विवादों के घेरे में

युगवार्ता    12-Jun-2023   
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फिल्म फरहाना को लेकर कुछ मुस्लिम संगठन विरोध कर रहे हैं और फिल्म में प्रतिबंध लगाने की मांग भी कर रहे हैं। इन सबके बावजूद फिल्म पर स्त्री संघर्ष को अच्छे से प्रदर्शित करती है।
फरहाना
फरहाना एक तमिल भाषी फिल्म है, जिसका हिंदी रूपान्तरण हुआ है। इसके निर्देशक नेल्सन वेंकटेशन हैं। कलाकार के रूप में ऐश्वर्या राजेश, जीतन रमेश, सेल्वाराघवन, अनमोल, किट्टी हैं। फिल्म की कहानी एक मुस्लिम परिवार की मान्यताओं, परम्पराओं में बँधी लड़की फरहाना की है, जो परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए क्रेडिट कार्ड कम्पनी में नौकरी करना शुरू करती है। जैसे ही स्थिति सामान्य होने लगती है, तो उसके बच्चे का स्वास्थ्य अत्यधिक खराब हो जाता है। जिसके इलाज के लिए उसे पैसों की आवश्यकता होती है। इलाज के पैसे जुटाने के लिए वह अपने कार्यस्थल पर दूसरे विभाग में काम करना शुरू करती है। यहां उसे ज्यादा वेतन मिलता है, लेकिन काम में तब्दीली होने के कारण वह असामान्य महसूस करने लगती है।
फरहाना की असहजता का कारण कॉलगर्ल के रूप में पुरुषों से बात करना होता है, इसके लिए उसे अतिरिक्त वेतन दिया जाता है। काम के शुरुआती दौर में वह असहज हो जाती है, लेकिन कुछ समय बाद उसके काम में बेहतर प्रदर्शन देखने को मिलता है। जिसका कारण एक पुरुष का उसकी ओर आकर्षित होना होता है। वह फरहाना को इशिता के रूप में पाकर उससे घंटों बातें करता है जिससे फरहाना की काम के प्रति असहजता दूर होने के साथ-साथ आर्थिक लाभ में भी सहायक सिद्ध होता है। फरहाना भी उस पुरुष की बातों से प्रभावित होने लगती है और वह कम्पनी के नियम तोड़ उससे बाहर मिलने का प्रयास करती है। उसकी यह भावनात्मक कमजोरी उसके लिए नई समस्या को आमंत्रित करती है। जिसके बाद अनजान कॉलर उसे अन्य तरीकों से परेशान करने लगता है। इस तरह फिल्म में फरहाना के आंतरिक एवं बाहरी संघर्षों को प्रस्तुत किया है।
फरहाना के रूप में ऐश्वर्या राजेश की भूमिका सराहनीय है। एक पारम्परिक, रूढ़िवादी परिवार की महिला के पारिवारिक एवं कामकाजी स्थल पर होने वाली समस्याओं से लड़ते हुए दिखाया गया है। अनजान कॉलर के रूप में सेल्वा राघवन की भूमिका बेहद प्रभावशाली है। स्वच्छंद महिला के रूप में सोफिया (ऐश्वर्या दत्ता) बेहद खूबसूरत नजर आयी हैं। कम समय में ये दर्शकों पर अपना प्रभाव बनाने में सफल दिखाई देती है। फरहाना के पति के रूप में जीतन रमेश का किरदार दयालु व्यक्ति के रूप में दिखाई देता है। वह व्यवहार से बेहद शांत और गंभीर व्यक्ति है। परिवार की रूढ़िवादी मान्यताओं के बीच इनका व्यवहार अपनी पत्नी व बच्चों के प्रति बेहद नरम होता है। परिवार में सबके विरोध के बावजूद वह फरहाना को नौकरी करने की इजाजत देता है। साथ पूरा सहयोग भी करता हैं। जिसमें बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी अत्यंत सराहनीय है।
किसी भी सम्बन्ध में संवाद का होना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। संवाद के आभाव में रिश्ता जड़ होने लगता है, जिससे बाहरी तत्व अपना प्रभाव जमाने में कामयाब हो जाते हैं। बाहरी तत्व के प्रभाव को फरहाना के वैवाहिक संबंध के जरिये दिखाया गया है। फरहाना का वैवाहिक जीवन केवल जरूरतों से संबंधित होता है। जहां उसके और उसके पति के बीच संवाद का विषय केवल घर की आवश्कताओं से जुड़ा होता है। इसके अलावा दोनों कभी भावनात्मक रूप से बात नहीं कर पाते हैं। फरहाना की इसी भावनात्मक जरूरत का फायदा उसका एक कॉलर उठाता है। जिसके बाद वह समस्याओं में उलझती चली जाती है।
फिल्म की कहानी का शुरुआती आधा भाग जितना रोचक एवं वास्तविक नजर आता है, अंत उतना ही बनावटी प्रतीत होता है। जो कहानी की कमजोरी के साथ -साथ कलाकारों के प्रदर्शन को फीका कर देता है। फिलहाल फिल्म को लेकर कुछ मुस्लिम संगठन विरोध कर रहे हैं और फिल्म में प्रतिबन्ध लगाने की मांग कर रहे हैं। इन सब के बावजूद फिल्म स्त्री संघर्ष को अच्छे से प्रदर्शित करती है।
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संगीता झा

संगीता झा, फिल्‍म समीक्षक  
आप दिल्‍ली विश्‍वविघालय में हिंदी साहित्‍य के शोधार्थी हैं। फिल्‍म समीक्षा लेखन में आपकी विशेष रूचि है। आप पिछले तीन सालों से युगवार्ता पत्रिका के लिए नियमित लिख रहे हैं।