टाइगर को टाइगर का साथ

युगवार्ता    24-Apr-2023   
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बाघों पर खतरे को देखते हुए 50 साल पहले प्रोजेक्ट टाइगर शुरू हुआ था। इसके सकारात्मक प्रभाव का ही नतीजा है कि आज भारत में दुनिया के करीब 75 प्रतिशत बाघ रहते हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने बाघों की नवीनतम संख्या दुनिया के सामने रखी।
Project Tiger 
भारतीय बाघ आजकल खूब दहाड़ रहे हैं। किसी को डराने के लिए नहीं बल्कि खुशी में। वह खुश हों भी क्यों न। आखिरकार उनका परिवार बढ़ जो रहा है। लेकिन एक समय था, जब बाघों पर खतरा मंडरा रहा था। 50 साल पहले इस खतरे को भांपते हुए ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ शुरू किया गया। इसका सकारात्मक असर पड़ा। रॉयल बंगाल टाइगर का कुनबा विस्तार तीन हजार से आगे बढ़ गया है। पिछले ही दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'प्रोजेक्ट टाइगर' के 50 साल पूरे होने पर आयोजित एक कार्यक्रम में आंकडें को रखा। इसके बाद दुनिया भर में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की तारीफ हो रही है।
दरअसल, बेजुबान वन्य जीवों पर दशकों से खतरा मंडरा रहा है। इनकी अवैध तस्करी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होती है। जिसके कारण शिकारी वन्य जीवों को अवैध रूप से मार कर लाखों-करोड़ों कमाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक वन्य जीवों की अवैध तस्करी का अंतरराष्ट्रीय कारोबार हजारों करोड़ रुपए का है। इसी कारण एक सच्चाई यह है कि भारत में वर्ष 1947 में आखिरी बार किसी चीते को देखा गया था। इसके बाद वर्ष 1952 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने भारत में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया। चीता जैसा खतरा बाघों पर भी मंडराने लगा था। लेकिन समय रहते सरकार बाघों पर मंडराते खतरे को लेकर सचेत हो गई। जिस कारण आज भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा बाघ पाये जाते हैं। लेकिन कई वन्य जीव यहां चीता की तरह ही विलुप्त हो चुके हैं। इनमें से कुछ को अन्य देशों से भारत लाकर पोषित किया जा रहा है। आज भारत पर पूरी दुनिया गर्व महसूस कर रही है। क्योंकि भारत ने वह कर दिखाया है, जिसका लंबे समय से इंतजार था। लंबे समय बाद जंगलों के सबसे बलशाली जीवों में से चार जीव (शेर, बाघ, चीता और तेंदुए) एक साथ भारत में मौजूद हैं।
जुलाई 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वैश्विक नेताओं से वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए गठबंधन का आह्वान किया था। ताकि एशिया में अवैध शिकार एवं अवैध वन्यजीव व्यापार पर दृढ़ता से अंकुश लगाया जा सके। 9 अप्रैल को प्रधानमंत्री के मैसूर दौरे के दौरान यह गठबंधन भी जमीन पर उतर गया। प्रधानमंत्री मोदी ने मैसूर से ही इंटरनेशनल बिग कैट्स एलायंस (आईबीसीए) की शुरुआत की। आईबीसीए दुनिया की सात प्रमुख बिल्ली प्रजाति की सबसे बड़ी बिल्लियों- बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, प्यूमा, जगुआर और चीता के संरक्षण और संवर्द्धन पर ध्यान केंद्रित करेगा। यह सब हुआ भारत में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के 50 साल पूरे होने पर। प्रधानमंत्री ने मैसूर विश्वविद्यालय में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के 50 साल पूरे होने पर आयोजित एक कार्यक्रम का उद्घाटन किया और भारत में बाघों की नई संख्या की जानकारी पूरी दुनिया को दी। उनके रखे आंकड़ों के मुताबिक भारत में बाघों की संख्या पिछले चार वर्षों में 200 बढ़ी है।
भारत में बाघों की संख्या बढ़कर यह आंकड़ा 2022 में 3,167 तक पहुंच गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर जारी आंकड़ों के अनुसार, देश में 2006 में बाघों की संख्या 1411 थी। इसके चार साल बाद 2010 में यहां बाघों की संख्या बढ़कर 1706 हो गई। 2014 में इसका ग्राफ और ऊपर गया और संख्या दो हजार को पार कर गयी। तब बाघों की कुल संख्या 2,226 थी। 2018 में 2,967 बाघ हुए। अब यानी साल 2022 में बाघों की संख्या 3,167 तक पहुंच गई। इस कार्यक्रम से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बांदीपुर बाघ अभयारण्य में घूमे। वहां उन्होंने जीप सफारी की। अभ्यारण्य में वन्य जीवन, वहां की प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता को भी बहुत नजदीक से निहारा। प्रधानमंत्री ने ‘अमृत काल का टाइगर विजन’ नाम की एक पुस्तिका का विमोचन भी किया। इस पुस्तिका में देश में बाघों के संरक्षण को लेकर अगले 25 वर्षों का एक गंभीर दृष्टिकोण पेश किया गया है। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘भारत ने न केवल बाघों की आबादी को घटने से बचाया है बल्कि बाघों को फलने-फूलने के लिए एक बेहतरीन इकोसिस्टम भी प्रदान किया है।’

Project Tiger 2 
प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत भारत में एक अप्रैल 1973 को हुई थी। वैसे इसकी नींव 1969 में पड़ी थी। उस वर्ष दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की एक बैठक चल रही थी। बैठक में एक आईएफएस अधिकारी ने बाघों की हत्या पर एक बहुत ही मार्मिक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए इनके संरक्षण को आवश्यक बताया था। उसके बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने डॉ कर्ण सिंह की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया। इस टास्क फोर्स ने सितंबर 1972 में अपनी रिपोर्ट इंदिरा गांधी को सौंपी। डॉ कर्ण सिंह की रिपोर्ट में भी बाघों के संरक्षण को जरूरी बताया गया था। उसके बाद भारत में पहले पांच साल के लिए बाघों के शिकार को प्रतिबंधित कर दिया गया। 1 अप्रैल 1973 को इंदिरा गांधी ने औपचारिक रूप से जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क से ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की शुरुआत की। उस समय तत्कालीन केंद्रीय पर्यटन मंत्री डॉ कर्ण सिंह ने आशंका जताते हुए कहा था, ‘अगर मौजूदा हालात को नहीं बदला गया तो हमारे बच्चे जब बड़े होंगे तो बाघ नहीं देख पाएंगे।’ इंदिरा गांधी ने उस समय इसके लिए 4 करोड़ का फंड दिया था। आज 50 साल बाद इस प्रोजेक्ट का फंड बढ़कर 500 करोड़ रुपए हो गया है।
इसके शुरू होने के समय देश में नौ बाघ अभयारण्य थे। यह 18,278 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था। वर्तमान समय में देश में कुल 53 बाघ अभयारण्य हैं। इन अभयारण्यों के पास 75,000 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल है। यह देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का तकरीबन 2.4 प्रतिशत क्षेत्र है। बाघों के आंकड़ों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक और बड़ा ही दिलचस्प आंकड़ा देश के सामने प्रस्तुत किया। प्रधानमंत्री ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा, ‘भारत की आजादी के 75वें वर्ष में दुनिया की 75 प्रतिशत बाघों की आबादी भारत में ही रहती है। साथ ही यह भी एक सुखद संयोग है कि भारत में बाघ अभयारण्य 75,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर फैले हैं। यही नहीं पिछले दस से बारह वर्षों में अपने देश में बाघों की आबादी 75 प्रतिशत बढ़ी है।’
बाघों के इस गर्व करने वाली संख्या तक पहुंचने के लिए अभियान चलाया गया था। इस अभियान में विभिन्न प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को शमिल किया गया। उनसे अपील की गई कि वे अपने-अपने प्रदेश में गंभीरता से इसके लिए कार्य करें। मुख्यमंत्रियों के अलावा कई बड़े सेलिब्रेटी को भी इस अभियान से जोड़ा गया था। मसलन, अमिताभ बच्चन जैसे कई सेलिब्रेटी इस अभियान से जुड़े हुए थे। अभियान के तहत संरक्षण में आ रही चुनौतियों और कमियों पर ध्यान केंद्रीय किया गया। अलग-अलग रिपोर्ट तैयार की गई। इसमें यह भी अध्ययन किया गया कि बाघों को बचाने के लिए क्या-क्या करने की जरूरत है। इन सबका परिणाम यह रहा कि कुछ राज्यों में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत अच्छे परिणाम देने के लिए सकारात्मक प्रतियोगिता होने लगी। जैसे वर्ष 2014 में कर्नाटक सबसे ज्यादा बाघों की आबादी वाला राज्य था। उस वर्ष बाघ जनगणना के अनुसार राज्य में 408 बाघ थे। लेकिन अगली जनगणना में कर्नाटक से सबसे अधिक बाघ होने का ताज छिन कर मध्य प्रदेश को मिल गया। यानी इस दौरान मध्य प्रदेश ने इसको लेकर और बेहतर कार्य किया। 2018 के बाघ जनगणना में 526 बाघों के साथ मध्य प्रदेश सबसे आगे हो गया। वहीं कर्नाटक और उत्तराखंड क्रमश: 524 और 442 बाघों के साथ दूसरे और तीसरे स्थान पर थे। मध्य प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा दिलाने में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तब इस टाइगर रिजर्व में 124 बाघ थे। बांधवगढ टाइगर रिजर्व को बाघों की वंशवृद्धि में विशेष स्थान मिला हुआ है।

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कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में विलुप्त हो चुके चीता को विदेश से मंगाया तब जाकर युवा पीढ़ी को पता चला कि इस भूमि पर मौजूद चीते खत्म हो चुके हैं। इसमें तनिक भी मतभेद नहीं है कि यदि प्रोजेक्ट टाइगर शुरू नहीं होता तो शायद चीते जैसी हालत बाघों की भी होती। ऐसे भी इस प्रोजेक्ट के शुरू होने से लेकर 2006 तक इनके आंकड़ें ऊपर-नीचे होते रहे हैं। हां, 2006 से इसमें लगातार वृद्धि जरूर हो रही है। प्रोजेक्ट शुरू होने के वर्ष 1972 में इनकी संख्या 1800 थी। 1984 में बाघों की संख्या 4000 से ऊपर चली गई। जबकि इसके अगले 22 वर्षों में (2006 में) बाघ फिर घटकर 1411 ही रह गये थे। भारत और बाघों को लेकर एक सच्चाई या भी है कि 19वीं सदी की शुरुआत में अपने देश में 40,000 से ज्यादा बाघ हुआ करते थे। इस आंकड़ें तक अब पहुंचना लगभग नामुमकिन सा हो गया है। क्योंकि विशेषज्ञ भी जंगलों के क्षेत्रफल को देखते हुए यहां बाघों की अधिकतम संख्या 40,000 से बहुत कम बताते हैं।
 
आंकड़ों की जुबानी
- भारत में दुनिया के 8 प्रतिशत वन्यजीव पाए जाते हैं।
- विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के मुताबिक
वैश्विक स्तर पर अवैध वन्यजीव व्यापार, नशीले पदार्थों, मानव तस्करी और नकली उत्पादों के बाद चौथा सबसे बड़ा संगठित अपराध है।
- डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के आंकडेंÞ बताते हैं कि वन्यजीवों
का अवैध व्यापार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तकरीबन 1500 करोड़ पाउंड का है।
- संयुक्त राष्ट्र कार्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार 120 देशों में पिछले एक दशक में वन्यजीव की हजारों प्रजातियों की कम से कम 1,32,144 बरामदगी की गई।
- जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन साइट्स (उकळएर) का सदस्य होने के बावजूद भारत वर्तमान में वन्यजीव तस्करी में शीर्ष 20 देशों में से एक है। यही नहीं हवाई मार्ग द्वारा वन्यजीव तस्करी में भारत शीर्ष 10 देशों में से एक है।
- राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के स्मगलिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2020-21 के अनुसार, भारत से बाहर तस्करी में जब्त किये गए सबसे आम वन्यजीव और वन्यजीव उत्पाद में हाथी दांत, कछुए और लाल चंदन हैं।
- फिलहाल भारत से गैंडे के सींग के अवैध व्यापार में गिरावट आई है। देश तेजी से पैंगोलिन के अवैध शिकार और तस्करी का एक प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है। यहां बाघ के अंगों का व्यापार भी बेरोकटोक जारी है।
- सोशल मीडिया एप्प्स पर खुलेआम वन्यजीवों का अवैध व्यापार होता है।
- बंगाल टाइगर के संकटग्रस्त प्रजातियों में होने के बावजूद सोशल मीडिया पर बाघ के शावकों को बिकने के लिए उपलब्ध देखा जा सकता है।
- करीब डेढ़ दशक पहले बाघों से जुड़ी एक रिपोर्ट ने सबको चौंकाया था। वन अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने चौंकाने वाला खुलासा करते हुए तब एक जानकारी दी थी कि कभी बाघों से गुलजार रहने वाले राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाघ, चीता जैसे वन्य जीव खत्म हो चुके हैं।
- 2009 में एक और खुलासा किया गया कि मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व से बाघ गायब हो गए हैं।
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विमोचित पुस्तिका ‘अमृत काल का टाइगर विजन’ में बेशक अगले 25 वर्षों के लिए देश में बाघों के संरक्षण पर दृष्टिकोण पेश किया गया है। लेकिन यदि विशेषज्ञों की मानें तो अगले 50 साल इसके संरक्षण की चुनौती कम नहीं है। विशेषज्ञ मानते हैं कि जन केंद्रित नीतियों के कारण बाघों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। कंजर्वेशन एक्शन ट्रस्ट के कार्यकारी ट्रस्टी देबी गोयनका के मुताबिक बाघों के ठिकाने और कॉरिडोर सड़क-रेल और दूसरे अन्य प्रोजेक्ट से नष्ट हो रहे हैं। आज जंगल की भूमि पर अतिक्रमण बढ़ा है। इसलिए इन बेजुबानों के लिए और ज्यादा सोचना होगा। वहीं प्रसिद्ध जीवविज्ञानी एवं भारतीय वन्यजीव संस्थान के पूर्व डीन वाईवी झाला कहते हैं कि अभी कई और काम होने बाकी हैं। कुछ क्षेत्रों में बाघों की संख्या में वृद्धि के परिणामस्वरूप मनुष्यों के साथ संघर्ष बढ़ने की संभावना है। बाघों के संरक्षण के लिए सबसे सटीक रणनीति यह हो सकती है इनके अभयारण्यों से ग्रामीण आबादी का स्वैच्छिक पुनर्वास करना। हालांकि बहुत सारे गांव बाहर जाने के लिए तैयार हैं लेकिन धन उपलब्ध नहीं है।
बाघों के संरक्षण के लिए सबसे सटीक रणनीति यह हो सकती है इनके अभयारण्यों से ग्रामीण आबादी का स्वैच्छिक पुनर्वास करना। हालांकि बहुत सारे गांव बाहर जाने के लिए तैयार हैं लेकिन धन की कमी आड़े आ रही है।
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गुंजन कुमार

गुंजन कुमार (ब्‍यूरो प्रमुख)
प्रिंट मीडिया में डेढ़ दशक से ज्‍यादा का अनुभव। 'दैनिक हिंदुस्तान' से पत्रकारिता का प्रशिक्षण प्राप्त कर 'हरिभूमि' में कुछ समय तक दिल्ली की रिपोर्टिंग की। इसके बाद साप्ताहिक 'दि संडे पोस्ट' में एक दशक से ज्यादा समय तक घुमंतू संवाददाता के रुप में काम किया। कई रिपोर्टों पर सम्मानित हुए। उसके बाद पाक्षिक पत्रिका 'यथावत' से जुड़े। वर्तमान में ‘युगवार्ता’ पत्रिका में बतौर ब्‍यूरो प्रमुख कार्यरत हैं।