श्री अन्‍न : लाइलाज कैंसर का इलाज

युगवार्ता    24-Jul-2023   
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कैंसर को लाइलाज माना जाता है। अगर आपको कैंसर है और आप उससे निजात पाना चाहते हैं तो आप डॉ. खादरवली द्वारा बताये गए उपचार प्रोटोकॉल का पालन करते हुए श्री अन्‍न का सेवन करें।

कैंसर 
कैंसर मौत का दूसरा नाम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वर्तमान में दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष 10 मिलियन कैंसर के नए मामले सामने आते हैं। डब्ल्यूएचओ के नए अनुमानों के अनुसार, भारत में प्रत्येक 15 में से एक व्यक्ति की मौत कैंसर के कारण हो सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर वर्ष 16 मिलियन कैंसर से संबंधित नए मामले दर्ज किए जाते हैं। वहीं लगभग 7,84,800 लोगों की मौत कैंसर के कारण हो जाती है। कैंसर हमारे शरीर में होने वाली एक असामान्य और खतरनाक स्थिति है। कैंसर शरीर के किसी भी हिस्से में विकसित हो सकता है। जब शरीर में कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने या विभाजित होने लगती हैं तब कैंसर उत्‍पन्‍न होता है। सामन्‍यतया हमारे शरीर की कोशिकाओं की उम्र जैसे-जैसे बढ़ती या क्षतिग्रस्त होती है, ये कोशिकाएं मर जाती हैं। और इनकी जगह नई कोशिकाओं का जन्‍म होता है। जब किसी को कैंसर होता है, तो कोशिकाएं इस तरह से काम करना बंद कर देती हैं। पुरानी व क्षतिग्रस्त कोशिकाएं मरने की बजाय जीवित रह जाती हैं और जरूरत नहीं होने के बावजूद भी नई कोशिकाओं का निर्माण होने लगता है। ये ही अतिरिक्त कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से विभाजित होती हैं, जिससे ट्यूमर विकसित होता है। अधिकतर ट्यूमर्स कैंसर होते हैं, लेकिन ब्लड कैंसर में ट्यूमर नहीं होता है। हालांकि, हर ट्यूमर कैंसर नहीं होता है। शरीर में कैंसर होने के कोई ज्ञात कारण नहीं हैं। फिर भी कई ऐसे कारक हैं जो कैंसर की संभावना को पुष्‍ट करते हैं। इस घातक स्थिति से खुद को बचाने के लिए संभावित कार्सिनोजेन्‍स कारकों के संपर्क में आने से बचना होगा। इनमें अनुवांशिक कारणों से होने वाले कैंसर को रोकना हमारे बस में नहीं है, लेकिन हम जो खाते-पीते हैं, जिस हवा में सांस लेते हैं उनमें निहित कार्सिनोजेन्‍स कम्पाउंड (निको‍टीन, एस्‍बेस्टस, बेंजीन, आर्सेनिक, निकल ) से हम अपने को बचा सकते हैं। कैंसर होने के प्रधान कारण हमारा आहार ही है। आज जो भी खाद्य पदार्थ हैं वह सब और भी अधिक विषैले होते जा रहे हैं। इसके कुछ प्रमुख कारण है। बढ़ती आबादी के साथ अनाज की और अधिक जरूरत पड़ रही है। अधिक उपज के लिए रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों से फसलों का संरक्षण किया जा रहा है। ज्यादा मात्रा में कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इतना ही नहीं हमारा पर्यावरण भी विषैला होता जा रहा है। इसलिए जरूरी है हमें पोषण और फाइबर युक्‍त भोजन करना चाहिए।
अनुवांशिक रूपांतरण (जीएम) की फसलें
कैंसर रोग फैलने के प्रमुख कारणों में से एक अनुवांशिक रूपांतरण से उत्पन्न फसलें भी हो सकती हैं। इस पद्धति से उत्‍पन्‍न चर्बी अधिक होती हैं। इस पद्धति से सोयाबीन और मक्के को बनाया है। इस मक्के में चर्बी अधिक होती है। साधारणतया 100 ग्राम मक्का में 1 मिलीग्राम वसा रहता है। आज पशु और मुर्गियों को जीएम मक्का खिलाया जा रहा है। दूध, मांस, सूअर का मांस, मुर्गे का मांस, अंडे आदि अन्य आहार द्वारा पानी में घोलकर विष तुल्य रसायन मनुष्यों के शरीरों में जाकर उनके स्वास्थ्य को हानि पहुंचा रहे हैं। दूसरी तरफ आज सब्जियां भी जीएम प्रजाति की उगाई जा रही हैं। इसलिए जीएम फसलों से खुद को बचाएं।
मिलावटी तेल
मिलावटी तेल के कारण भी कैंसर हो सकता है। कच्चे तेल को शुद्ध करने के दौरान कई तत्व बाहर निकलते हैं। सी 8 यूनिटों से भी ज्यादा अंशों में रहने वाले तत्वों को ईंधन के रूप में उपयोग किया जा रहा है। उससे भी कम तत्व युक्त मिनरल तेल भी उपलब्ध हैं। इसमें कृत्रिम रसायनों को मिलाकर सूरजमुखी और नारियल के तेल आदि रासायनिक तेल को बाजार में बेच रहे हैं। ये रासायनिक तेल मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर रहे हैं। इसलिए अपने भोजन में रसायन युक्‍त तेल के प्रयोग से बचना चाहिए। इसकी जगह हमें कच्‍ची घानी तेल का उपयोग करना चाहिए।
भोजन में हमें चावल, गेहूं, शक्कर, मांसाहार और दूध से परहेज करना चाहिए। जो लोग कैंसर को हराना या कैंसर की चिकित्सा करना चाहते हैं उन्‍हें चावल, गेहूं, शक्कर, मांसाहार आदि से दूर रहना चाहिए। दूध नहीं पीना चाहिए। यह सब हमारे शरीर के अंदर रसायनों को पहुंचाते हैं। यही रसायन हमारे शरीर में बीमारी फैलाते हैं। इसके बदले हमें शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए। मुख्‍य भोजन के रूप में हमें श्री अन्‍न को अपनाना चाहिए। अगर आप कैंसर के मरीज हैं तो आपको 6 से 9 सप्‍ताह तक श्री अन्‍न का अम्‍बली (किण्वित दलिया) खाना चाहिए। उसके बाद आप श्री अन्‍न का आप चावल खा सकते हैं। हफ्ते में एक बार खजूर के गुड़ से बने हुए तिल के लड्डू खाना चाहिए। (नोट- 8 से कम एचबी1सी के साथ मधुमेह के रोगी भी तार के गुड़ के साथ तिल के लड्डू खा सकते हैं। 8 से अधिक एचबी1सी वाले मधुमेह रोगी सादे तिल के लड्डू खा सकते हैं या वे अपने भोजन में तिल को शामिल कर सकते हैं।)
कॉफी-टी आदि नहीं पीना चाहिए। इसके बदले दही या छाछ का उपयोग कर सकते हैं। डॉ. खादर वली द्वारा सुझाए गए दिनचर्या का सख्‍ती से पालन करना चाहिए। आपको नियमित दवा के साथ इस जीवन शैली का पालन करना शुरू करना चाहिए। रोज 75 मिनट तक टहलना जरूरी है। तेज चलना जरूरी नहीं है, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि आप कितनी अधिक देर चलते हैं। अपनी नियमित दवा को अचानक बंद ना करें। इस जीवन शैली का पालन करने के बाद आपकी स्वास्थ्य स्थिति बेहतर होने पर अपनी दवाओं को धीरे-धीरे कम और बंद कर सकते हैं। यह रोग के लिए कोई डाइट प्लान नहीं है बल्कि यह एक भोजन की आदत और जीवन शैली है। हम अपने भोजन की आदत को बदलकर हम अपने स्वास्थ्य को वापस पटरी पर ला सकते हैं।
लाइलाज कैंसर का कैसे करें इलाज
रोगियों के लिए श्री अन्न और काढ़ा/ कषाय सेवन का यह उपचार प्रोटोकॉल मिलेट मैन डॉ. खादर वली ने शोध और निष्कर्षों के अधार पर तैयार किया है।
कैंसर बॉक्‍स
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संजीव कुमार

संजीव कुमार (संपादक)
आप प्रिंट मीडिया में पिछले दो दशक से सक्रिय हैं। आपने हिंदी-साहित्य और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है। आप विद्यार्थी जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भी जुडे रहे हैं। राजनीति और समसामयिक मुद्दों के अलावा खोजी रिपोर्ट, आरटीआई, चुनाव सुधार से जुड़ी रिपोर्ट और फीचर लिखना आपको पसंद है। आपने राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा की पुस्तक ‘बेलाग-लपेट’, ‘समय का सच’, 'बात बोलेगी हम नहीं' और 'मोदी-शाह : मंजिल और राह' का संपादन भी किया है। आपने ‘अखबार नहीं आंदोलन’ कहे जाने वाले 'प्रभात खबर' से अपने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत की। उसके बाद 'प्रथम प्रवक्ता' पाक्षिक पत्रिका में संवाददाता, विशेष संवाददाता और मुख्य सहायक संपादक सह विशेष संवाददाता के रूप में कार्य किया। फिर 'यथावत' पत्रिका में समन्वय संपादक के रूप में कार्य किया। उसके बाद ‘युगवार्ता’ साप्तहिक और यथावत पाक्षिक के संपादक रहे। इन दिनों हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ पाक्षिक पत्रिका के संपादक हैं।