आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समस्या या समाधान!

युगवार्ता    06-Jul-2023   
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एक तरफ परमाणु बम की खोज करने वाले जे रॉबर्ट ओपेनहाइमर को अपने ही खोज पर पछतावा हुआ था। उन्होंने अपने ही आविष्कार को संसार का संहारक बता दिया था। वहीं जैफ्री हिंटन भी अपने ही आविष्कार को खतरनाक बताकर इस पर खेद जाहिर कर चुके हैं।दूसरी तरफ दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दिवानी हुई जा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस दुनिया के लिए समस्याएं खड़ी करेगा या समस्याओं का समाधान करेगा!
 
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याद करिए परमाणु बम के जनक जे राबर्ट ओपनहाइमर को जिन्होंने अपनी खोज पर पछतावा जाहिर किया था। उन्होंने कहा था कि उनका आविष्कार अब मृत्यु का रूप ले चुका है। अगर उनके ही शब्दों में कहें तो ‘‘मैं मृत्यु बन गया, संसार का संहारक।’’ जब यह बात ओपनहाइमर कह कर पछतावा जाहिर कर रहे थे। उसी वक्त दुनिया के दूसरे कोने यानी लंदन के विंबलडन में एक और बच्चा जन्म लेता है। तारीख थी 6 दिसंबर, 1947 और नाम रखा गया जेफ्री हिंटन। हिंटन की शिक्षा कैंब्रिज के किंग्स कॉलेज में हुई। उन्होंने 1970 में प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1978 में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में पीएचडी किया। जेफ्री हिंटन ने अपने दो साथियों के साथ मिलकर न्यूरल नेटवर्क की खोज की थी। जिसके दम पर आज चैटजीपीटी और गूगल बार्ड जैसे टूल्स डेवलप किए जा रहे हैं। पहले वे गूगल की सहायता करते थे फिर गूगल ने उन्हें अपने यहां रख लिया। हालांकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की अवधारणा सबसे पहले 1950 के दशक में जॉन मैकार्थी ने दी थी। मैकार्थी के अनुसार, यह बुद्धिमान मशीनों, विशेष रूप से बुद्धिमान कंप्यूटर प्रोग्राम को बनाने का विज्ञान और अभियांत्रिकी है। दूसरे शब्‍दों में कहें तो यह मशीनों द्वारा प्रदर्शित किया गया इंटेलिजेंस है। जिसके सालों बाद इसे वास्तविक स्वरूप में लाने का काम हिंटन ने किया। माना जाता है कि 2045 तक यह तकनीक इतनी सक्षम हो जायेगी कि स्वयं सीखने और स्वयं को सुधारने भी लगेगी। मानव को उनके खराब होने पर सुधारना भी नहीं होगा। यह इतनी तेज गति से सोचने, समझने और काम करने लगेगी कि मानव विकास का पथ हमेशा के लिये बदल जाएगा।
AIजैफ्री हिंटन भी इसी चिंता को जाहिर कर रहे हैं। हिंटन अचानक चर्चा का केंद्र तब बन गए, जब उन्होंने अपने ही आविष्कार को खतरनाक बता कर इस पर खेद जाहिर किया। तब उनसे पूछा गया कि आपने गूगल में रहते हुए क्यों नहीं इसके खतरे पर बोला? इस पर उनका जवाब था कि वे अनुबंध से बंधे थे। इसलिए गूगल से इस्तीफा देने के बाद अब इसके खतरे पर खुलकर बात कर सकता हूं। आम धारणा यह है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक ऐसी तकनीक है जो बहुत सारे काम खुद से कर सकती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह यहीं तक सीमित है? जवाब है बिल्कुल नहीं, इसका एडवांस स्वरूप बेहद ताकतवर और सुविधा युक्त है। अगर कड़े प्रावधान नहीं बनाए गए तो यह आने वाले समय में बेहद खतरनाक साबित होगा। इनवेस्टमेंट बैंक गोल्डमैन सैक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एआई से दुनियाभर में 30 करोड़ नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है। खासकर चैटजीपीटी जैसी जेनरेटिव एआई को बहुत क्रांतिकारी माना जा रहा है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से खतरा
रोजगार का संकट- यह सभी बातें डराने के लिए नहीं है। फर्ज करिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से एक रोबोट बनाया गया। रोबोट को घर व ऑफिस का काम करने के साथ सीमा की सुरक्षा में भी लगाया जा सकता है। सबसे पहला खतरा लोगों की नौकरी जाने का है लेकिन यह एक सामान्य घटना है। जब भी तकनीक आती है तो रोजगार के नए आयाम भी आते हैं। इस बाबत इलेक्ट्रॉनिक्‍स और सूचना प्रौद्योगिकी के केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर का मानना है कि मौजूदा दौर में एआई से नौकरियां जाने की जो आशंका जताई जा रही है वह मिस्गाइडेड है।
मानवता के लिए खतरा- अगर यही रोबोट खुद इतना समझदार हो जाए कि अपना निर्णय स्वयं लेने लगे और उससे भी आगे वह अपनी खुद की कॉपी बनाने लगे तो वैसी स्थिति में क्या होगा। सेना ने उसे लड़ना सिखाया है। लोगों को मारना सिखाया है। बम बनने से लेकर गोली चलाने तक सब कुछ उसे सिखाया गया है। रोबोट समझदार है। और उसे भी खुद के भगवान होने का बोध हो जाए। जैसे कि इतिहास में इंसानों को होता रहा है। इस कड़ी में रोबोट को भी यही भान हो और वह अपना खुद का कॉपी तैयार करने लगे। जाहिर सी बात है वह मानव से बेहद समझदार, ताकतवर और तेज होगा। और अगर उसने अपना कंट्रोल खुद ही अपने हाथों में ले लिया तो वैसी स्थिति में क्या होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि सोचने-समझने वाले रोबोट अगर किसी कारण या परिस्थिति में मनुष्य को अपना दुश्मन मानने लगें, तो मानवता के लिए खतरा पैदा हो सकता है। सभी मशीनें और हथियार बगावत कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में मानव का अस्तित्व संकट में आ जाएगा।
यह अभी किसी काल्पनिक फिल्म का दृश्य आपको लग रहा होगा लेकिन सच्चाई इसके बेहद निकट है। हिंटन ने एआई को लेकर कहा कि मौजूदा समय में पूरी दुनिया क्लाइमेट चेंज का सामना कर रही है। लेकिन एआई क्लाइमेट चेंज से भी ज्यादा खतरनाक है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि यदि समय रहते इसकी सीमा तय नहीं की गई तो यह बड़ी मुसीबत बन सकता है। उन्होंने कहा कि क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिए तो कार्बन का इस्तेमाल न करने जैसे कुछ उपाय हैं। लेकिन एआई को रोकने के लिए कुछ भी नहीं है। यह समय के साथ अपने आपको और समझदार और ताकतवर बना लेगा।
उन्होंने कहा कि हमें यह तय करना चाहिए कि इसका कैसे और कब उपयोग करना है। हिंटन के मुताबिक आने वाले समय में एआई का रूप बेहद तेजी से बदलने वाला है। कल्पना को सच्चाई बनने में खासकर तकनीकी दुनिया में बहुत ज्‍यादा समय नहीं लगता। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उसका जीता-जागता उदाहरण है। वर्तमान में इसके खतरों की बात करें तो उसमें फेक न्यूज, वीडियो सबसे ऊपर है। आप इस तकनीक की मदद से इतना सटीक आभासी दुनिया बना सकते हैं कि लोग सही और गलत में फर्क जल्दी नहीं कर पाएंगे। फेक न्यूज का एक बड़ा मायाजाल पहले से ही फैला हुआ है। जिसमें अभी इंसान शामिल हैं पर सोचिए अगर इसमें मशीन भी शामिल हुआ तो सही-गलत का फर्क करना कितना मुश्किल हो जाएगा।
AIभारत सरकार की नीति
पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के बजट में यह उल्लेख किया था कि केंद्र सरकार का थिंक टैंक नीति आयोग जल्दी ही राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता कार्यक्रम (नेशनल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोग्राम (ठअकढ) की रूपरेखा तैयार करेगा। 30 मई, 2020 को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने नैसकॉम के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय एआई पोर्टल की स्थापना की। यहां पर भारत सरकार की एआई संबंधी सभी तरह की जानकारी उपलब्ध है। भारत सरकार कृषि, स्वास्थ, आर्थिक, सामाजिक एवं सुरक्षा संबंधी सभी क्षेत्रों में काम कर रहा है। इसके पहले चीन ने अपने त्रिस्तरीय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कार्यक्रम की रूपरेखा जारी की थी, जिसके बल पर वह वर्ष 2030 तक इस क्षेत्र में विश्व का अगुआ बनने की सोच रहा है। वर्तमान में 85 करोड़ भारतीय इंटरनेट का उपयोग करते हैं और 2025 तक यह संख्या 120 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। राष्ट्रीय स्तर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने के लिये नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है। इसमें सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा शिक्षाविदों तथा उद्योग जगत को भी प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। यही वजह है कि दुनिया में हर टेक कंपनी एआई पर काम कर रही है। एक तरह से होड़ लग गई है।
चैट जीपीटी के आने के बाद से इसमें और तेजी आई है। हाल ही में अमेरिका के व्हाइट हाउस में बड़ी टेक कंपनियों के साथ इस मुद्दे पर एक बैठक भी हुई। बैठक इस बात को सुनिश्चित करने के लिए थी कि इसका इस्तेमाल कहां तक उचित है? और अगर यह कभी खतरा बना तो उसके क्या उपाय हैं? हालांकि अभी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अपने शुरुआती अवस्था में है। लेकिन हमें इसके खतरे को समझने की जरूरत है और इसके इस्तेमाल पर भी एक कानून बनाने की जरूरत है। हिंटन ने ये भी कहा कि इसे रोकना अब इतना आसान नहीं है। यह पूरा खेल डेटा का है। आप जितना डेटा किसी एआई को उपलब्ध कराएंगे वह उसी अनुसार बढ़ेगा। डेटा चुराने और उसे बेचने का खेल थोड़ा पुराना हो गया है। पहले ये कहा गया कि डेटा विज्ञापन कंपनियों को बेचा जाता है फिर उसका दूसरा रूप चुनाव में दुरुपयोग को लेकर दिखा। अब इसका उपयोग एआई तकनीक को समझदार बनाने में किया जा रहा है। इसका उदहारण हमें चैट जीपीटी में इस्तेमाल किये गए डाटा से पता चलता है। इनवीगेट डॉट कॉम के अनुसार, चैट जीपीटी को प्रशिक्षित करने में 570 जीबी डाटा का इस्तेमाल किया गया है। इसमें टेक्स्ट, वेब पेज, किताबें, और अन्य तरह के डाटा का इस्तेमाल किया गया है। यह आपको लेख से लेकर कविता और कहानियां सभी बनाकर दे देगा वह भी एक मिनट से कम समय में। आज यह स्थिति देख एक विद्वान का कथन याद आ रहा है कि भविष्य का ईंधन तेल नहीं डेटा है।
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के फायदे
 आज ओपन अएआई की चैट जीपीटी और गूगल की बार्ड जैसी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकी आ चुकी है और इसके कई एडवांस वर्जन आने अभी बाकी हैं। हाल ही गूगल के सीइओ सुन्दर पिचाई ने बताया कि गूगल एआई के मदद से जल्द ही सिर्फ आपकी आँखों के रेटिना के स्कैन से आपको बता देगा कि आपको ह्रदय संबंधी क्या दिक्कत है। आपकी भारत जैसे विशाल देश में या अफ्रीकी महाद्वीप जैसे अति गरीब देशों में इसकी मदद से अति शीघ्र चिकित्सीय तकनीक को बहाल किया जा सकता है। दूर बैठकर के ही कई ऐसे खतरों से निपटा जा सकता है। जहां मानव का जाना संभव नहीं है या खतरनाक है। हाल ही में दुनिया खतरनाक कोरोना वायरस से जूझी है। इसमें कई हजार डॉक्टरों ने भी चिकित्सा के दौरान अपनी जान गंवाई है। अगर हमारे पास एआई तकनीक से लैस रोबोट होते तो उन हजारों जानों को आसानी से बचाया जा सकता था। दूसरी तरफ जो वैक्सीन बनाने में साल 2 साल का समय लगा अगर एआई हमसे भी ज्यादा बुद्धिमान रहता तो उसका समाधान और भी जल्द हो सकता था। इसके अलावा भी इसके ढेर सारे फायदे हैं। जैसे इंसानी गलती को कम करना, कार्यकुशलता को बढ़ाएगा, सटीकता के साथ काम करें, ट्रेनिंग और संचालन की, लागत को कम करेगा, 24 घंटे काम करते रहना और कभी ना थकना, इंसान के कामों को आसान बनाना, लगातार परिणाम देते रहना, मौसम विज्ञान से लेकर परमाणु सुरक्षा तक कई क्षेत्रों में यह सहायक हो सकता है।
 ‘‘एआई से नौकरियों पर कम से कम पांच साल तक कोई खतरा नहीं है। सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को रेगुलेट करेगी कि यह डिजिटल नागरिकों को नुकसान न पहुंचाए। हालांकि इंटरनेट पर टॉक्सिसिटी और क्रिमिनेलिटी में काफी बढ़ोतरी हुई है। हम डिजिटल सिटीजन्स को नुकसान पहुंचाने की कोशिशों को किसी भी हाल में सफल नहीं होने देंगे। एआई और रिलेटेड प्रोग्राम्स और प्लेटफॉर्म्स को डिजिटल यूजर को इस तरह के खतरों से बचाने के लिए काम करना होगा। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें भारत में ऑपरेट करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।’’ - राजीव चंद्रशेखर, केंद्रीय राज्य मंत्री इलेक्ट्रॉनिक्‍स और सूचना प्रौद्योगिकी
वर्तमान बजट में भारत सरकार ने पांचवें जनरेशन की टेक्नोलॉजी स्टार्ट अप के लिये 480 मिलियन डॉलर का प्रावधान किया है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग इंटरनेट ऑफ थिंग्स, 3-डी प्रिंटिंग और ब्लॉक चेन शामिल है। एक अध्ययन के अनुसार, एआई 2035 तक 957 बिलियन अमेरिकी डॉलर या भारत की जीडीपी का 15% तक जोड़ सकता है। भारत में विशाल जनसंख्या और डेटा की प्रचुरता एआई के विकास और अनुप्रयोग के लिए उपजाऊ जमीन प्रदान करेगी। इसके कारण, भारत सरकार ने भी एआई क्षमताओं और कौशल के निर्माण में भारी निवेश करना शुरू कर दिया है।
सैम ऑल्टमैन की प्रधानमंत्री से मुलाकात
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म ओपनएआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन भारत दौरे पर थे। यहां वे सरकार को अपनी कंपनी के बारे में ब्रीफ देने आए थे। इस दौरान वे प्रधानमंत्री से भी मिले। उन्होंने बताया कि ये बैठक बहुत अच्छी थी और पीएम मोदी एआई को लेकर उत्साहित थे। वास्तव में एआई और इसके फायदे को लेकर वे विचारशील थे। उन्होंने इस बारे में भी बात की कि भारत एआई के लिए कैसे अवसर पेश कर सकता है और इसके रेगुलेशन के बारे में क्या सोचता है। आॅल्टमैन ने कहा, ‘हमने देश के सामने अवसरों के बारे में बात की, देश को क्या करना चाहिए, यह सुनिश्चित करने के लिए ग्लोबल रेगुलेशन के बारे में सोचने की जरूरत है। यह बैठक एक ऐसे दिलचस्प समय पर हो रही है, जब भारत सरकार एक डिजिटल इंडिया बिल में एआई को रेगुलेट करना चाहती है। इस विधेयक को आईटी एक्ट से बदल दिया जाएगा।’
जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) की संभावनाओं और संभावित खतरों की बात आती है, मनुष्यों के हस्तक्षेप के बिना मशीनों द्वारा सीखने और तर्क करने की बात आती है, तो बहुत सारी राय होती है। केवल समय ही बताएगा कि इनमें से कौन सा उद्धरण हमारी भविष्य की वास्तविकता के सबसे करीब होगा। जब तक हम वहां नहीं पहुंच जाते, यह विचार करना दिलचस्प है कि वह कौन हो सकता है जो हमारी वास्तविकता की सबसे अच्छी भविष्यवाणी करता है।
 
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सौरव राय

सौरव राय (वरिष्‍ठ संवाददाता)
इन्हें घुमक्कड़ी और नई चीजों को जानने-समझने का शौक है। यही घुमक्कड़ी इन्हें पत्रकारिता में ले आया। अब इनका शौक ही इनका पेशा हो गया है। लेकिन इस पेशा में भी समाज के प्रति जवाबदेही और संजीदगी इनके लिए सर्वोपरि है। इन्होंने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्नातकोत्तर और फिर एम.फिल. किया है। वर्तमान में ये हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ साप्ताहिक में वरिष्‍ठ संवाददाता हैं।