भाषायी पत्रकारिता का उद्भव और विकास

युगवार्ता    21-Sep-2023   
Total Views |
राष्ट्रवाद को जीवित रखने और विकसित करने में भाषायी पत्रकारिता का बहुत बड़ा योगदान है। प्रारंभ से ही राष्ट्रीयता उसका मुख्य स्वर रहा है।स्वतंत्रता पूर्व की पत्रकारिता ने राष्ट्रीय आंदोलन को गति, शक्ति और दिशा प्रदान की।

भाषायी पत्रकारिता
 
भाषायी पत्रकारिता का सीधा संबंध क्षेत्रीय आकांक्षाओं से है। क्षेत्रीय पत्रकारिता का स्वरूप जनता और परिवेश की बात करता है। इसलिए उसका प्रसार बढ़ रहा है। भारत के अंदर भाषायी पत्रकारिता बहुत बड़े क्षेत्र तक पहुंच रही है, साथ ही लोगों का शिक्षण कर रही है, वहां के लोगों की सोच को प्रस्तुत कर रही है, उस पर चर्चा नहीं होने के कारण क्षेत्रीय पत्रकारों और क्षेत्रीय पत्रकारिता में हीनता का भाव उत्पन्न होता है। डिजिटल माध्यमों सेभाषायी पत्रकारिता ने स्थानीय गतिविधियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया है। भाषायी अखबार जनमत बनाने और लोगों में सही सोच पैदा करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम हैं।
भाषायी पत्रकारिता को हम भारत की आत्मा कह सकते हैं। क्षेत्रीय भाषाएं हमारी संस्कृति की पहचान हैं। भाषायी विविधता और बहुभाषी समाज आज की आवश्यकता है। इंटरनेट से जहां सूचना तंत्र मजबूत हुआ है, वहीं भाषायी पत्रकारिता के लिए संभावनाओं के नए द्वार खुले हैं। वर्ष 2019 में टेलीविजन में 50 प्रतिशत से अधिक, सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली फिल्मों में 44 प्रतिशत, समाचार पत्रों के प्रसार में 43 प्रतिशत और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर लगभग 30 प्रतिशत, क्षेत्रीय भाषाओं के कंटेट में वृद्धि देखी गई है।
हिन्दी और भारतीय भाषाओं के विकास के लिए अंतर संवाद बेहद आवश्यक है। भारतीय भाषाओं में अंतर संवाद की परंपरा बहुत पुरानी है और ऐसा सैकड़ों वर्षों से होता आ रहा है। यह उस दौर में भी हो रहा था, जब वर्तमान समय में प्रचलित भाषाएं अपने बेहद मूल रूप में थीं। भारत का मूल भाव क्षेत्रीय भाषाओं में है। वर्तमान में पत्रकारिता का भविष्य भारतीय भाषाओं और बोलियों में है। भाषा ही है, जो आपको लंबी रेस का घोड़ा बनाती है। एक पत्रकार को उस भाषा में खबर लिखनी चाहिए, जो आम इंसान को समझ में आए, लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि कहीं भाषा का मूल तो नहीं छूट रहा है।
भारत में क्षेत्रीय भाषाओं में 166 समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे हैं। कोविड के दौरान इन समाचार पत्रों के प्रसार में कमी आई है, लेकिन इन समाचार पत्रों के डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर पाठकों की संख्या बढ़ी है। क्षेत्रीय भाषा में रोजगार के अवसर कम हैं भाषायी पत्रकारिता के सामने यह बड़ी चुनौती है। भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता के भविष्य को हमें वैश्विक संदर्भ में देखना चाहिए। वर्तमान में पत्रकारिता के सामने सिर्फ कारोबार का संकट नहीं है, बल्कि विश्वसनीयता का संकट भी है। भाषायी पत्रकारिता का यह स्वर्णिम युग है। क्षेत्रीय भाषा के पाठकों और दर्शकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। डिजिटल माध्यमों ने भाषायी पत्रकारिता को एक नई दिशा दी है।
भाषा किसी भी देश के स्वभाव की पहचान होती है। उसकी मूल्यवान संपदा होती है। भाषा के बनने संवरने की यात्रा के अपने घुमाव और पड़ाव होते हैं। साहित्य और पत्रकारिता दोनों ही भाषा की पाठशाला के साथ-साथ भाषा की टकसाल भी होते हैं। प्रेस पर अंकुश रखने के इरादे से पारित अधिनियमों के बावजूद स्वाधीनता आंदोलन के दौर में भारतीय समाज को जागृत करने में भाषायी पत्राकारिता की ऐतिहासिक भूमिका रही है।
प्रथम स्वाधीनता संग्राम से पहले भाषायी पत्रों ने भारतीय जनता पर अपनी पकड़ बना ली थी। कोलकाता से प्रकाशित ‘उदंत मार्तंड’ को हिन्दी का पहला समाचार पत्र माना जाता है। इसका प्रकाशन वर्ष 1826 में आरंभ हुआ। इसके संपादक, मुद्रक तथा प्रकाशक पंडित जुगल किशोर शुक्ल थे जो मूलत: कानपुर के रहने वाले थे और दीवानी अदालत में रीडर के पद पर कार्यरत थे। इस पत्र में हिंदुस्तानियों के हित को ध्यान में रखा गया था।
आरंभ में भारत में समाचार पत्रों की कोई परंपरा नहीं थी। अत: पत्रकारिता के उदय काल में समाचार पत्र के संपादक इसके संचालक भी स्वयं थे। वही इसका मुद्रण करते थे, वही इसका प्रकाशन करते थे। उनके पास सीमित संसाधन थे। यही कारण है कि ‘उदंत मार्तंड’ अधिक समय तक प्रकाशित न हो पाया। ‘उदंत मार्तंड’ से प्रभावित होकर राजा राममोहन राय ने 1829 में ‘बंगदूत’ प्रकाशित किया। यह बांग्ला और फारसी भाषा में छपता था। 1845 में ‘बनारस अखबार’ का प्रकाशन आरंभ हुआ। इसके प्रकाशक शिवप्रसाद सितारे हिंद थे तथा पंडित गोविंद रघुनाथ इसके संपादक थे। इस समाचार पत्र की लिपि नागरी थी परन्तु भाषा उर्दू-मिश्रित थी।
“भाषायी अखबारों का अपने क्षेत्र में अच्छा-खासा असर होता है, क्योंकि वे आम आदमी की समस्याओं को अच्छी तरह से प्रस्तुत कर सकते हैं। अंग्रेजी से यह संभव नहीं हैं। इसलिए भाषायी पत्रकारिता की अनदेखी नहीं की जा सकती। ”
 
1848 में हिन्दी-उर्दू भाषा में ‘मालवा’ और 1849 में हिन्दी-बांग्ला में ‘जगदीप-भास्कर’ का प्रकाशन हुआ। 1850 में बनारस से ‘सुधाकर पत्र’ निकला। इसकी भाषा ‘बनारस अखबार’ की अपेक्षा अधिक उत्कृष्ट तथा परिष्कृत थी। 1852 में आगरा से ‘बुद्धि प्रकाश्य’ का प्रकाशन मुंशी सदा सुख लाल ने किया। बांग्ला तथा हिन्दी भाषा में पहला दैनिक समाचार पत्र ‘समाचार सुधा वर्षण’ 1854 में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। इसका संपादन श्याम सुंदर सेन ने किया। इसके प्रथम दो पृष्ठ हिन्दी के तथा अंतिम दो पृष्ठ बांग्ला के थे। इस समाचार पत्र में युगीन परिवेश की अभिव्यक्ति और जातीय स्वाभिमान का स्वर प्रबल था। इसी कारण इसे अंग्रेजों के कोप का शिकार होना पड़ा। यह 14 वर्ष तक चला। बंगाली से प्रभावित होते हुए भी इसकी भाषा आधुनिक हिन्दी के निकट थी।
1857 में दिल्ली से ‘पयामे-आजादी’ का हिन्दी संस्करण निकला। यह समाचार पत्र जनसामान्य में राष्ट्रप्रेम और स्वतंत्रता के भावों को जागृत करने का मिशन लिये था। यही कारण है कि यह समाचार पत्र जल्दी ही अंग्रेज सरकार की आंखों में खटकने लगा और इसके संपादक अजीमुल्ला खां को अपनी जान गंवानी पड़ी। 1858 में अहमदाबाद से ‘धर्म-प्रकाश’ का प्रकाशन हुआ। 1861 आगरा से ‘सूरज प्रकाश’, अजमेर से ‘प्रजाहित’, आगरा से ‘ज्ञान दीपक’ प्रकाशित हुए। 1863 में आगरा से ‘लोकहित’ का प्रकाशन हुआ। 1864 में आगरा से ‘भारत खंडामृत’ तथा 1865 में बरेली से ‘तत्वबोधिनी’ का हिन्दी में प्रकाशन हुआ। 1866 में लाहौर से ‘ज्ञानदायिनी’ तथा मुंबई से ‘शक्ति दीपक’ प्रकाशित हुए।
भारतीय पत्रकारिता के उदय काल में प्रकाशित समाचार पत्रों के उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि अधिकांश आरंभिक पत्रिकाएं उर्दू-मिश्रित हिन्दी में या बांग्ला से प्रभावित हिन्दी भाषा में थी। इस युग के पत्र-पत्रिकाओं में भारत मित्र, हिन्दी केसरी, नृसिंह, अभ्युदय, मारवाड़ी बंधु, प्रताप, कर्मयोगी, कर्मवीर, सिपाही आदि का नाम उल्लेखनीय है। बालमुकुंद गुप्त के सम्पादकत्व में ‘भारत मित्र’ में राष्ट्रीय स्वर लिए हुए रचनाएं छपती थीं।
‘नृसिंह’ में अंबिका प्रसाद बाजपेई उग्र राष्ट्रवाद का समर्थन करते थे। उनकी नीति कांग्रेस के गरम दल वालों जैसी थी। ‘अभ्युदय’ मदन मोहन मालवीय जी के संपादकत्व में प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक पत्र था जिसकी विचारधारा राष्ट्रवाद थी। साप्ताहिक ‘प्रताप’ गणेश शंकर विद्यार्थी का अविस्मरणीय पत्र था। इस पत्र ने देश पर सर्वस्व न्योछावर करने वाले युवकों को प्रेरणा दी। ‘कर्मयोगी’ क्रांतिकारी विचारधारा का समाचार पत्र था। इसे पढ़ने के कारण अनेक विद्यार्थियों को महाविद्यालय छोड़ना पड़ा। ‘कर्मवीर’ को माखनलाल चतुर्वेदी ने 1919 में शुरू किया। यह साप्ताहिक पत्र राष्ट्रीय विचारधारा से ओतप्रोत था। इसी युग में आगरकर ने ‘स्वराज्य’ और मूलचंद अग्रवाल ने ‘दैनिक विश्वमित्र’ निकाला।
भाषायी पत्रकारिता ने दिये नये आयाम: पीएम मोदी
6 जुलाई 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुवाहाटी में अग्रदूत समाचार समूह के स्वर्ण जयंती समारोह के उद्घाटन अवसर पर अपने संबोधन में कहा था कि भारत में लोकतंत्र इसलिए निहित है क्यों कि इसमें हर मतभेद को विचार-विमर्श से दूर करने का रास्ताो है। उन्होंने कहा था कि जब संवाद होता है तो समाधान निकलता है। भारत की परंपरा, संस्कृ ति, आजादी की लड़ाई और विकास यात्रा में भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता की भूमिका महत्वमपूर्ण रही है। असम तो पत्रकारिता के मामले में बहुत जागृत रहा है। असम ने ऐसे कई पत्रकार और सम्पाादक देश को दिए हैं जिन्होंरने भाषायी पत्रकारिता को नए आयाम दिए हैं। मातृभाषा का बहुत महत्व है इसलिए राष्ट्री य शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं में पढ़ाई को प्रोत्सााहन दिया गया है। सरकार का प्रयास है कि भारतीय भाषाओं में दुनिया को बेहतरीन कंटेंट उपलब्धष हो इसके लिए राष्ट्री य भाषा अनुवाद मिशन पर काम किया जा रहा है। यह प्रयास भी किया जा रहा है कि ज्ञान और जानकारी के भंडार इंटरनेट का हर भारतीय भाषा में प्रयोग किया जा सके इसके लिए भाषायी प्लेाटफॉर्म लॉन्चर किया गया है। ताकि लोग ज्ञान और जानकारी के इस आधुनिक स्रोत के जरिए अपनी भाषा में सरकारी सुविधाओं की जानकारी प्राप्तऔ कर सकें।
Tags

विजय कुमार राय

विजय कुमार राय (वरिष्‍ठ संवाददाता)
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। साल 2012 से दूरदर्शन के ‘डीडी न्यूज’ से जुड़कर छोटी-बड़ी खबरों से लोगों को रू-ब-रू कराया। उसके बाद कुछ सालों तक ‘कोबरापोस्ट’ से जुड़कर कई बड़े स्टिंग ऑपरेशन के साक्षी बने। वर्तमान में ये हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ और ‘नवोत्थान’ के वरिष्‍ठ संवाददाता हैं। इन दिनों देश की सभ्यता-संस्कृति और कला के अलावा समसामयिक मुद्दों पर इनकी लेखनी चलती रहती है।