चुनाव प्रचार को बदल देगा एआई

युगवार्ता    07-Jul-2023   
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PM Modi (File Photo)
उत्तर प्रदेश के कानपुर में 20 जून को आयकर विभाग ने एक साथ कई ठिकानों पर छापेमारी की। छापेमारी कई दिनों तक चली। सैकड़ों करोड़ रुपए की हेराफेरी का इसमें पता चला। हेराफेरी का ग्राफ और ऊपर जाने वाला है। लेकिन इस बार भ्रष्टाचार तक पहुंचने के लिए आयकर अधिकारियों ने जिस तकनीक का उपयोग किया, वह बहुत महत्वपूर्ण है। अधिकारियों के मुताबिक करीब सात महीने तक लगातार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के एक टूल का इस्तेमाल कर ट्रैकिंग की गई। इस टूल की मदद से कई बड़ी रकम के संदिग्ध लेन-देन का पता चला। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नामक इस तकनीक की सटीकता और तीव्रता का इस्तेमाल बहुत तेजी से कई अन्य क्षेत्रों में भी होने लगा है। बहुत हद तक संभावना यह भी है कि इसका इस्तेमाल 2024 के आम चुनाव में राजनीतिक पार्टियां करने वाली हैं। इसमें भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे है। इसके लिए रणनीति बनाई जा रही है।
2014 का चुनाव प्रचार पुराने सभी चुनाव से काफी भिन्न था। वह पिछले सभी चुनाव प्रचार से काफी आधुनिक और अलग था। 2014 के चुनाव प्रचार में भाजपा ने कई नई तकनीक का इस्तेमाल किया था। पार्टी ने अलग-अलग तरह के तकनीकों का उपयोग कर एक साथ देशभर में चुनाव प्रचार किया था। उस प्रचार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 3डी अवतार में एक साथ कई स्थानों पर भाषण देते थे। उसमें होलोग्राम का भी इस्तेमाल किया जाता था। अब एक दशक बाद तकनीक में तेजी से बदलाव आया है। पिछले दस सालों में चुनाव प्रचार अभियान में तकनीक की भूमिका काफी बदल गई है। इसमें सबसे सटीक, तीव्र और व्यापक तकनीक एआई है। चैटजीपीटी हो या फिर टेक्स्ट टू वीडियो इन सब का उपयोग कर प्रधानमंत्री मोदी अपने मतदाताओं से लाइव बातचीत कर सकते हैं। इससे देश की जनता और मतदाता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने और भी करीब महसूस करेंगे। जिसका सकारात्मक असर मतदाताओं पर पड़ने की संभावना है।
आगामी चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का 3डी नहीं बल्कि एआई अवतार दिखेगा। यह अवतार पिछले अवतार से काफी अलग होगा। क्योंकि वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित होगा। जो देखने, सुनने और महसूसने में सच के बहुत करीब लगता है। इसलिए पार्टी चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री एवं पार्टी के कुछ बड़े नेताओं का एआई अवतार लॉन्च कर सकती है। ये नेता एआई का इस्तेमाल कर आम जनता से बातचीत कर सकते हैं। वे सरकार के कामकाज पर मतदाताओं के सवाल का जवाब दे सकते हैं। साथ ही मतदाताओं के मन में चल रहे संदेह को दूर करने का प्रयास भी अपने जवाब से कर सकते हैं। पिछले चुनाव तक नेता तकनीक का इस्तेमाल कर एक समय में एक साथ कई स्थानों पर भाषण देते थे, लेकिन अब वे एक साथ कई मतदाताओं के सवालों का जवाब दे सकते हैं। मतदाताओं से बातचीत कर सकते हैं। एआई विशेषज्ञों का मानना है, ‘जिस तरह से एआई का इस्तेमाल विभिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक हो रहा है, पूरी संभावना है कि चुनाव प्रचार में इसके उपयोग से प्रचार का तरीका ही नहीं बल्कि मतदाताओं को भेजे जाने वाले संदेश भी बदल जाएंगे। एआई के जनरेटिव टूल से हर मतदाता के लिए व्यक्तिगत किस्म का मैसेज बनाया और उसे भेजा जा सकता है। इससे नेता कम समय में अपने मतदाता के साथ बेहतर तरीके से संपर्क कर सकेंगे। यही नहीं किसी विषय या मुद्दे पर आम राय बनाने में भी एआई तकनीक का बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा।’
 इन देशों के चुनावों में एआई का इस्तेमाल
  • अब तक टोरंटो, न्यूजीलैंड और शिकागो में राजनीतिक दलों और मेयर चुनाव में एआई का इस्तेमाल सामने आया है।
  • तुर्की चुनाव में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल हो चुका है।
  • अमेरिका में भी अगले साल ही राष्ट्रपति के लिए चुनाव होना है। वहां प्रचार अभियान शुरू भी हो चुका है। वहां की दोनों प्रमुख पार्टियां इस तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं। फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डेसेंटिस ने प्रसिद्ध अमेरिकी डॉक्टर एंथनी फाउची के साथ पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नकली तस्वीरें शेयर की। यह सब चुनाव का ही हिस्सा है।
 
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम प्रकाशित नहीं करने के शर्त पर बताया, ‘पार्टी इस तकनीक का उपयोग करने के लिए तैयार है। लेकिन भाजपा इसके जरिये सकारात्मक चुनाव प्रचार करेगी। पार्टी किसी फर्जी या झूठे कंटेंट को नहीं प्रचारित करेगी। इसलिए इस पर निगरानी रखने के लिए भी एक टीम बनाई जा रही है।’ पार्टी पहले भी चुनाव प्रचार में तकनीक का इस्तेमाल करती रही है। मसलन, चुनाव प्रचार के लिए पार्टी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप आदि का इस्तेमाल करती रही है। इन सबका इस्तेमाल अब देश के सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं। यह जरूर है कि कई लोग इस तकनीक का उपयोग गलत ढंग से कर रहे हैं। जिसका गलत प्रभाव समाज पर पड़ रहा है। अब फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप आदि की जगह चैटजीपीटी, गूगल बार्ड, डाल-ई, मिडजर्नी एआई जैसे टूल्स लेने वाले हैं। इससे प्रचार-प्रसार की गति मे और तेजी आएगी। यह कहना गलत नहीं होगा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का चुनाव प्रचार में उपयोग आज उसी तरह होने की पूरी संभावना है जैसे 2014 के बाद सोशल मीडिया प्लेटफार्म का हो रहा है।
2007 से अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के चुनाव प्रचार की रणनीति बनाने वाली बेट्सी हूवर का भी मानना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बेहतर इस्तेमाल से जो राजनीतिक दल अपना चुनाव प्रबंधन ठीक ढंग से करेगा, वही चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगा। 
2007 से अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के चुनाव प्रचार की रणनीति बनाने वाली बेट्सी हूवर का भी मानना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बेहतर इस्तेमाल से जो राजनीतिक दल अपना चुनाव प्रबंधन ठीक ढंग से करेगा, वही चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगा। इसका असर यह हुआ है कि चैटजीपीटी का इस्तेमाल मंत्रियों और विधायकों की टीम के लोग करने भी लगे हैं। इससे कंटेंट लिखना, सोशल मीडिया कंटेंट तैयार करना, चित्र बनाना, कार्टून बनाना, भाषण लिखना, अलग-अलग वर्ग को साधने वाले संदेश तैयार करना चैटजीपीटी से बहुत आसान हो गया है। एआई के टूल्स से पार्टी कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों को सेवा देने वाली कंपनियों का काम बहुत आसान हो गया है। इससे लेखन, डिजाइन, कोड, वेबसाइट, कंटेंट, सोशल मीडिया, स्ट्रेटेजी जैसे काम इसके टूल्स आराम से कर सकते हैं। इससे बहुत कम समय में शोध, संचार, नीति निर्माण, रणनीति और जनता से संवाद स्थापित करने के लिए आॅडियो-वीडियो संदेश का निर्माण कर सकता है।
लेकिन इसका नकारात्मक पक्ष भी है। जिस तरह किसी भी तकनीक के गलत इस्तेमाल से पूरे समाज में प्रतिकूल असर पड़ना लाजमी है। उसी प्रकार एआई टूल्स का गलत इस्तेमाल लोकतंत्र के लिए खतरनाक भी हो सकता है। इससे किसी की भी आवाज और हाव-भाव क्लोन किया जा सकता हैं। किसी के भी हू-ब-हू आवाज में फर्जी आॅडियो या वीडियो बनाया जा सकता है। एआई के मिडजर्नी टूल से हाल ही में गांधी, नेहरू, नरेन्द्र मोदी, अंबेडकर व डोनाल्ड ट्रम्प की फर्जी तस्वीर वायरल हो चुकी है। इन तस्वीरों को देख कर सभी लोग दंग रह गए थे। इसमें असली-नकली का अंतर बताना मुश्किल हो जाता है। तुर्की चुनाव में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बनाये फर्जी कंटेंट से हड़कंप मच गया था। वहां राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन के प्रतिद्वंदी केमल किलिकडारोग्लू का अंग्रेजी में बना एक फर्जी वीडियो वायरल हुआ था। वहीँ केंद्र-वाम होमलैंड पार्टी के नेता मुहर्रम इंस की एक अज्ञात महिला के साथ सेक्स टेप लीक हो गया। वह भी फर्जी था लेकिन उन्हें राष्ट्रपति चुनाव से अपना नामांकन वापस लेना पड़ा था। यही नहीं, कहा यह भी जा रहा है कि एआई के उपयोग से चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप की संभावना पहले से अधिक बढ़ गई है। विदेशी ताकतें इसका उपयोग कर किसी भी देश के चुनाव को प्रभावित कर सकती हैं। अपने देश में अभी एआई को लेकर कोई नीति भी नहीं बनी है। इस पर केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव इतना जरूर कहते हैं कि चैटजीपीटी और गूगल वार्ड आदि को रेगुलेट करने की जरूरत है।
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गुंजन कुमार

गुंजन कुमार (ब्‍यूरो प्रमुख)
प्रिंट मीडिया में डेढ़ दशक से ज्‍यादा का अनुभव। 'दैनिक हिंदुस्तान' से पत्रकारिता का प्रशिक्षण प्राप्त कर 'हरिभूमि' में कुछ समय तक दिल्ली की रिपोर्टिंग की। इसके बाद साप्ताहिक 'दि संडे पोस्ट' में एक दशक से ज्यादा समय तक घुमंतू संवाददाता के रुप में काम किया। कई रिपोर्टों पर सम्मानित हुए। उसके बाद पाक्षिक पत्रिका 'यथावत' से जुड़े। वर्तमान में ‘युगवार्ता’ पत्रिका में बतौर ब्‍यूरो प्रमुख कार्यरत हैं।