दिल्ली विश्वविद्यालय के सौ साल

युगवार्ता    21-Jul-2023   
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भारत सहस्त्राबियों से ही विश्व में ज्ञान का एक प्रमुख केंद्र रहा है जिसने संसार भर के विद्वानों को अपनी ओर सिर्फ आकर्षित ही नहीं किया बल्कि विश्व का मार्गदर्शन भी किया है। वर्तमान में भारत अपने औपनिवेशिक इतिहास से आगे निकलकर एक बार फिर से विश्वगुरु बनने की राह पर अग्रसर है। भारत की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था एवं विभिन्न विश्वविद्यालय इस लक्ष्य की प्राप्ति को लेकर कटिबद्ध हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अग्रणी भूमिका निभा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 को अक्षरश: लागू करने वाला देश का पहला विश्वविद्यालय बन गया है। बदलते हुए विश्व की जरूरतों को पूरा करते हुए नए पाठ्यक्रमों का निर्माण एवं उसका अनुमोदन भी दिल्ली विश्वविद्यालय में हो चुका है।
दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना एक मई 1922 को हुई थी। हालांकि, इसका साउथ कैंपस 1973 में अस्तित्व में आया था। शुरुआत में डीयू के कुल 3 कॉलेज थे। इन तीन में पहला सेंट स्टीफंस कॉलेज था जो एक मिशनरी पहल के तहत कैम्ब्रिज मिशन टू दिल्ली ने 1881 में स्थापित किया था। दूसरा कॉलेज हिंदू कॉलेज है जो 1899 में स्थापित हुआ था। फिर रामजस कॉलेज, जिसकी स्थापना 14 मई 1917 को की गई थी। हालांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि 1922 में इन तीन कॉलेजों और 750 छात्रों के साथ ही इसकी शुरुआत हुई थी। लेकिन आज इससे जुड़े 90 कॉलेज और 86 विभाग हैं।
भले ही दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना 1922 में हुई लेकिन इसका विचार साल 1911 में आकार लेना शुरू कर दिया था जब भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया था। लेकिन पहला विश्व युद्ध, विश्वविद्यालय की प्रकृति पर मतभेद और धन की कमी की वजह से ये विचार अगले 10 साल तक केवल एक विचार ही बना रहा। 16 जनवरी, 1922 को ब्रिटिश भारत की इंपीरियल विधान सभा में दिल्ली विश्वविद्यालय बिल पेश किया गया था। इस बिल को 22 फरवरी को विधानसभा में पारित कर 28 फरवरी को राज्य परिषद में पारित किया गया था। वायसराय ने 6 अप्रैल को इसपर अपनी सहमति दी, और डीयू अधिनियम 1 मई, 1922 लागू हुआ। इसके सबसे पहले चांसलर वायसराय लॉर्ड रीडिंग बने और हरि सिंह गौर को पहला कुलपति बनाया गया। इनके अलावा, मुहम्मद शफी पहले प्रो-चांसलर, जी एम डी सूफी प्रथम रजिस्ट्रार, एफ जे वेस्टर्न प्रथम रेक्टर और केसी रॉय पहले कोषाध्यक्ष बने। उस समय डीयू में केवल दो फैकल्टी- आर्ट्स और साइंस तथा 8 डिपार्टमेंट- अंग्रेजी, इतिहास, अर्थशास्त्र, संस्कृत, अरबी, फारसी, केमिस्ट्री और फिजिक्स थे।
शुरुआती समय में विश्वविद्यालय में कई बड़े और नए बदलाव किए गए। जैसे लॉ फैकल्टी की स्थापना 1924 में हुई, दिल्ली कॉलेज- जिसका इतिहास 17वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है को उसी साल एंग्लो-अरबी कॉलेज के रूप में फिर से रेनोवेट किया गया और डीयू (आज का जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज) से एफिलिएट किया गया। आज का श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स - 1926 में शुरू हुआ और लेडी इरविन कॉलेज का उद्घाटन 1932 में हुआ था। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक शुरुआती सालों में यह विश्वविद्यालय किराये की इमारतों रिट्ज सिनेमा भवन, अलीपुर रोड पर कर्जन हाउस और पुराने सचिवालय भवन के एक हिस्से में घूमता रहा। लेकिन आखिरकार साल 1923 में रिज के पास वाइसरीगल लॉज एंड एस्टेट में इसे अपना घर मिल ही गया।
1942 में सेंट स्टीफंस को आज के नॉर्थ कैंपस में स्थापित किया गया। इसके बाद हिंदू, रामजस और एसआरसीसी को भी वहीं जगह दी गई। लेकिन देश विभाजन के साथ शहर की जनसांख्यिकी और चरित्र में बड़े बदलाव आए। पश्चिम पंजाब से विस्थापित छात्रों को सेटल करने की जरूरत महसूस हुई और इस तरह हंसराज कॉलेज (1948), एसजीटीबी खालसा कॉलेज (1951), देशबंधु कॉलेज (1952), और किरोड़ीमल कॉलेज (1954) जैसे नए कॉलेज अस्तित्व में आए। इसके अलावा देश के दूर दराज इलाकों से आने वाले छात्रों का भी ध्यान रखते हुए बवाना में अदिति महाविद्यालय, द्वारका में दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज, पीतमपुरा में केशव महाविद्यालय, यमुना विहार में डॉ. भीम राव अम्बेडकर कॉलेज स्थापित किया गया।
डीयू की राजनीति भी है काफी पॉपुलर
100 साल पुराना इतिहास। राजधानी में प्राइम लोकेशन और बेहतरीन माहौल से इतर कई छात्रों को डीयू की राजनीति भी काफी आकर्षित करती है। हालांकि, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की तरह डीयू कभी भी राजनीतिक रूप से उतना चर्चित नहीं रहा। लेकिन देश को कई बड़े राजनेता इसी विश्वविद्यालय ने दिए हैं। 1970 और 1975 के बीच की अवधि में डीयू में छात्रों और शिक्षकों के कुछ प्रमुख आंदोलन देखे गए। 1975 में आपातकाल के दौरान, 300 से अधिक छात्र नेताओं जिनमें दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष अरुण जेटली भी शामिल थे। जयप्रकाश नारायण के शुरू किए गए सत्ता-विरोधी आंदोलन में भाग लेने के कारण जेटली को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। इनके अलावा न जाने कितने राजनेताओं ने यही से शिक्षा पाई और देश-समाज में बड़ी भूमिका निभाई।
भारत की युवा शक्ति सबसे बड़ी गाइडिंग फोर्स: प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते 30 जून को दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के समापन समारोह में भाग लिया। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के कंप्यूटर सेंटर और प्रौद्योगिकी संकाय के भवन तथा विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में बनने वाले अकादमिक ब्लॉक की आधारशिला रखी और सभा को संबोधित भी किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी गाइडिंग फोर्स भारत की युवा शक्ति है। इन्हीं के चलते आज हमारे एजुकेशन इंस्टिट्यूट्स दुनिया में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। पीएम ने कहा, इस यूनिवर्सिटी ने हर मूवमेंट को जीया है। इस यूनिवर्सिटी ने हर मूवमेंट में जान भर दी है। डीयू ने 100 साल में अगर अपने एहसासों को जिंदा रखा है तो अपने मूल्यों को भी जीवंत रखा है। ‘निष्ठा धृति सत्यम्’ यूनिवर्सिटी का ये ध्येय वाक्य अपने हर एक स्टूडेंट के जीवन में गाइडिंग लैम्प की तरह है। पीएम मोदी ने कहा, जिसके पास ज्ञान है, वही सुखी है, वही बलवान है। वास्तव में वही जीता है जिसके पास ज्ञान है। इसलिए जब भारत के पास नालंदा जैसे विश्वविद्यालय थे तब भारत सुख और समृद्धि के शिखर पर था। जब भारत के पास तक्षशिला जैसे संस्थान थे तब भारत का विज्ञान विश्व को गाइड करता था।
भारत की समृद्ध शिक्षा व्यवस्था भारत की समृद्धि की वाहक थी। ये वो समय था जब दुनिया की जीडीपी में बहुत बड़ा शेयर भारत का होता था। लेकिन गुलामी के सैकड़ों वर्षों के काल खंड में हमारे शिक्षा के मंदिरों को इन एजुकेशन सेंटर्स को तबाह कर दिया गया और जब भारत का बौद्धिक प्रवाह रुका तो भारत की ग्रोथ भी थम गई। पीएम मोदी ने कहा 25 साल बाद जब देश अपनी आजादी के 100 साल पूरे करेगा तब दिल्ली यूनिवर्सिटी अपनी स्थापना के 125 वर्ष मनाएगी। तब लक्ष्य था-भारत की स्वतंत्रता, अब हमारा लक्ष्य है- 2047 तक विकसित भारत का निर्माण। पिछले शताब्दी के तीसरे दशक ने स्वतंत्रता संग्राम को नई गति दी थी। अब इस शताब्दी का यह तीसरा दशक भारत की विकास यात्रा को नई रफ्तार देगा।
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विजय कुमार राय

विजय कुमार राय (वरिष्‍ठ संवाददाता)
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। साल 2012 से दूरदर्शन के ‘डीडी न्यूज’ से जुड़कर छोटी-बड़ी खबरों से लोगों को रू-ब-रू कराया। उसके बाद कुछ सालों तक ‘कोबरापोस्ट’ से जुड़कर कई बड़े स्टिंग ऑपरेशन के साक्षी बने। वर्तमान में ये हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ और ‘नवोत्थान’ के वरिष्‍ठ संवाददाता हैं। इन दिनों देश की सभ्यता-संस्कृति और कला के अलावा समसामयिक मुद्दों पर इनकी लेखनी चलती रहती है।