने का दोषी सिद्ध होने व सूरत की अदालत द्वारा दो वर्ष की सजा सुनाये जाने के बाद लोकसभा की सदस्यता गंवाने वाले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के समर्थन में पूरी कांग्रेस आंदोलनरत है। भारतीय जनता पार्टी राहुल गांधी पर पूरे ओबीसी समाज को अपमानित करने के लिए कोर्ट द्वारा दंडित किये जाने की बात कह रही है। वहीं, कांग्रेस राहुल की सदस्यता रद्द किये जाने के असली वजहों को छोड़कर यह नेरेटिव सेट करने में लगी है कि अडाणी की जांच जेपीसी से कराने की मांग के चलते उनकी सदस्यता रद्द की गई है। हालांकि सच्चाई यह है कि जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(3) के तहत यदि किसी सांसद या विधायक को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है तो सजा सुनाये जाने के दिन से ही उसकी सदस्यता रद्द हो जाएगी। इतना ही नहीं सजा पूरी होने के बाद 6 साल तक वह व्यक्ति चुनाव भी नहीं लड़ सकता।
 
गांधी परिवार से राहुल गांधी ऐसे दूसरे शख्स हैं जिनकी लोकसभा सदस्यता गई है। इससे पहले 1978 में कर्नाटक की चिकमंगलूर संसदीय सीट से उपचुनाव में जीतीं इंदिरा गांधी की चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के आरोप में सदस्यता रद्द हो गई थी।
दादी इंदिरा के बाद गांधी परिवार से राहुल गांधी ऐसे दूसरे शख्स हैं जिनकी लोकसभा सदस्यता गई है। इससे पहले 1978 में कर्नाटक की चिकमंगलूर संसदीय सीट से उपचुनाव में जीतीं इंदिरा गांधी की चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के आरोप में सदस्यता रद्द हो गई थी। तब भी कांग्रेस ने काफी आक्रामक तेवर अपनाए थे। हालांकि तब वह आक्रामक तेवर काम आया और 1980 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी की अगुआई में पार्टी ने जबरदस्त वापसी की थी। अब देखना ये है कि राहुल गांधी की सदस्यता छिनने के बाद गुस्से से लाल गांधी परिवार को 2024 में कोई लाभ मिलता है या नहीं। राहुल की सदस्यता रद्द होने के साथ ही संसद की वेबसाइट से उनका नाम हटा दिया गया है। लोकसभा के महासचिव उत्पल कुमार सिंह द्वारा जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि सूरत के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद केरल के वायनाड से सांसद राहुल गांधी को संसद की सदस्यता के अयोग्य ठहराया जा रहा है। नोटिफिकेशन में यह भी कहा गया है कि जनप्रतिनिधि कानून 1951 की धारा 8 के अनुसार यह कार्रवाई की गई है।

वहीं, कांग्रेस का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी और उद्योगपति गौतम अडानी के बीच रिश्तों पर सदन में बहस और संयुक्त संसदीय समिति बनाने की मांग के कारण राहुल गांधी को सजा दी गई है। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि सभी जानते हैं कि राहुल गांधी संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह निडर होकर बोलते रहे हैं। वह इसकी कीमत चुका रहे हैं। सरकार बौखला गई है। यह सरकार उनकी आवाज दबाने के लिए नई तरीके खोज रही है। वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया। कांग्रेस का अडाणी व जेपीसी जांच को ढाल बनाना ठीक वैसा ही है जैसे अरविंद केजरीवाल की पार्टी मनीष सिसोदिया की जेलयात्रा को लेकर कर रही है। मनीष सिसोदिया जेल गये हैं शराब घोटाले में जबकि केजरीवाल की पार्टी शिक्षामंत्री के तौर पर किये गये उनके कामों की चर्चा कर रही है।

राहुल सपने में भी सावरकर नहीं बन सकते क्योंकि वीर सावरकर का नाम कट्टर देशभक्ति, निस्वार्थता और मातृभूमि के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है।- अनुराग ठाकुर 

राहुल की संसद सदस्यता खारिज होने के बाद उन्हें कई विपक्षी पार्टियों का समर्थन मिला है। ये वहीं पार्टियां है जो किसी न किसी भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही हैं। समर्थन देने वालों में केजरीवाल की आप से लेकर अखिलेश यादव की सपा व तेजस्वी यादव की राजद तक दर्जनों पार्टियां हैं। कांग्रेस जहां मामले को नया मोड़ देने की कोशिश कर रही है वहीं भाजपा राहुल गांधी से उनके बयानों के लिए माफी की मांग कर रही है। संसद सदस्यता गंवाने के एक दिन बाद प्रेस कांफ्रेंस कर राहुल गांधी ने माफी की मांग पर एक बार फिर अपना पुराना जुमला दोहराया कि मेरा नाम सावरकर नहीं है, मेरा नाम गांधी है और गांधी किसी से माफी नहीं मांगते। मैं भी माफी नहीं मांगूंगा।

राहुल की संसद सदस्यता खारिज होने के बाद उन्हें कई विपक्षी पार्टियों का समर्थन मिला है। राहुल का समर्थन करने वालों में ईडी व सीबीआई से त्रस्त केजरीवाल की आप से लेकर तेजस्वी यादव की राजद तक दर्जनों पार्टियां शामिल हैं। 

राहुल का यह बयान उनके गठबंधन सहयोगी उद्धव ठाकरे को भी पसंद नहीं आया। उद्धव ने राहुल गांधी को चेतावनी दी कि यदि वे इसी तरह वीर सावरकर का अपमान करते रहे, तो इसका असर विपक्षी एकता पर पड़ेगा। उद्धव ठाकरे ने कहा, 'सावरकर ने 14 साल तक अंडमान सेलुलर जेल में अकल्पनीय यातनाएं झेली हैं। हमने उन पर हुए अत्याचार के बारे में केवल पढ़ा ही है। यह बलिदान है। हम सावरकर का अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे। वीर सावरकर हमारे भगवान हैं और उनके प्रति कोई भी अनादर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हम लोकतंत्र के लिए लड़ने को तैयार हैं, लेकिन अपने देवताओं का अपमान करना ऐसी चीज नहीं है जिसे हम बर्दाश्त करेंगे।'

मेरा नाम सावरकर नहीं है, मेरा नाम गांधी है और गांधी किसी से माफी नहीं मांगते। मैं भी माफी नहीं मांगूंगा।–राहुल गांधी
हालांकि राहुल को सबसे माकूल जवाब दिया केंद्रीय सूचना और प्रसारण, युवा कार्यक्रम और खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने। उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट कर राहुल पर तीखा हमला बोला और कहा कि राहुल सावरकर नहीं हैं और न कभी सपने में सावरकर बन सकते हैं क्योंकि वीर सावरकर का नाम धैर्य, दृढ़ संकल्प, भारत के लिए कट्टर देशभक्ति, निस्वार्थता और मातृभूमि के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। अनुराग ठाकुर ने कहा, वीर सावरकर ने न तो साल में छह महीने विदेश में छुट्टियां बिताईं और न ही उन्होंने विदेशी शक्तियों से हस्तक्षेप की मांग की। सावरकर जब इंग्लैंड गए, तो उन्होंने भारत माता को गुलामी से मुक्त करने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का बिगुल फूंक दिया। फांसी से पहले भगत सिंह जिनकी दो-दो किताबों से अपनी डायरी में नोट्स बना रहे थे, उन सावरकर का अपमान कोई नासमझ ही कर सकता है।

उल्लेखनीय है कि 23 मार्च 2023 को सूरत की जिला अदालत ने केरल के वायनाड से सांसद राहुल गांधी को मानहानि के एक मामले में दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई थी। सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद उन्हें जमानत भी दे दी गई। दरअसल, राहुल गांधी ने 13 अप्रैल 2019 को कर्नाटक की एक रैली में भाषण देते हुए कहा था कि नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी इन सभी के नाम में मोदी लगा हुआ है। सभी चोरों के नाम में मोदी क्यों लगा होता है। इसके बाद उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज किया गया था। यह मुकदमा भाजपा नेता पूर्णेश मोदी ने भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत दर्ज कराया जो आपराधिक मानहानि से संबंधित है। 4 साल के बाद अदालत ने मामले में राहुल गांधी को दोषी पाते हुए सजा सुनाई।

अगर सुप्रीम कोर्ट भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखता है तो राहुल गांधी 8 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। इसके साथ ही दो साल तक उन्हें जेल की सजा भी काटनी होगी। इतना ही नहीं, राहुल गांधी को अपना सरकारी बंगला भी खाली करना पड़ सकता है। हालांकि यह गृह मंत्रालय द्वारा उनकी सुरक्षा को लेकर लिए जाने वाले निर्णय पर निर्भर करेगा। यह बात भी दिलचस्प है कि जिस कानून के तहत राहुल गांधी की संसद सदस्यता छिनी है, वह 2013 में खुद उन्हीं के हस्तक्षेप के बाद बना था। तब राहुल गांधी ने तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा लाए जा रहे इस कानून से राहत दिलाने से संबंधित अध्यादेश की कॉपी सार्वजनिक तौर पर फाड़ दी थी। इस लिहाज से यह तर्क वाजिब है कि जिस कानून की हिमायत खुद राहुल गांधी ने इतनी शिद्दत से की थी, उसके लागू होने पर कांग्रेस इतनी हाय-तौबा क्यों मचा रही है।

दरअसल, साल 2013 से पहले जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 8(4) के अनुसार कोई भी सांसद या विधायक दोषी करार दिए जाने के तीन महीने के भीतर फैसले के खिलाफ अपील या रिव्यू पिटीशन दायर कर अपने पद पर बना रह सकता था। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने उक्त धारा को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा को रद्द करने के फैसले के खिलाफ 2013 में केंद्र की तात्कालिक मनमोहन सरकार ने सदन में एक बिल पेश किया था। कानून मंत्री रहे कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने जनप्रतिनिधि एक्ट में बदलाव के लिए उक्त विधेयक पेश किया था। सितंबर 2013 में सरकार ने इसे अध्यादेश के तौर पर लागू करने की कोशिश की। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत दोषी एमपी या एमएलए की सदस्यता फौरन रद्द नहीं हो सकती थी। इसके तहत अपील के बाद अदालत के फैसले तक आरोपित सदस्य सदन की कार्यवाही में शामिल हो सकते थे। उनकी सदस्यता बनी रहती, लेकिन वे वेतन प्राप्त करने और वोट देने के अधिकारी नहीं होते।

27 सितंबर 2013 को इसी अध्यादेश के प्रारंभिक ड्राफ्ट को राहुल गांधी ने भरी प्रेस कांफ्रेंस में नॉनसेंस बताते हुए फाड़ दिया था। तब राहुल ने कहा था कि इस कानून को और मजबूत किए जाने की जरूरत है। बाद में इस अध्यादेश को वापस ले लिया गया था। अब लोगों का कहना है कि यदि राहुल उस बिल को पास हो जाने देते तो आज उनकी संसद सदस्यता पर खतरा नहीं पैदा होता। बहरहाल, राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म होने के बाद से कांग्रेस में बौखलाहट मची हुई है। इस बीच कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने एक ऐसा बयान दे दिया जिससे भाजपा को हमला करने का एक और मौका मिल गया। तिवारी ने कहा कि राहुल गांधी के परिवार के लिए कानून अलग होना चाहिए। उन्होंने कहा कि दोषी ठहराने में कानून बराबर होना चाहिए लेकिन सजा देने के लिए कानून अलग होना चाहिए। जब किसी को दोषी ठहराया जाता है तो उसमें किसी का परिवार या किसी की पृष्ठभूमि नहीं देखी जाती बल्कि अपराध देखा जाता है। लेकिन जब सजा देने की बात आती है तो उसमें आदमी का चाल चलन, उसका स्तर, पारिवारिक पृष्ठभूमि देखी जानी चाहिए। उनके इस बयान की आलोचना होने के बाद भी अपने बयान पर कायम रहते हुए प्रमोद तिवारी ने दोबारा ट्वीट कर कहा कि गांधी परिवार को दोषी ठहराने के लिए नहीं परन्तु सजा देने के मामले में दो प्रधानमंत्री की शहादत, राहुल गांधी का सांसद होना, पहली बार अपराध करना, कोई आपराधिक इतिहास न होने के कारण अलग कानूनी नजरिए से देखना चाहिए।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा के नवीन जिंदल ने कहा कि इतनी बड़ी चाटुकारिता कौन करता है। वहीं, भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट कर करारा हमला बोला और कहा कि गांधी परिवार के लिए अलग कानून की मांग करने वाले लोग कल अलग देश की मांग भी कर सकते हैं। उन्होंने ट्वीट में लिखा गांधी परिवार के लिए इन्हें आज अलग कानून चाहिए, कल अलग न्यायालय चाहिए, फिर अलग संसद चाहिए फिर कहीं ये अलग देश की मांग भी कर सकते हैं। यही कांग्रेस पार्टी का असली चाल, चरित्र और चेहरा है। बहरहाल, अगर राहुल को कोर्ट से राहत नहीं मिली तो वे 2024 और 2029 का चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। लेकिन कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि भाजपा ने इस मामले को ओबीसी के अपमान से जोड़ दिया है जिसका खामियाजा कांग्रेस को पहले 5 राज्यों के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है।

अध्यादेश नहीं फाड़ते तो बच जाती सांसदी

अब जबकि राहुल गांधी की सांसदी जा चुकी है तो इसके लिए जिम्मेदार कानून को चुनौती दी गई है। इस मामले में अगर राहुल गांधी ने साल 2013 में हस्तक्षेप नहीं किया होता तो आज उनके खुद के अलावा कई सांसदों और विधायकों की सदस्यता छिने जाने से पहले कुछ वक्त मिल जाता। उल्लेखनीय है कि साल 2013 में कांग्रेस नेता अजय माकन सुप्रीम कोर्ट द्वारा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा को रद्द करने के फैसले के खिलाफ मनमोहन सरकार द्वारा लाए जा रहे अध्यादेश की जानकारी पत्रकारों को दे रहे थे। इसी दौरान राहुल गांधी आए और बीच प्रेस कांफ्रेंस अध्यादेश की कॉंपी फाड़ दी। उन्होंने कठोर कानून बनाए जाने की वकालत की थी। यूपीए सरकार द्वारा लाए जा रहे इस अध्यादेश से दोषी ठहराए गए सांसदों-विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए तीन महीने की राहत दी जा रही थी। चर्चा थी कि इस अध्यादेश को राजद सुप्रीमो लालू यादव को राहत देने के लिए लाया जा रहा था। राहुल गांधी के इस फैसले के बाद यूपीए सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया और अगले साल 2014 में सरकार बदल गई।

तीन बार माफी मांग चुके हैं राहुल

सावरकर नहीं हूं। मैं गांधी हूं। माफी नहीं मांगूंगा कहने वाले राहुल गांधी अब तक तीन बार माफी मांग चुके हैं। अगर मोदी सरनेम मामले पर भी राहुल ने माफी मांग ली होती तो शायद उनकी संसद की सदस्यता रद्द न होती। ऐसा नहीं है कि इससे पहले उन्होंने कभी माफी नहीं मांगी। राहुल अबतक तीन बार माफी मांग चुके हैं। 2013 में अपनी ही सरकार के अध्यादेश की कॉपी फाड़ने के लिए साल 2018 में गलती मानते हुए माफी मांग ली थी जिससे इस केस से मुक्त हुए थे। इसके बाद साल 2018 में राफेल मुद्दे पर गलतबयानी में फंसे राहुल ने 2020 में माफी मांग ली थी। इसके बाद 2019 में उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के लिए 'चौकीदार चोर है' का जो नारा लगाया था, उसके लिए सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने तीन बार माफीनामा पेश किया था और लिखा था कि वो बिना शर्त अपने इस गलत बयान के लिए माफी मांगते हैं।

Tags