श्री अन्न, योग और आयुर्वेद से बची करोड़ों जानें

युगवार्ता    19-Jun-2023   
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कोरोना काल में अगर करोड़ों लोगों की जानें बच गईं तो उसका कारण है हमारा पारंपरिक अनाज और चिकित्सा पद्धति। इसलिए हमें अपने पारंपरिक अनाज श्री अन्‍न और योग, आयुर्वेद, होमियोपैथ, सिध और युनानी जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति पर और अधिक ध्यान देने और विश्वास करने की जरूरत है।
श्री अन्‍न फाइल फोटो
एक कहावत है- ‘घर का जोगी जोगरा, आन गांव का सिध।’ यह कहावत श्री अन्‍न, योग और आयुर्वेद पर चरितार्थ होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि श्री अन्‍न, योग और आयुर्वेद घर का जोगी है, जिसे अपने घर में कोई महत्व नहीं दिया जाता, वहीं दूसरे देश की पैथी एलोपैथी को किसी भी बीमारी में सिध माना जाता है। जबकि श्री अन्‍न, योग और आयुर्वेद किसी भी मामले में एलोपैथ से कमतर नहीं बल्कि बेहतर है। कारोना काल में यह सिद्ध भी हुआ है। किसी बीमारी से उबरने में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का सबसे महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए जिनकी इम्यूनिटी अच्छी थी वो कोरोना से जल्दी उबर गए। भारत के परंपरागत खाद्य पदार्थ और देशी काढ़े का सेवन कम खर्च में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में बेहद उपयोगी सिद्ध हुआ है। श्री अन्‍न (कांगणी/काकुम, कोदो, कुटकी, मुरात एवं सांवा) और सप्तपत्र (दूब घास, तुलसी, गिलोय, बेल, कलिंग, नीम और पीपल के पत्ते) काढ़ा के द्वारा मिलेट मैन डॉ खादर वली ने हजारों कोरोना संक्रमितों को स्वस्थ किया है। व्‍यक्ति के स्‍वस्‍थ रहने में अन्‍न का विशेष योगदान होता है। कहा भी जाता है- फूड इज मेडिसीन यानी भोजन ही दवा है। श्री अन्‍न या मिलेट पर यह बात सौ फीसदी सही बैठती है। लेकिन यह विडंबना ही है कि इतने पोषणयुक्‍त अनाज की खूबियों से हम अनजान हैं।
कहने की आवश्‍यकता नहीं है कि कोरोना काल में अगर करोड़ों लोगों की जानें बच गईं तो उसका कारण है हमारी पारंपरिक श्री अन्‍न और पारंपरिक चिकित्सा पद्धति। लोगों ने इसे अपनाकर जान बचाई है। श्री अन्‍न के भोजन ने कोरोना काल में न केवल लोगों को स्‍वस्‍थ किया, बल्कि सिर्फ काढ़ा पीकर लाखों लोगों की जान बच गई। वस्तुत: यह मानसिकता का सवाल है, जो हमारे अंदर गहरे बैठ गया है कि हमारा पारंपरिक अनाज श्री अन्‍न, योग और आयुर्वेद कारगर नहीं है। इस मामले में हमारी सरकारों का व्यवहार भी सौतेला रहा है, इसलिए कोरोना के इलाज में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को छोड़ एलोपैथ को मुख्य फ्रंट पर लगाया गया। जबकि हमारी सरकार को कोरोना से लड़ने के लिए मुख्य फ्रंट पर श्री अन्‍न, योग और आयुर्वेद को लगाना चाहिए था। कहने की आवश्यकता नहीं कि मोदी सरकार के आने के बाद केंद्र सरकार ने श्री अन्‍न, योग और आयुर्वेद की बेहतरी के लिए काम करना शुरू कर दिया है। यह विडंबना ही है कि श्री अन्‍न जैसे पोषक अनाज को हम गरीब आदमी का भोजन मानते हैं। और हम अमीरों की नकल कर चावल और गेहूं खाने लगे हैं। यह चावल और गेहूं बीमारियों का घर है। वहीं श्री अन्‍न या मिलेट का भोजन हमें कई असाध्‍य बीमारियों से न केवल निजात दिलाता है बल्कि हमें बीमारियों से दूर भी रखता है।
अबतक हाशिये पर रहा हमारा पारंपरिक अनाज श्री अन्‍न और हमारी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को मुख्य धारा में लाने का काम भी मोदी सरकार ने किया है। वर्ष 2023 को अंतरराष्‍ट्रीय मिलेट (श्री अन्‍न) वर्ष घोषित करवाने का श्रेय मोदी सरकार को ही जाता है। गौरतलब है कि अंतरराष्‍ट्रीय मिलेट वर्ष (वर्ष 2022-23) में भारत ने देश में 21 मिलियन टन मिलेट उत्‍पादन का लक्ष्‍य निर्धारित किया है। श्री अन्‍न को मुख्‍य धारा में लाने के लिए मोदी सरकार श्री अन्‍न की खेती को बढ़ावा दे रही है। साथ ही लोगों से श्री अन्‍न को मुख्‍य भोजन के रूप में अपनाने के लिए अपील भी कर रही है।
 
योग चक्र
21 जून को विश्व योग दिवस घोषित करवाने में मोदी सरकार के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। मोदी सरकार ने अलग से आयुष मंत्रालय बनाकर योग, आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी, सिद्ध जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों पर ध्यान देना शुरू किया है। इतना ही नहीं इस मंत्रालय के लिए सरकार ने साल 2019 में लगभग 1939.761 करोड़ का बजट भी आवंटित किया है। इस बजट से सरकार की मंशा का भी पता चलता है कि वह पारंपरिक चिकित्सा पद्धति की बेहतरी के लिए कितनी सजग है। इसके बावजूद मोदी विरोधी तत्व मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना ने हमारे यहां लाखों लोगों को निगल लिया। गत वर्ष इटली, स्पेन और अमेरिका जैसे विकसित देशों में जहां भारत से कई गुणा बेहतर चिकित्सा व्यवस्था है, इसके बावजूद वहां काफी लोगों की जान गई। हमारे यहां बेहतर चिकित्सा व्यवस्था नहीं है लेकिन फिर भी हमने कोरोना महामारी का जमकर मुकाबला किया। कुछ लोगों का अनुमान था कि कोरोना से करोड़ों लोगों की जान जाएगी, लेकिन यह लाखों तक ही सिमट कर रह गई। तो इसकी मुख्य वजह हमारा पारंपरिक अनाज और पारंपरिक चिकित्सा पद्धति रही है।
कोरोना संकट से निकालने के लिए योग की भूमिका उल्लेखनीय है। कोरोना संकट से निकलने में प्राणायाम एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। एस व्यासा से लेकर पतंजलि योग पीठ तक इस महामारी से निकलने में प्राणायाम की महत्ता को रेखांकित किया है। देश के कई प्रमुख योगाचार्य ने प्राणायाम को कोरोना भगाने में कारगर बताया है। कपालभाति प्राणायाम, अनुलोम-विलाम प्राणायाम, उज्जायी प्राणायाम और भ्रामरी प्राणायाम कोरोना वायरस को दूर भगाने सफल रहा है। कोरोना काल ने यह प्रमाणित किया है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि श्री अन्‍न, योग और आयुर्वेद ने करोड़ों लोगों की जान बचाई है। इसलिए अगर हम अपने जीवन में पारंपरिक अन्‍न श्री अन्‍न और योग, आयुर्वेद, होमियोपैथ, सिध, यूनानी जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को आत्मसात कर लें तो सिर्फ कोरोना महामारी ही नहीं, भविष्य में हमारे जीवन में किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी।

आयुर्वेद  
दादी-नानी के रामबाण नुस्खे
हमारे यहां घरेलू उपचार यानी दादी-नानी के नुस्खे परंपरा से चले आ रहे हैं। इन नुस्खों से लोग उपचार करते चले आ रहे हैं। कहने की आवश्यकता नहीं ये उपचार काफी कारगर होते हैं। इन उपचारों के लिए किसी वैद्य या हकीम के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ती। उपचार बताने के लिए वैद्य होती हैं- हमारी दादी और नानी। और नुस्खे के लिए औषधि हमारे रसोईघर में मिल जाते हैं। घंटे-दो घंटे के अंदर कोई भी मर्ज काफूर हो जाता है। हमारे यहां अगर किसी बच्चे को खांसी हो तो शहद चटाने और कच्चे लहसुन को सरसों तेल में उबालकर हल्के गर्म तेल का मालिस करने का नुस्‍खा प्रचलित है। बच्‍चे को पेट दर्द हो तो हींग को पानी के साथ नाभी पर लगाने या जौंगी पिलाने या अजवाइन की पोटली की सेक रामबाण साबित होती है। दांत दर्द हो तो लौंग के तेल की मालिस या दांत के पास लौंग मुंह में रखना फायदेमंद है। कान में दर्द हो तो प्याज का रस या कच्चे लहसुन को सरसों तेल में उबालकर तेल को ठंडा होने पर दो-चार बूंद रखने पर आराम मिलता है। ऐसे हजारों नुस्खे हैं जो हमारी परंपरा में आज भी प्रचलित हैं। आज भी हमारे बुजुर्ग कहा करते हैं कि यदि स्वास्थ्य ठीक रखना है तो पेट का ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि जैसे ही पेट खराब हुआ या कब्ज हुआ तो वहीं से बीमारियों का प्रारंभ हो जाता है। पेट को सही रखने के लिए वे गर्मियों में बेल को दिन में दो बार बतौर फल या दवाई सेवन करने की सलाह देते हैं। क्योंकि पेट की बीमारियों के लिए बेल से बढ़िया रामबाण औषधि दूसरा कोई नहीं है। और इससे लगभग साल भर हमारा पेट निरोग रहता है। किसी विदेशी विशेषज्ञ का मानना था कि कोरोना संक्रमण से भारत के लगभग 30 करोड़ लोग मारे जाएंगे। लेकिन हमलोगों ने बिना किसी दवाई के सिर्फ काढ़ा पीकर कोरोना को मात दी है। कारण यह था कि कोरोना की कोई दवा नहीं है लेकिन प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाकर हम कोरोना के प्रभाव को खत्म कर सकते हैं। हमारे यहां काढ़ा इसके लिए रामबाण है। इसलिए लोगों ने प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने के लिए अदरक, सौंठ, कच्ची हल्दी, दाल चीनी, काली मिर्च, लौंग और नीबू आदि को मिलाकर पानी में उबाल कर दो-तीन बार काढ़ा पीया। प्रतिरोधक शक्ति बढ़ने से कोरोना का संक्रमण नष्ट हो जाता है। इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण तो शायद किसी के पास नहीं है, मगर अनुभव के आधार पर इसके सैकड़ों प्रमाण हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण को नष्ट करने में भाप लेना और गरारे करने की भी अहम भूमिका रही। और यह हमारे पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का अभिन्न हिस्सा है। गले में खरास है या जुकाम की वजह से नाक जाम हो रहा है तो हमारे यहां गर्म पानी में सेंधा नमक डालकर गरारे करने और गर्म पानी का भाप लेने परंपरा है।
ऐसा नहीं है कि ऐसे घरेलू उपचार सिर्फ हमारे यहां ही हैं, बल्कि पूरे विश्व में इस तरह के उपचार प्रचलित हैं। हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, लॉस एंजिलिस में पुरानी उपचार पद्धति का एक बहुत बड़ा दवाखाना बनाया है। ‘आर्काइव ऑफ हीलिंग’ नाम से एक अनूठा संग्रहालय है, जहां 10 लाख से अधिक नुस्खों और दवाइयों को एकत्रित किया गया है। इस अनोखे पुरानी उपचार पद्धतियों के संकलन के पीछे माइकल ओवन्स जोन्स और डेविड शौर्टर प्रयास है। गौरतलब है कि इस अर्काइव ऑफ हीलिंग में दिल्ली के हमदर्द का खांसी का नुस्खा ‘जोशांदा’ और हरिद्वार के पतंजलि संस्थान के तेल ‘केश कान्ति’ का होना हमारे लिए गौरव की बात है।
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संजीव कुमार

संजीव कुमार (संपादक)
आप प्रिंट मीडिया में पिछले दो दशक से सक्रिय हैं। आपने हिंदी-साहित्य और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है। आप विद्यार्थी जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भी जुडे रहे हैं। राजनीति और समसामयिक मुद्दों के अलावा खोजी रिपोर्ट, आरटीआई, चुनाव सुधार से जुड़ी रिपोर्ट और फीचर लिखना आपको पसंद है। आपने राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा की पुस्तक ‘बेलाग-लपेट’, ‘समय का सच’, 'बात बोलेगी हम नहीं' और 'मोदी-शाह : मंजिल और राह' का संपादन भी किया है। आपने ‘अखबार नहीं आंदोलन’ कहे जाने वाले 'प्रभात खबर' से अपने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत की। उसके बाद 'प्रथम प्रवक्ता' पाक्षिक पत्रिका में संवाददाता, विशेष संवाददाता और मुख्य सहायक संपादक सह विशेष संवाददाता के रूप में कार्य किया। फिर 'यथावत' पत्रिका में समन्वय संपादक के रूप में कार्य किया। उसके बाद ‘युगवार्ता’ साप्तहिक और यथावत पाक्षिक के संपादक रहे। इन दिनों हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ पाक्षिक पत्रिका के संपादक हैं।