विलक्षण सफलता की कहानी

युगवार्ता    09-Aug-2023   
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इफको जैसी संस्थानों को खड़ा करना, जहां लाखों लोग लाभान्वित होते हों, मुश्किलों भरा काम था। यह महज संयोग नहीं है कि उदयशंकर अवस्थी ने इस काम को किया, यह उनके परिश्रमी व्यक्तित्व के कारण संभव हुआ। इफको की सफलता के सूत्रधार उदय शंकर अवस्थी की कहानी को अभिषेक सौरभ ने 'संघर्ष का सुख' शीर्षक से प्रस्तुत किया है।  
संघर्ष का सुख पुस्‍तक
पुस्तक : संघर्ष का सुख
लेखक : अभिषेक सौरभ
प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन प्रा. लि., 1-बी,
                नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नयी दिल्ली
मूल्य : 795 रूपये
इफको जैसी संस्थानों को खड़ा करना, जहां लाखों लोग लाभान्वित होते हों, मुश्किलों भरा काम था। यह महज संयोग नहीं है कि उदयशंकर अवस्थी ने इस काम को किया, यह उनके परिश्रमी व्यक्तित्व के कारण संभव हुआ। इफको की सफलता के सूत्रधार उदय शंकर अवस्थी की कहानी को अभिषेक सौरभ ने 'संघर्ष का सुख' शीर्षक से प्रस्तुत किया है। अभिषेक सौरभ जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से पीएचडी कर चुके हैं।
गोपी कृष्ण प्रसाद जैसे समाजशास्त्रियों का मानना है कि बीती घटनाओं और अनुभवों का दस्तावेज पूर्णत: निरपेक्ष नहीं हो सकता है। अधिक से अधिक यही होता है कि किसी सिद्धांत या कसौटी के संदर्भ में घटनाओं एवं अनुभवों का मूल्यांकन एवं विश्लेषण किया जाए। लोग ऐसा करते भी हैं, लेकिन सिद्धांत चाहे जो भी हो, घटनाओं एवं तथ्यों के चयन में जीवनीकार की दृष्टि-बिंदु का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता ही है। यहां अभिषेक ने उदयशंकर अवस्थी के जीवन में हुए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अनुभवों को तरजीह दिया है। यह करना प्रामाणिकता के लिए जरूरी था।
अवस्थी का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। परिवार की असाधारणता इस बात में निहित थी कि सभी में स्वतंत्रता आंदोलन से भावनात्मक रूप से गहरा जुड़ाव था। परिवार में व्यवसाय से जुड़े लोग थे, तो कुछ लोग राजनीति से भी। खुद उदय शंकर अवस्थी के बड़े भाई देवी शंकर अवस्थी हिंदी कहानी आलोचना के नक्षत्र पुरुषों में आज भी गिने जाते हैं। हालाँकि उनका निधन बहुत ही कम उम्र में दुर्घटना में हो गया था। उसके बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी का वहन करने का भार भी उनके कंधों पर आ गया था। उस समय अवस्थी की मन:स्थिति इस किताब में इस तरह दर्ज है, ‘मैं अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था जब मेरे बड़े भाई डॉ. देवी शंकर अवस्थी का स्वर्गवास हो गया। उन्हें मैं दादा कहता था। हमारे परिवार पर यह एक ईश्वरीय कुठाराघात था। माँ ने अपना सबसे प्यारा बेटा खोया, भाभी ने अपना पति खोया, उनके बच्चों ने अपना पिता खोया। हमारे पूरे परिवार के वे स्तम्भ थे।’ कहते हैं जिस धुरी के केंद्र में देवीशंकर थे, उस धुरी के केंद्र में उदय शंकर अवस्थी ने अपने को स्थापित कर लिया।
मंदी के दौर में भी अपनी तीक्ष्ण प्रतिभा और राष्ट्रीय भावना के बदौलत उन्होंने फर्टिलाइजर उद्योग में ही केमिकल इंजीनियर की नौकरी ढूँढनी शुरू की। श्रीराम फर्टिलाइजर्स से उन्होंने अपनी नौकरी की शुरुआत की और महज कुछ ही सालों बाद वे कंपनी से निकल 1976 में इफको के साथ हो लिए। तब से उनका इफको के साथ संबंध अटूट बना हुआ है और आज फर्टिलाइजर की दुनिया में इफको भी शिखर पर है और अवस्थी प्रबंध निदेशक के तौर पर इफको के शिखर पुरुष।
एक छोटे से सहकारी समिति से वैश्विक कारोबारी समूह में बदलने के काम में अवस्थी जी को अपनी जिंदगी के बेहतरीन 47 वर्ष देने पड़े हैं। उनकी कर्मठता का ही नतीजा है कि उनका पारिवारिक जीवन भी सफल रहा है और व्यावसायिक जीवन भी। उन्होंने हमेशा स्वदेशी तकनीक पर जोर दिया है। वे आज भी इस प्रयास में लगे हैं कि भारत आयातित प्रौद्योगिकी पर निर्भर न रहे। इंटरनेशनल फर्टिलाइजर एसोसिएशन के महानिदेशक शार्लोट हैबेब्रांड का तो कहना यह है कि उर्वरकों की दुनिया में 'लार्जर-दैन-लाईफ' व्यक्तित्व के उदाहरण बहुत कम हैं और अवस्थी निश्चित रूप से उनमें से एक हैं।
वे इस सफलता के पीछे सरकार का इतना ही सहयोग मानते हैं कि वह एक सिस्टम और व्यवस्था मुहैय्या कराने का काम करती है। बाकी का सारा श्रेय वे वहां कार्यरत लोगों को देते हैं यानी उस सहकारिता की भावना को जो इफको और उनको शिखर तक ले गई। लेकिन शिखर की यह यात्रा कंटकाकीर्ण ना रही हो, ऐसा भी नहीं रहा है। उन्होंने पूरे जीवट के साथ ताउम्र प्रतिकूल परिस्थितियों और चुनौतियों का सामना किया। उन्हें समय-समय पर जाँच एजेंसियों से भी गुजरना पड़ा है। उन्होंने कठिनाइयों से विचलित न होते हुए नैनो यूरिया और नैनो डीएपी (तरल) जैसे नई तकनीकी युक्त अत्याधुनिक उर्वरकों को लॉन्च किया।
साहित्य, कला और संस्कृति से भी उनका प्रेम है। इफको हर साल ग्यारह लाख की राशि का श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको सम्मान देश के प्रतिष्ठित साहित्यकार को प्रदान करती है। आज महत्वपूर्ण चित्रकारों के चित्र इफको के कला खजाने में संग्रहित है। यह पुस्तक अवस्थी के विलक्षण व्यक्तित्व की कहानी तो बयाँ करती ही है, साथ ही देश के कोने-कोने तक पहुँची इफको के सफलता की कहानी भी कहती है।
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मनोज मोहन

मनोज मोहन, वरिष्‍ठ पत्रकार व लेखक
एक गैर सरकारी संगठन में थोड़े दिनों तक नौकरी। हिन्दी के साहित्यिक-सांस्कृतिक दुनिया में निरंतर सक्रिय। कविता और लेखन में गंभीर रुचि। पिछले बीस साल से दिल्ली में। वर्तमान में सीएसडीएस की पत्रिका 'प्रतिमान : समय समाज संस्कृति' के सहायक संपादक। पिछलेे पांच सालों से युगवार्ता पत्रिका में नियमित लिख रहे हैं।