नये भारत की संसद

बद्रीनाथ वर्मा /गुंजन कुमार    05-Jun-2023
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लोकतंत्र का मंदिर नया संसद भवन 21वीं सदी के भारत की जरूरतों को दृष्टिगत रखते हुए तैयार किया गया है। भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली की शक्ति हमारी संसद में दिखती है और भारत की लोकतांत्रिक भावना का प्रतीक संसद भवन सेंट्रल विस्टा के केंद्र में है। इस नवनिर्मित भवन को अगर नये व सशक्त भारत का पॉवर सेंटर कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
नये भारत की संसद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 मई को नए संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित किया। संयोग से 28 मई को वीर सावरकर की जयंती भी थी। स्पीकर ओम बिरला ने 18 मई को पीएम मोदी से मुलाकात कर उन्हें नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया था। संसद को लोकतंत्र के मंदिर की संज्ञा मिली हुई है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में संसद भवन ही वह जगह है जहां से देश का भविष्य आकार लेता है। नया संसद भवन 21वीं सदी के भारत की जरूरतों को दृष्टिगत रखते हुए तैयार किया गया है। इसमें पर्यावरण संरक्षण का ध्यान रखा गया है तो आधुनिकता के साथ भारत की विरासतों का संगम भी है। नया संसद भवन भव्यता के साथ ही स्थापत्य कला का शानदार उदाहरण है। भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली की शक्ति हमारी संसद में दिखती है और भारत की लोकतांत्रिक भावना का प्रतीक संसद भवन सेंट्रल विस्टा के केंद्र में है। देश की वर्तमान संसद औपनिवेशिक युग का भवन है। इसका निर्माण 1921 में शुरू किया गया था और 1927 में तैयार हुआ। इस तरह यह लगभग 100 साल पुराना हो चुका है।
नया संसद भवन 65 हजार वर्गमीटर के विशाल इलाके में मौजूदा संसद भवन के पास त्रिभुजाकार डिजाइन में बनाया गया है। इसे बेहतर स्पेस मैनेजमेंट के लिए भूकंपरोधी सिस्टम के मुताबिक जेड और जेड प्लस लेवल की सुरक्षा पुख्ता करने वाला बनाया गया है। नए संसद भवन में इको फ्रेंडली ग्रीन कंस्ट्रक्शन के जरिए 30 फीसदी बिजली खपत को कम किया जा सकेगा। इसका निर्माण 150 साल तक की जरूरतों को पूरा करने के हिसाब से किया गया है। पुराने संसद भवन की तुलना में इसमें कुल सिटिंग क्षमता 150 फीसदी से भी अधिक है। इसमें सेंट्रल हाल नहीं होगा। 3015 वर्ग मीटर एरिया में निर्मित लोकसभा चेंबर में 543 सीट की जगह 888 सीट होगी। इसे राष्ट्रीय पक्षी मोर की थीम पर बनाया गया है। राष्ट्रीय फूल कमल की थीम पर राज्य सभा कुल 3,220 वर्ग मीटर एरिया में बना है। इसमें 245 की जगह 384 सदस्यों के बैठने की जगह है।
नया संसद भवन भारतीयता की सुगंध से सुवासित है। यह हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना, लोक-कल्याण की भावना, उत्कृष्ट मानवीय मूल्यों व सनातन की सात्विक मर्यादाओं का प्रतिनिधित्व करता है। यह सच्चे अर्थों में 'एक भारत-श्रेष्ठ भारत' की समेकित तस्वीर है। -योगी आदित्यनाथ, सीएम, उत्तर प्रदेश
 
उल्लेखनीय है कि इस अति अत्याधुनिक संसद के नवनिर्मित भवन को गुणवत्ता के साथ रिकॉर्ड समय में तैयार किया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसका शिलान्यास 10 दिसंबर 2020 को किया था और विपक्ष के तमाम अवरोधों को पार करते हुए निर्माण कार्य 15 जनवरी 2021 से शुरू हुआ था। नई जरूरतों को देखते हुए पुरानी बिल्डिंग अब उपयुक्त नहीं रह गई थी क्योंकि जगह कम होने के चलते सांसदों को न सिर्फ बैठने में दिक्कत हो रही थी बल्कि पुरानी इमारत में आधुनिक सुविधाओं और तकनीक का भी अभाव था। नया संसद भवन आत्मनिर्भर भारत का शानदार उदाहरण है। अगर इस नवनिर्मित भवन को नये व सशक्त भारत का पॉवर सेंटर कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसमें गौरवशाली अतीत के ढेर सारे सुनहरे पन्नों को सहेजा गया है। इन्हीं में से एक है सेंगोल अर्थात राजदंड। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से 9वीं शताब्दी तक एकछत्र राज करने वाले चोल साम्राज्य का यह प्रतीक चिन्ह अब संसद में प्रतिष्ठापित किया गया है। सेंगोल को एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता हस्तानांतरण के प्रतीक के तौर पर प्रदान किया जाता था। इस राजदंड के शीर्ष पर भगवान शिव के द्वारपाल व वाहन नंदी की मूर्ति उत्कीर्ण है। नंदी को धर्म के साथ न्याय का प्रतीक माना जाता है।
बहरहाल, आत्मनिर्भर भारत की लोकतांत्रिक भावना का प्रतीक नया संसद भवन राष्ट्र के शक्तिपुंज सेंट्रल विस्टा के केंद्र में अवस्थित है। राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक तकरीबन तीन किलोमीटर की सड़क का नवीनीकरण, एक सामान्य केंद्रीय सचिवालय का निर्माण, प्रधानमंत्री का एक नया कार्यालय और आवास तथा एक नया उपराष्ट्रपति एन्क्लेव भी केंद्रीय लोक निर्माण विभाग द्वारा पूरी की जा रही इस परियोजना का हिस्सा हैं। लोकसभा अध्यक्षों अर्थात मीरा कुमार ने 13 जुलाई 2012, सुमित्रा महाजन ने 9 दिसंबर 2015 और ओम बिरला ने दिनांक 2 अगस्त 2019 को लिखे अपने पत्र में सरकार से संसद के लिए नए भवन के निर्माण का अनुरोध किया था। उम्मीद है कि जुलाई के तीसरे हफ्ते में शुरू होने वाले संसद के मॉनसून सत्र की कार्यवाही नए भवन में ही शुरू की जाएगी। हालांकि इस बारे में अभी तक कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है।
पुरानी इमारत की तरह ही नई बिल्डिंग में भी लोकसभा और राज्यसभा के लिए दो अलग-अलग चेंबर हैं। लोकसभा चेंबर में जहां एक साथ 888 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था की गई है। वहीं राज्यसभा के चेंबर में एक साथ 384 सदस्य बैठ सकेंगे। पुरानी बिल्डिंग में संयुक्त सत्र का आयोजन सेंट्रल हॉल में किया जाता था। लेकिन नई इमारत में इसका आयोजन लोकसभा चेंबर में किया जाएगा जिसमें जरूरत पड़ने पर एक साथ 1272 सांसद बैठ सकेंगे। इसके अलावा इस बिल्डिंग में भारत की लोकतांत्रिक विरासत, भोजन क्षेत्र और पर्याप्त पार्किंग स्थान के अलावा एक भव्य संविधान कक्ष भी है। नए संसद भवन में सांसदों, वीआईपी और मेहमानों के लिए तीन अलग-अलग प्रवेश द्वार बनाए गए हैं। इन तीनों द्वारों के नाम ज्ञान द्वार, शक्ति द्वार और कर्म द्वार हैं। इसी के साथ दोनों सदनों के कर्मचारी अब नई वर्दी पहनेंगे जिसे निफ्ट यानी नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ फैशन टेक्नोलॉजी द्वारा डिजाइन किया गया है। संसद भवन की बिल्डिंग चार मंजिल की बनाई गई है। इसके निर्माण पर 970 करोड़ रुपये की लागत आई है।
pm modi
पुराने संसद भवन को पूर्ण लोकतंत्र के लिए द्विसदनीय विधायिका को समायोजित करने के लिए डिजाइन नहीं किया गया था बल्कि मूल रूप से ‘हाउस ऑफ पार्लियामेंट’ कही जाने वाली इस इमारत में ब्रिटिश सरकार की विधान परिषद काम करती थी। इसे ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने डिजाइन की थी। 1971 की जनगणना के आधार पर किए गए परिसीमन पर आधारित लोकसभा सीटों की संख्या आज भी 545 पर स्थिर है। 2026 के बाद इसमें काफी वृद्धि होने का अनुमान है क्योंकि नये सिरे से परिसीमन होना है जिससे सीटें बढ़ेंगी। नए संसद भवन के लिए वन विभाग, जीएनसीटी दिल्ली, से जामुन के 13 पेड़ों सहित 404 पेड़ों के प्रत्यारोपण की अनुमति प्राप्त की गई थी। इन पेड़ों को इको-पार्क में प्रत्यारोपित किया गया और इनमें से 80 फीसदी से अधिक पेड़ जीवित हैं। इसके अलावा ईको पार्क, एनटीपीसी बदरपुर में क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण के रूप में 4,040 नये पेड़ लगाए गए।
 
हर देश की विकास यात्रा में कुछ पल ऐसे आते हैं, जो अमर हो जाते हैं। कुछ तारीखें इतिहास में अमिट छाप छोड़ जाती हैं। आज का दिन और आज की तारीख यानी 28 मई, 2023 ऐसा ही अवसर लेकर आया है। यह सिर्फ एक भवन नहीं है। बल्कि यह देश के 140 करोड़ देशवासियों के सपनों का प्रतिबिंब है। यह हमारे लोकतंत्र का मंदिर है। -नरेन्द्र मोदी, पीएम
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना को लेकर मोदी सरकार को काफी सारी आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है। विरोधी इस प्रोजेक्ट को रद्द कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक दस्तक दे चुके हैं। उनकी दलील थी कि इस प्रोजेक्ट पर खर्च की जा रही रकम को लोगों के कल्याण के लिए खर्च किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2021 में सरकार को इस नवीनीकरण प्रोजेक्ट पर काम करने की मंजूरी दी थी। इसमें नए संसद भवन के निर्माण को भी मंजूरी दी गई। इसके पूर्व दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी 31 मई 2021 को सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के चल रहे निर्माण कार्यों के खिलाफ दायर एक याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने इस जनहित याचिका को निर्माण कार्य रोकने का अवैध मकसद करार दिया था। कुल मिलाकर नया संसद भवन नए और आत्मनिर्भर भारत की कहानी बयां करता नजर आ रहा है। दुनिया में शायद ही कहीं भी किसी बड़ी संसद ने एक ही बार में इस पैमाने पर खुद को नया रूप दिया हो जितना की भारत की संसद के नए भवन में हुआ है। इसमें दो राय नहीं कि सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना नये भारत के संकल्प का एक मील का पत्थर साबित हुई है। इसी के साथ यह मानने से किसी को गुरेज नहीं करना चाहिए कि पीएम मोदी ने भारतीय राजनीति में एक बार फिर नई लकीर खींच दी है। उनकी यही खासियत है कि पहले की लकीर को काटकर छोटा किये बिना वे अपनी लंबी लकीर खींचने में यकीन करते हैं। इस प्रक्रिया में पुरानी लकीर खुद-ब- खुद छोटी हो जाती है। ये तथ्य उनके विरोधी भी स्वीकार करते हैं और इतना तो आप भी मानेंगे कि इतना बड़ा कद उसी का हो सकता है जिसका व्यक्तित्व पारदर्शी हो और जिसकी कथनी और करनी में कोई फर्क ना हो।
नये संसद भवन से जुड़े कुछ तथ्य
2 त्रिकोणीय आकार के चार मंजिला संसद भवन का निर्माण क्षेत्र 64,500 वर्गमीटर है। इस इमारत के तीन मुख्य द्वार-ज्ञान द्वार, शक्ति द्वार और कर्म द्वार हैं। इसमें वीआईपी सांसदों और आगंतुकों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार हैं।
2 वर्तमान संसद की लोकसभा में जहां अधिकतम 552 लोग जबकि सेंट्रल हॉल में 436 लोग ही बैठ सकते थे, वहीं नई लोकसभा में 888 एवं नई राज्यसभा में 384 लोगों के बैठने की व्यवस्था है।
2 नए संसद भवन के निर्माण में उपयोग की गई सामग्री देश के विभिन्न हिस्सों से लाई गई है। इसमें प्रयुक्त सागौन की लकड़ी महाराष्ट्र के नागपुर से, जबकि लाल और सफेद बलुआ पत्थर राजस्थान के सरमथुरा से लाया गया है। हरा पत्थर उदयपुर से, तो अजमेर के पास लाखा से लाल ग्रेनाइट और सफेद संगमरमर अंबाजी राजस्थान से मंगवाया गया है।
2 अशोक चिह्न के लिए सामग्री महाराष्ट्र के औरंगाबाद और राजस्थान के जयपुर से लाई गई थी, जबकि संसद भवन के बाहरी हिस्सों में लगी सामग्री को मध्य प्रदेश के इंदौर से मंगाया गया था। पत्थर की नक्काशी का काम आबू रोड और उदयपुर के मूर्तिकारों द्वारा किया गया था।
2 लोकसभा और राज्यसभा कक्षों में ‘फाल्स सीलिंग’ के लिए स्टील की संरचना केंद्र शासित प्रदेश दमन और दीव से मंगाई गई है, जबकि नए भवन के लिए फर्नीचर मुंबई में तैयार किया गया था।
2 नए संसद भवन में निर्माण गतिविधियों के लिए ठोस मिश्रण बनाने के लिए हरियाणा के चरखी दादरी में निर्मित रेत या ‘एम-रेत’ का इस्तेमाल किया गया। ‘एम रेत’ एक प्रकार की कृत्रिम रेत है, जिसे बड़े सख्त पत्थरों या ग्रेनाइट को बारीक कणों में तोड़कर बनाया जाता है और जो नदी की रेत से अलग होती है।
2 निर्माण में इस्तेमाल की गई ‘फ्लाई ऐश’ की ईंटें हरियाणा और उत्तर प्रदेश से मंगवाई गई थीं, जबकि पीतल के काम के लिए सामग्री और ‘पहले से तैयार सांचे’ गुजरात के अहमदाबाद से लाए गए थे।
एक नजर में नया-पुराना संसद भवन

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मास्टर आर्किटेक्ट बिमल पटेल
नये संसद भवन का डिजाइन तैयार करना कोई आसान काम नहीं था। वैसे भी जिस कार्य की निगरानी स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर रहे हों, उसमें छोटी कमी को भी छुपाया नहीं जा सकता है। साथ ही संसद जैसे महत्वपूर्ण निर्माण कार्य में इतिहास बोध, आधुनिकता, आत्मनिर्भरता, भारतीय संस्कृति, पर्यावरण संरक्षण, तकनीक, सुरक्षा आदि का संगम करना बेहद टेढ़ी-खीर है। इस टेढ़ी-खीर को अंतत: एचसीपी डिजाइन नामक कंपनी के मास्टर आर्किटेक्ट बिमल पटेल ने अपने कंधों पर उठाया। एचसीपी डिजाइन कंपनी यह कहें बिमल पटेल का यह कोई पहला प्रोजेक्ट नहीं है। इन्होंने देश भर में कई प्रसिद्ध एवं बड़े प्रोजेक्ट को डिजाइन किया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर, अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट, पुरी में जगन्नाथ मंदिर की मास्टर प्लानिंग, आईआईटी अहमदाबाद, कांकरिया लेक फ्रंट का रीडेवलपमेंट, दिल्ली में कर्तव्यपथ आदि शामिल है। दिल्ली का सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को भी इन्होंने ही डिजाइन किया है, कर्तव्यपथ एवं नया संसद इसी का हिस्सा है। बिमल पटेल के पुराने कामों को देखते हुए ही प्रधानमंत्री मोदी ने नये संसद का डिजाइन तैयार करने का जिम्मा भी इन्हें सौंपा। हालांकि कुछ राजनीतिज्ञों का आरोप यह भी है कि इन्हें बड़े प्रोजेक्ट गुजरात का होने के कारण मिला है। इस तरह के आरोप एक बेहतरीन प्रोफेशनल्स के लिए शोभा नहीं देता है। क्योंकि बिमल पटेल अपने बेहतरीन कार्यों से देश-दुनिया में चर्चित हुए हैं। बिमल पटेल का पूरा नाम बिमल हसमुख पटेल है। इनका जन्म गुजरात में हुआ है। इनकी शुरुआती शिक्षा सेंट जेवियर्स स्कूल से हुई है। बिमल बचपन में एक वैज्ञानिक बनना चाहते थे। लेकिन कहा जाता है कि उनके स्कूल के एक टीचर ने उन्हें आर्किटेक्चर में अपना भविष्य बनाने के लिए कहा। उक्त शिक्षक की बात इन्हें सही लगी। इसलिए 12 वीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए इन्होंने आर्किटेक्चर को चुना। इसके लिए इन्होंने सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीईपीटी) में प्रवेश के लिए परीक्षा दी। उस प्रवेश परीक्षा में बिमल ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। यहां से आर्किटेक्चर में डिप्लोमा की डिग्री लेने के बाद इन्होंने आर्किटेक्चर में मास्टर्स, सिटी प्लानिंग में मास्टर्स और बर्कले यूनिवर्सिटी आॅफ कैलिफोर्निया से सिटी एंड रीजनल प्लानिंग में शोध भी किया। पढ़ाई के बाद इन्होंने 1990 में अपने पिता के साथ काम करना शुरू किया। इनका पहला प्रोजेक्ट अहमदाबाद में ‘द एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट’ के लिए डिजाइन तैयार करना था। उस डिजाइन को काफी प्रशंसा मिली। आज इनके पास इस क्षेत्र में 35 साल से ज्यादा का अनुभव है। इन्हें अपने क्षेत्र में बेहतरीन कार्य करने के लिए कई पुरस्कार भी मिले हैं। इनमें 2001 में वर्ल्ड आर्किटेक्चर अवार्ड, 2002 में प्रायमिनिस्टर नेशनल अवार्ड फॉर एक्सीलेंस इन अर्बन प्लानिंग एंड डिजाइन, 1998 में यूएन सेंटर फॉर ‘मन सेटलमेंट्स अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस और 2019 में पद्मश्री जैसे पुरस्कार शामिल हैं। इनके पिता हसमुख पटेल भी एक प्रसिद्ध आर्किटेक्ट थे। इन्होंने ही साठ के दशक में एचसीपी डिजाइन नाम से डिजाइन कंपनी बनाई थी। हसमुख पटेल ने इस कंपनी को अहमदाबाद के एक छोटे से कमरे से शुरू किया था। शुरुआती समय में इसमें केवल 40 कर्मचारी ही काम करते थे। लेकिन आज एचसीपी डिजाइन देश और दुनिया में कई बड़े प्रोजेक्ट को बना रही है। आज इसकी अहमदाबाद, पुणे और दिल्ली कार्यालय में 300 से ज्यादा लोग काम करते हैं। बिमल पटेल आज इस कंपनी और मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक हैं। उन्होंने जिस विश्वविद्यालय से आर्किटेक्ट की पढ़ाई की, आज उस विश्वविद्यालय के अध्यक्ष भी हैं।
अखंड भारत का नक्शा, मोर, कमल
नए संसद भवन को देखकर हर भारतीय गौरव से भरा हुआ है। इस भवन में विरासत भी है, वास्तु भी, कला भी है, कौशल भी है और इसमें संस्कृति व संविधान के स्वर भी हैं। इस नए भवन में देश के अलग-अलग हिस्सों की विविधता को समाहित किया है। देश की नई संसद में अखंड भारत का नक्शा, डॉ. भीमराव अंबेडकर, सरदार पटेल और चाणक्य की प्रतिमा समेत कई ऐसी चीजें उकेरी गई हैं, जिन्हें देखकर देशवासियों को अपनी संस्कृति पर गर्व हो। लोकसभा का आंतरिक हिस्सा राष्ट्रीय पक्षी मोर पर आधारित है, जबकि राज्यसभा का हिस्सा राष्ट्रीय फूल कमल पर आधारित है और संसद के प्रांगण में राष्ट्रीय वृक्ष बरगद है।
विपक्षी विरोध लोकतंत्र का अपमान
नये संसद भवन का उद्घाटन करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र ही नहीं है बल्कि यह मदर ऑफ डेमोक्रेसी भी है।’ इस मदर ऑफ डेमोक्रेसी के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों महत्वपूर्ण है। सांसदों का मंदिर एक ही है, संसद। लेकिन संसद जैसे मंदिर के उद्घाटन समारोह में कुछ विपक्षी दल शामिल न होकर इस मंदिर के साथ-साथ जनता का भी अनादर किया है, जिन्होंने उन्हें चुनकर इस मंदिर में भेजा है। उद्घाटन समारोह से करीब छोटे-बड़े 19 राजनीतिक दल नदारद रहे। वहीं समारोह में एनडीए में शामिल दलों सहित 25 से ज्यादा दलों ने शिरकत की। यदि संख्या बल देखें तो समारोह का बहिष्कार करने वाले दलों के लोकसभा में तकरीबन 150 और राज्यसभा में 100 सांसद हैं, जो इस ऐतिहासिक दिन का गवाह बनाने से चूक गए। हो न हो इनमें से कइयों को भविष्य में कभी इस मंदिर में आने का मौका ही न मिले।
उद्घाटन समारोह का विरोध करने के पीछे विपक्षी दलों ने तर्क दिया कि नये भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से न कराकर उनका अपमान किया है। इसलिए विपक्षी दलों ने समारोह का बहिष्कार किया। विपक्षी पार्टियों ने प्रधानमंत्री द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन पर आपत्ति जताई है। वे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से इसके उद्घाटन की मांग कर रहे थे। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सबसे पहले इसकी मांग की। उन्होंने 21 मई को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा, ‘संसद के नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ही करना चाहिए, प्रधानमंत्री को नहीं।’ बाद में बहिष्कार करने वाले इन दलों ने इसको लेकर एक पत्र भी जारी किया। इस पत्र में कांग्रेस, वामपंथी दलों, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, टीएमसी, जदयू जैसे दलों के नेताओं ने हस्ताक्षर किये थे। विरोध करने वाले इन दलों को मनाने के लिए भाजपा के अगुवाई में एनडीए घटक दलों ने भी एक पत्र लिखा। इस पत्र में विपक्षी दलों से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए भी कहा। साथ ही यह भी कहा कि यदि विपक्षी दल अपने रुख पर अड़े रहते हैं तो यह लोकतंत्र और जनता दोनों का अपमान होगा। इस पत्र में विपक्षी दलों को यह भी याद दिलाया गया कि उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार के तौर पर द्रौपदी मुर्मू का विरोध किया था। समारोह के विरोध का मामला यही नहीं रूका। संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराए जाने के लिए उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका तक डाली गई। जिसे न्यायालय ने सुनने से ही इनकार कर दिया। देखा जाए राष्ट्रपति के बहाने समारोह का विरोध करना विपक्ष की कोई नई चाल नहीं है। जब से नये संसद भवन बनने की चर्चा शुरू हुई तभी से इसे रोकने की रणनीति विपक्षी दलों ने बनानी शुरू कर दी थी। हर बार बहाना अलग-अलग जरूर होता था। ये लोग इसके निर्माण के खिलाफ भी उच्चतम न्यायालय गए थे। कभी लैंड यूज में परिवर्तन करने तो कभी पर्यावरण को नुकसान पहुंचने का बहाना लेकर। संसद भवन के शिलान्यास कार्यक्रम पर भी बहुत सारे विपक्षी नेताओं ने विवाद खड़ा किया था। उस वक्त विवाद यह कहकर खड़ा करने की कोशिश की गई कि भूमि पूजन के दौरान प्रधानमंत्री सिर्फ़ एक धर्म को बढ़ावा दे रहे हैं। जबकि सच्चाई यह थी कि उस कार्यक्रम में सभी प्रमुख धर्मों के धर्मगुरुओं ने प्रार्थना की थी। ठीक उसी प्रकार जैसे 28 मई को उद्घाटन समारोह में भी सभी धर्मों के धर्मगुरुओं ने प्रार्थना की है।
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