यतो धर्मस्ततो जय:

युगवार्ता    22-Aug-2023   
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कोर्ट का ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के एएसआई सर्वे का आदेश सत्यमेव जयते का उद्घोष है। सुप्रीम कोर्ट का ध्येय वाक्य यतो धर्मस्ततो जय: अर्थात जहां धर्म है वहीं जीत है भी इसी का उद्घोष करता है। सत्य व धर्म की जीत का उद्घोष करते यह ध्येय वाक्य हिंदुओं की आकांक्षाओं की पूर्ति करने वाले हैं। सत्य यही है कि काशी विश्वेश्वर मंदिर का ध्वंस औरंगजेब ने कराया था। हालांकि मुस्लिम पक्ष इसे मानने को तैयार नहीं है। उम्मीद है सर्वे से धुंधलका छंटेगा और विवाद का निपटारा होगा। पहली बार ऐसा हुआ है जब सर्वे पर जिला कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक का रुख एक जैसा है। सर्वे हिंदुओं की आकांक्षाओं को नई उड़ान देने वाला है। उनमें अयोध्या के बाद अब काशी विश्वेश्वर की मुक्ति की भी आस जग गई है।

Varanasi Gyanvapi masjid  asi survey
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा ज्ञानवापी के सर्वे से विवाद के निपटारे की राह आसान हो गई है। यह विवाद 1669 से चल रहा है। यह पहला मौका है, जब सर्वे पर तीन अदालतों का रुख एक जैसा रहा है। पहले जिला अदालत ने ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे का आदेश दिया। सर्वे शुरू ही हुआ था कि मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया जहां से हाईकोर्ट होते हुए फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। लेकिन हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी जिला अदालत के आदेश पर अपनी सहमति जता दी।
उम्मीद है कि एएसआई सर्वे से अब सब कुछ साफ हो जाएगा। पता चल जाएगा कि किसके दावे में दम है। एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल नहीं उठाए जा सकते हैं। अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि का विवाद भी सर्वे से निपटा था। सुप्रीम कोर्ट की सांविधानिक पीठ ने सर्वे के तथ्यों को ध्यान में रखकर फैसला सुनाया था। एएसआई की टीम चार सप्ताह में सर्वे करके रिपोर्ट जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत को सौंप देगी। अदालत साक्ष्यों का अध्ययन करेगी, फिर अंतिम फैसला सुनाएगी। एएसआई की टीम सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सील ज्ञानवापी स्थित वजूखाने को छोड़कर शेष अन्य हिस्से का सर्वे कर रही है। ज्ञानवापी में कोर्ट कमिश्नर की कार्रवाई के दौरान 16 मई 2022 को वजूखाने में शिवलिंग मिलने का दावा हिंदू पक्ष ने किया था। वहीं, मस्जिद कमेटी का कहना था कि वह पुराना फव्वारा है। हिंदू पक्ष के आवेदन पर 16 मई 2022 को जिला अदालत ने वजूखाने को सील करने का आदेश दिया था। उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा था।
एएसआई सर्वे से अब सब कुछ साफ हो जाएगा। पता चल जाएगा कि किसके दावे में दम है। श्रीराम जन्म भूमि पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने सर्वे के तथ्यों को ध्यान में रखकर फैसला सुनाया था। अब सर्वे से ज्ञानवापी को लेकर 354 वर्षों से चल रहे विवाद के समाधान की भी उम्मीद जगी है।
बहरहाल, एएसआई सर्वे से ज्ञानवापी को लेकर 354 वर्षों से चल रहे विवाद के समाधान की उम्मीद जगी है। उल्लेखनीय है कि औरंगजेब ने काशी विश्वेश्वर मंदिर ध्वस्त कराया और उसके ढांचे को बदल दिया। तभी से हिंदू अपना अधिकार पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ज्ञानवापी परिसर के एएसआई से सर्वे का वाद जिला अदालत में दाखिल करने वालीं सीता साहू, रेखा पाठक, लक्ष्मी देवी और अंजू व्यास ने शपथ पत्र दाखिल करके अदालत को बताया है कि उत्तरवाहिनी गंगा के किनारे स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान आदि विश्वेश्वर का मंदिर है जिसे मुगल शासक औरंगजेब के फरमान से वर्ष 1669 में ध्वस्त किया गया था। हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों की मांग है कि द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक भगवान आदि विश्वेश्वर का मंदिर पुन: मूल स्वरूप में स्थापित किया जाए।
इन दावों पर मुस्लिम पक्ष की तरफ से अंजुमन इंतेजामिया कमेटी ने सवाल उठाए और अदालत में आपत्ति भी दाखिल की। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि हिंदू पक्ष का दावा ठीक नहीं है। औरंगजेब ने कोई मंदिर नहीं तुड़वाया था। ज्ञानवापी में लंबे समय से नमाज पढ़ी जा रही है। बहरहाल, दावे और आपत्ति के बीच जिला जज की अदालत ने एएसआई को सर्वे का आदेश दिए थे। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था जहां सर्वे पर रोक लगाकर मामले को हाईकोर्ट में ले जाने को कहा गया। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने सर्वे पर लगी रोक हटाकर सत्य की खोज का रास्ता साफ कर दिया।
विवाद के समाधान की उम्मीद पाले हिंदू पक्ष का कहना है कि एएसआई के सर्वे में जो कुछ आएगा, उसे मानकर आगे बढ़ा जाएगा। एक दिन सर्वे का बहिष्कार करने के बाद दूसरे दिन से मुस्लिम पक्ष भी सर्वे में भाग ले रहा है। हिंदू पक्ष के अधिवक्ता सुधीर त्रिपाठी के मुताबिक अयोध्या में राम जन्मभूमि के विवाद का अंत एएसआई की सर्वे रिपोर्ट से ही हुआ था। रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार करके आदेश सुनाया था। मुस्लिम पक्ष को सहयोग की भावना के साथ आगे आना चाहिए। वैज्ञानिक पद्धति से सर्वे में जो तथ्य सामने आएं, उसका हम भी स्वागत करेंगे और उन्हें भी करना चाहिए।
बहरहाल, जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने ज्ञानवापी परिसर की संरचना को नुकसान पहुंचाएं बगैर ही सब कुछ वैज्ञानिक तरीके से एएसआई को स्पष्ट करने के लिए कहा है। अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सील वजूखाने को छोड़कर ज्ञानवापी के मौजूदा निर्माण की प्रकृति और आयु का निर्धारण करें। इमारत के अलग-अलग हिस्सों और संरचना के नीचे मौजूद ऐतिहासिक और धार्मिक कलाकृतियों व अन्य सामग्रियों को देख कर उनकी वास्तविक स्थिति स्पष्ट करें। जो भी कलाकृतियां दिखें, उनकी भी उम्र और प्रकृति के बारे में बताएं। अदालत ने कहा है कि एएसआई की रिपोर्ट में यह स्पष्ट होना चाहिए कि क्या मंदिर को ध्वस्त कर उसके ढांचे के ऊपर मस्जिद बनाई गई है।
गौरतलब है कि सर्वे का यह आदेश पहला नहीं है। इसके पहले भी सर्वे के आदेश दिये गये थे लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय से रोक लग गई। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी के प्रार्थना पत्र पर पहली बार सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी की अदालत ने आठ अप्रैल 2021 को ज्ञानवापी में रडार तकनीक से एएसआई को सर्वे का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ अपील किए जाने पर सितंबर 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सर्वे पर रोक लगा दी थी। फिलहाल, यह मामला अभी हाईकोर्ट में विचाराधीन है। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है। कभी भी आदेश आ सकता है। इसी तरह 12 मई 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर में मिली शिवलिंग जैसी आकृति की कार्बन डेटिंग और वैज्ञानिक पद्धति से सर्वे का आदेश दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर 19 मई को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। यह मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है।
उत्तरवाहिनी गंगा के किनारे अवस्थित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान आदि विश्वेश्वर के मंदिर को मुगल शासक औरंगजेब के फरमान से 1669 में ध्वस्त कर दिया गया था। हिंदुओं की मांग है कि द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक भगवान आदि विश्वेश्वर का मंदिर पुन: मूल स्वरूप में स्थापित किया जाए।
बहरहाल, 500 सालों के लंबे संघर्ष, त्याग, तपस्या व बलिदान के बाद अयोध्या में जन्मभूमि पर निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है और इस भव्य व दिव्य श्रीराम मंदिर में रामलला अपने भक्तों को जल्द ही दर्शन देने जा रहे हैं। पांच सदियों बाद रामलला और अब तीन सदियों से भी अधिक समय से ज्ञानवापी मस्जिद में अवस्थित भगवान विश्वेश्वर की ओर निर्निमेष टकटकी लगाये नंदी के मन में भी अपनी तपस्या पूरी होने की आस जग गई है। ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे में शिवलिंग मिलने से हिंदुओं के हृदय में जहां खुशी की लहर दौड़ रही है। वहीं मुस्लिम समुदाय हठधर्मिता पर उतर आया है। मस्जिद के अंदर से सनातन धर्म के चिन्ह व शिवलिंग मिलने के बावजूद धमकी दी जा रही है कि एक और मस्जिद कुर्बान नहीं होने देंगे। जाहिर है कि गंगा जमुनी तहजीब मात्र धोखा है या फिर इसे ढोने की जिम्मेदारी अकेले हिंदुओं पर डाल दी गई है। क्या यह बहुसंख्यक समुदाय की आस्था पर चोट नहीं है कि मुसलमान शिवलिंग की जगह पर हाथ-पांव धो रहे थे। कुल्ला कर रहे थे। हिंदुओं का एक वर्ग इस बात से बहुत ज्याादा नाखुश है। उसका मानना है कि सालों से इस बात का पता होते हुए भी कि वहां भगवान शिव मौजूद हैं, जान बूझकर उनका तिरस्काकर किया जाता रहा।
उल्लेखनीय है कि सिविल जज की ओर से नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर की ओर से अदालत में दाखिल की गई रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि ज्ञानवापी ढांचे की पश्चिमी दीवार पर शेषनाग और हिंदू देवी-देवताओं की कलाकृति साफ रूप से नजर आ रही है। दीवार के उत्तर से पश्चिम की ओर शिलापट्ट पर सिंदूरी लेप की उभरी हुई कलाकृति है। इसमें देवों के रूप में चार मूर्तियों की आकृति दिखाई दे रही है। इस रिपोर्ट को न्यायालय ने रिकॉर्ड में ले लिया है। सर्वे रिपोर्ट में साफ हो गया है कि मंदिर तोड़कर वहां मस्जिद बनाई गई थी, शिवलिंग की सत्यता 354 साल बाद जनता के सामने आई है। वास्तव में यह कोई फव्वारा नहीं है ये केवल शिवलिंग है। ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन का दावा है कि मंदिर के शिखर के ऊपर तथाकथित मस्जिद का गुंबद लगा हुआ है।
बहरहाल, ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का रास्ता साफ होने के बाद अब मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि का सर्वे कराए जाने की मांग उठने लगी है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। श्रीकृष्ण विराजमान की कुल 13.37 एकड़ जमीन में से करीब 11 एकड़ जमीन पर श्रीकृष्ण जन्म स्थान स्थापित है। याचिका में शाही ईदगाह की 2.37 एकड़ जमीन को मुक्त करने की मांग की गई है। अदालत में कहा गया है कि जिस जगह पर यह ईदगाह मस्जिद बनाई गई है वहीं पर कंस का वो कारागार था जहां पर श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। मुगल सम्राट औरंगजेब ने साल 1669-70 के दौरान श्री कृष्ण जन्मभूमि स्थल पर बने मंदिर को तोड़ दिया और वहां पर इस ईदगाह मस्जिद का निर्माण करवा दिया था।
मुस्लिम पक्ष की तरफ से अदालत में एक दलील जो प्रमुखता से पेश की जा रही है वह है 1991 का वर्शिप एक्ट। मुस्लिम पक्ष के मुताबिक इस एक्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि देश में 1947 से पहले धार्मिक स्थलों को लेकर जो स्थिति थी वह उसी तरह बरकरार रखी जाएगी और उसमें कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। हालांकि कोर्ट उनकी इस दलील को यह कहते हुए खारिज कर चुका है कि किसी स्थल की सच्चाई पता लगाने से यह कानून नहीं रोकता। श्रीकृष्ण जन्मभूमि में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग बहुत पुरानी है।
उल्लेखनीय है कि संपूर्ण भारतवर्ष में जहां-जहां सनातन धर्मावलंबियों के आराध्यों राम, कृष्ण और शिव आदि देवताओं के मंदिर रहे हैं, उन्हें यवन और मुगल आक्रांताओं ने अपनी बर्बरता दिखाने के लिए तोड़ा। उनके स्थान पर ईदगाह, मस्जिद की शक्ल में ढांचे उन्हीं मंदिर की निर्माण सामग्री से बना दिए गए। श्रीकृष्ण मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने इसे तुड़वा दिया और इसके एक भाग पर ईदगाह का निर्माण करा दिया। लेकिन अब दृश्य पूरी तरह से बदल गया है। धीरे-धीरे ही सही बहुसंख्यक समाज जाग रहा है। वह अब और अधिक अपनी आस्था पर चोट बरदास्त करने को तैयार नहीं है। हालांकि इसके लिए कोई गैर कानूनी रास्ता अख्तियार करने के बजाय वह न्यायालय की शरण ले रहा है।
10 दिन तक रुका रहा सर्वे फिर से शुरू
एएसआई की 43 सदस्यीय टीम ने 24 जुलाई की सुबह सात बजे से ज्ञानवापी में लगभग साढ़े पांच घंटे तक सर्वे किया था। दोपहर लगभग 12:30 बजे सर्वे पर रोक लगाने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जानकारी हुई तो काम रोक दिया गया। उस दिन से 10 दिन तक सुप्रीम कोर्ट और फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से ज्ञानवापी में सर्वे का काम रुका रहा। अब 4 अगस्त सुबह से सर्वे शुरू हुआ है। इस काम में भारतीय पुरातत्व विभाग के 50 के करीब अधिकारी लगे हुए हैं। ज्ञानवापी का सर्वे इस तरह से किया जा रहा है ताकि उसके ढांचे को कोई नुकसान न हो। ये सर्वे पूरे साइंटिफिक तरीके से हो रहा है। एएसआई की टीम ने अब तक परिसर की 3डी इमेजिंग और मैपिंग की है और इसका एक डिजिटल नक्शा बनाया गया है, ताकि परिसर को समझने में आसानी हो सके। हालांकि अभी तक ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार के जरिए यहां की जांच को शुरू नहीं किया गया है। ज्ञानवापी सर्वे को लेकर हिन्दू पक्ष ने दावा किया है कि तहखाने में मंदिर से जुड़ी कलाकृतियां बनी हैं। तहखाने में त्रिशूल, मूर्तियां, कलश और कमल के फूल जैसी आकृतियों के मिलने का दावा किया गया है। हालांकि मुस्लिम पक्ष की ओर से इस पर आपत्ति भी जाहिर की गई। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि सर्वे को लेकर गलत अफवाहें फैलाई जाई जा रही है। अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने यहां तक कहा है कि अगर इसी तरह मीडिया में अफवाहें फैलाई जाती रहीं तो वो खुद को सर्वे से अलग कर लेंगे।
पहली बार तीनों अदालतों का निर्णय एक जैसा
21 जुलाई 2023 को जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्ववेश की अदालत ने ज्ञानवापी परिसर स्थित सील वजूखाना को छोड़कर शेष अन्य हिस्से के सर्वे का आदेश एएसआई को दिया था। 24 जुलाई को एएसआई ने सर्वे का काम शुरू किया तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उस पर 26 मई की शाम पांच बजे तक रोक लगा दी गई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। 25, 26 और 27 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। 27 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सर्वे के काम पर लगी रोक जारी रखते हुए आदेश सुनाने के लिए तीन अगस्त की तिथि तय कर दी। तीन अगस्त को हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि न्याय के हित में ज्ञानवापी में वैज्ञानिक सर्वेक्षण जरूरी है। हाईकोर्ट के इस आदेश को मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। चार अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने भी सर्वे पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया। इस तरह सर्वे की सारी बाधाएं दूर हो गई।
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बद्रीनाथ वर्मा

बद्रीनाथ वर्मा (सहायक संपादक)
देश-समाज से जुड़े विभिन्न विषयों पर बेबाक लेखन करने वाले बद्रीनाथ वर्मा ने अपनी पत्रकारिता की यात्रा ऐतिहासिक अखबार ‘दैनिक भारतमित्र‘ से शुरू की। अपने दो दशक से भी अधिक के कार्यकाल में वे कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रह चुके हैं। इन दिनों ‘युगवार्ता‘ पत्रिका में सहायक संपादक के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं।