खस्ताहाल स्कूल डरे-सहमे शिक्षक

युगवार्ता    19-Jan-2024   
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इन दिनों बिहार में शिक्षकों और सरकार में एक युद्ध-सा ठना दिखता है। राज्य सरकार ने जिस तरह से एक अधिकारी के भरोसे स्कूली शिक्षा को छोड़ दिया है, वह चिंताजनक है।
 
बिहार स्कूल
च्चे स्कूल आकर शिक्षा ग्रहण करें, यह किसका दायित्व है? बिहार सरकार के अनुसार यह शिक्षकों, विशेषकर प्रधानाध्यापक का काम है। इसलिए उनसे कहा गया है कि वे अपने स्कूल में कम से कम 50 से 75 प्रतिशत उपस्थिति सुनिश्चित कराएं। जिन स्कूलों में उपस्थिति पचास प्रतिशत से कम है, उनके प्रधानाध्यापकों से कहा गया है कि वे स्कूल में छुट्टी होने के बाद जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय जाकर कारण स्पष्‍ट करें कि ऐसा क्यों हो रहा है। साथ में यह भी कि बच्चों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने के क्या उपाय किए जा रहे हैं। ध्यान रहे, ऐसा प्रति दिन करना है। यदि वह प्रधानाध्यापक बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने में सफल नहीं हुआ तो उस विद्यालय के शिक्षकों की वेतन रोक दी जाएगी। इसलिए इन दिनों जिला शिक्षा पदाधिकारियों के कार्यालय में भीड़ लगी होती है। बेचारे प्रधानाध्यापक उसी प्रकार मिमियाते सफाई देते दिखते हैं, जैसे स्कूल में बच्चे। इसका बच्चों की उपस्थिति पर कितना प्रभाव पड़ेगा, यह तो बाद की बात है। पहले यह सोचिए कि जो शिक्षक जिला मुख्यालय से 50 से 80 किलोमीटर दूर के किसी ग्रामीण स्कूल में पदस्थापित है, वह शाम के पांच बजे स्कूल से छुट्टी के बाद, अपने खर्चे से ही सही, जिला पदाधिकारी के कार्यालय चला तो जाएगा पर लौटेगा कैसे? इन जाड़ों में किसी तरह लौट भी गया तो उसे अगले दिन स्कूल में पढ़ाना भी है। फिर वह बच्चों को स्कूल लाने की समस्या पर कब ध्यान देगा। बच्चों को कौन-सा विषय और क्या पढ़ाना है, उसकी तैयारी कब करेगा।
साफ है कि राज्य सरकार को स्कूल आने वाले बच्चों की पढ़ाई और शिक्षा की गुणवत्ता की रत्ती भर भी चिंता नहीं है। उन्हें स्कूल में बच्चों की भीड़ लगानी है। परिणाम यह है कि एक ही दिन में सौ-सौ शिक्षक नौकरी से त्याग पत्र दे रहे हैं। आश्‍चर्य की बात है कि त्याग पत्र देने वाले अधिकांश शिक्षक अभी हाल ही में प्रतियोगिता परीक्षा के माध्यम से नौकरी में आए थे। इनमें से एक बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों से आए शिक्षकों की बतायी जाती है। शिक्षकों के बीच से बातें आ रही हैं कि जब से शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने मोर्चा संभाला है, शिक्षकों के लिए काम करना कठिन हो गया है। शिक्षक व्हाट्स ऐप पर संदेशों का आदान-प्रदान नहीं कर सकते। उन्हें निलंबित करने की धमकी दे दी जाती है। विद्यालय हो या विश्‍वविद्यालय, वहां शिक्षक संघ नहीं है। बिहार के शिक्षकों पर इस कारण भी कार्रवाई की बात कही जा रही है। ऐसे में कौन यहां काम करना चाहेगा। जो व्यक्ति इतना पढ़-लिखकर और अपना राज्य छोड़ बच्चों को पढ़ाने आया है। वह इस तरह के वातावरण में कैसे रह पाएगा। ऐसे शिक्षकों की भी कमी नहीं है, जो नियुक्ति पत्र लेने को ही तैयार नहीं हैं। इनमें बहुतेरे नियोजित शिक्षक भी हैं, जिनको दूर-दराज के क्षेत्र में योगदान देने को कहा गया है। परन्तु वे अपने पास के स्कूल की नौकरी छोड़कर कहीं और जाने को इच्छुक नहीं हैं। कारण जो भी हो इतने सारे शिक्षकों का त्याग पत्र और नियुक्ति पत्र ना लेना शिक्षा विभाग की कार्य प्रणाली पर सवाल तो खड़ा करता ही है।
ध्यान से देखेंगे तो समस्या दोनों तरफ से है। सरकार की ओर से यह साफ नहीं है कि इस सब कसरत का उद्देश्‍य क्या है? क्या राज्य सरकार शिक्षकों को तंग करना चाहती है या फिर कुछ और। इतना तो तय है कि सरकारी स्कूलों को प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी की तरह नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि बिहार के स्कूलों में उतनी सुविधा और वेतन नहीं है, जितनी होनी चाहिए। शिक्षा का जो वर्तमान ढांचा है, उसमें शिक्षकों के सहयोग के बिना कुछ भी अच्छा हासिल नहीं किया जा सकता। और शिक्षकों का सहयोग तब तक नहीं मिलने वाला जब तक कि शिक्षकों की बातें सुनकर उनकी समस्‍याओं और सुझावों पर गौर नहीं किया जाएगा। समस्या यह है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा। जो सुझाव देने जाएगा उसे निलम्बन की धमकी दे दी जाएगी। ऐसे में शिक्षकों का अधिकांश समय तो नौकरी बचाने में ही जा रहा है।

के.के. पाठक 
“यदि राज्य सरकार जरा सा भी गम्भीर होती तो स्थानीय निकाय के चुने हुए प्रतिनिधियों और समाज के गणमान्य लोगों को साथ लेकर बच्चों के माता पिता को इसके लिए उत्साहित किया जा सकता था कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने पर गंभीरता से सोचें। पर के.के. पाठक तो मंत्री महोदय की भी नहीं सुनते, तो वह शिक्षकों या लोगों की क्या सुनेंगे।   - के.के. पाठक, अपर मुख्य सचिव, शिक्षा”
 
शिक्षकों के साथ समस्या यह है कि उनसे पढ़ाने के अलावा ढेर सारा काम लिया जाता है। जनगणना और वोटर लिस्ट सुधारने का काम तो है ही, समस-समय पर उन्हें मवेशियों की गिनती का काम भी पकड़ा दिया जाता है। अभी उन्हें एक और समस्या से जूझना पड़ रहा है, वह है, नामांकन में उम्र का हिसाब-किताब। सरकार के दिशा-निर्देश के अनुसार 12 साल का बच्चा पहली बार स्कूल में नामांकन के लिए आता है तो उसे छठी कक्षा में प्रवेश दिया जाएगा। अब शिक्षक उस बच्चे को बाकी के बच्चों के साथ कैसे पढ़ाएं, जिसको ककहरा भी नहीं आता। पर सरकार का कहना है कि यह आपका काम है कि आप उसे बाकी के बच्चों के समकक्ष लाएं। बेचारे शिक्षक करें तो क्या करें? प्रधानाध्यापक महोदय स्कूल की व्यवस्था पर ध्यान दें या बच्चों की पढ़ाई पर। निश्चित रूप से स्कूलों में आवश्‍यक सुविधाएं होनी चाहिए परन्तु पहली प्राथमिकता पढ़ाई होनी चाहिए।
इस बीच पटना उच्च न्यायालय ने प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त किए गए बीएड शिक्षकों की नियुक्ति को अवैध ठहरा दिया है। ऐसे शिक्षकों की संख्या 22 हजार बतायी जाती है, जिन्हें साल 2021-2022 में नियुक्त किया गया था। एक झटके में ये लोग किनारे लगा दिए जाएंगे। यह सरासर राज्य सरकार की गलती है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय एनसीईटी के 2018 के उस अधिसूचना को पहले ही खरिज कर चुकी थी जिसके अनुसार बीएड डिग्री धारकों को प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्ति का पात्र बताया गया था। फिर भी राज्य सरकार ने उसी अधिसूचना के आधार पर बीएड वालों को प्राथमिक विद्यालयों का शिक्षक बना दिया। जबकि उन्हें प्राथमिक शिक्षा के लिए प्रशिक्षित ही नहीं किया जाता है। अब राज्य सरकार कह रही है कि न्यायालय के निर्णय के अध्ययन के बाद ही आगे सोचा जाएगा।
कुल मिलाकर देखें तो बिहार के स्कूलों की हालत अस्त-व्यस्त है। कुछ शिक्षक बताते हैं कि अधिकांश स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति पचास प्रतिशत से कम है। फिर भी रिपोर्ट भेजी जा रही है कि ढेर सारे बच्चे स्कूल आ रहे हैं। क्या यह सब अधिकारियों की सहमति के बिना हो रही होगी। वैसे भी सोचने की बात है कि लाखों बच्चों के भविष्‍य को एक प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के भरोसे कैसे छोड़ा जा सकता है। पर बिहार में नीतीशे कुमार हैं। कुछ भी कर सकते हैं।
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संजय कुमार झा

संजय कुमार झा, वरिष्ठ् पत्रकार
आप पिछले दो दशक से अधिक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर सहित कई पत्र -पत्रिकाओं और न्यूज चैनलों के लिए रिपोर्टिंग और संपादन का काम किया है। आप विगत पांच वर्षों से कानूनी विषयों पर युगवार्ता पत्रिका के लिए लिख रहे हैं।