मंदिर में विराजे रामलला

युगवार्ता    06-Feb-2024   
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लगभग पांच शताब्दियों के लंबे संघर्ष के दौरान हर रामभक्त की यही इच्छा रही कि उसकी आंखों के सामने रामलला का मंदिर बने। श्रीरामलला को अपनी जन्मभूमि पर आने में देरी हुई, लेकिन अब आये हैं तो पूरे ठाटबाट से। भाव-विभोर कर देने वाले इस दिन की प्रतीक्षा में कई पीढ़ियां अधूरी कामना लिए इस धराधाम से साकेतधाम में लीन हो गईं। पुरखों के तप, त्याग, संघर्ष व बलिदान के बाद प्राप्त इस चिरप्रतिक्षित नवविहान को देख भारत का वर्तमान आनन्दित हो उठा है। भाग्यवान है हमारी पीढ़ी जो इस राम-काज का साक्षी बनी। हमारे पुरखे हमारी आंखों से यह दृश्य देखकर मगन हो रहे होंगे। अगर यह कहें कि भव्य, दिव्य व नव्य मंदिर में रामलला की प्रतिष्ठापना के साथ ही अधूरी इच्छा लिये साकेत लोक चली जाने वाली हमारी पीढ़ियां तर गईं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

Ramlallaa
 
त्रेता में तो भगवान श्रीराम का वनवास केवल 14 वर्षों का था, लेकिन कलियुग का वनवास लगभग 500 वर्षों का रहा। इस दौरान भगवान राम अपनी जन्मभूमि में प्रतिष्ठापित होने के क्रम में कभी चबूतरे पर रहे तो कभी टेंट में। अब जाकर वे अपनी दिव्य, भव्य व अलौकिक जन्मभूमि पर पांच वर्ष के अबोध बालक के रूप में प्रतिष्ठापित हो चुके हैं। जन्मभूमि में प्रतिष्ठापित होने में देर तो हुई, लेकिन भगवान श्री रामलला अब पूरे ठाटबाट से आये हैं। अयोध्या में रामलला के भव्य मंदिर में विराजमान होने का सपना आखिरकार साकार हो गया।
रामलला की इस पौराणिक नगरी ने जितना संघर्ष देखा है, उतना किसी ने नहीं देखा होगा। जिस धरा पर रामलला ने जन्म लिया, जहां उन्होंने 14 वर्षों के वनवास के बाद शासन किया, जहां का रामराज आज भी जनशासन के उत्कृष्ट उदाहरण के तौर पर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। उसी धरा पर अपने महल में विराजमान होने के लिए रामलला को वनवास से भी कहीं ज्यादा संघर्ष करना पड़ा। 500 वर्षों के लंबे संघर्ष के दौरान हर रामभक्त की यही इच्छा रही कि उसकी आंखों के सामने रामलला अपनी जन्मभूमि में विराजमान हों। लेकिन, कई पीढ़ियां इस इंतजार में परलोक चली गईं। अब जिनकी आंखों के सामने रामलला अपने नव्य, भव्य व दिव्य मंदिर में प्रतिष्ठित हुए हैं उन्हें किंचित भी संदेह नहीं है कि उनकी पीढ़ियों का बलिदान सार्थक हुआ और वे तर गईं।
22 जनवरी पौष माह के द्वादशी तिथि को अभिजीत मुहूर्त मृगषिरा नक्षत्र में दोपहर 12:26 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे शास्त्रीय विधि विधान के अनुरूप श्रीराम जन्मभूमि परिसर में नवनिर्मित मंदिर में रामलला की पूजा-अर्चना की और इसके बाद मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की व रामलला के नए विग्रह की पहली आरती उतारी। अंत में प्रधानमंत्री मोदी रामलला के चरणों में साष्टांग हो गए। प्राण प्रतिष्ठा की विधि दोपहर 12:20 बजे से शुरू हुई थी। मुख्य पूजा अभिजीत मुहूर्त में संपन्न हुई। यह मुहूर्त काशी के विद्वान गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने निकाला था। यह कार्यक्रम 84 सेकेंड के अद्भुत योग में अभिजीत मुहूर्त, इंद्र योग, मृगशिरा नक्षत्र, मेष लग्न एवं वृश्चिक नवांश में संपन्न हुआ।
“सोने के आभूषणों तथा फूलों से सजी 51 इंच की रामलला की मनोहारी मूर्ति इतनी सजीव है मानों बोल पड़ेगी। रामलला के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में हीरे- मोतियों का हार और कानों में कुंडल सुशोभित हैं। हाथ में स्वर्ण धनुष-बाण है।”
 
इस दौरान गर्भगृह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उपस्थित रहे। वहीं, रामजन्मभूमि परिसर में पूरे परिवार के साथ मुकेश अंबानी, कुमार मंगलम बिड़ला, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से लेकर रजनीकांत व सचिन तेंदुलकर तक और रामभद्राचार्य, ऋतंभरा, उमा भारती व बाबा रामदेव से लेकर आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री समेत सभी क्षेत्रों के लगभग सात हजार के आसपास चर्चित व गणमान्य लोग इस दिव्य समारोह के साक्षी बने। अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह पूरा होने के साथ ही लोगों का सदियों पुराना इंतजार भी खत्म हो गया है। रामलला गर्भगृह में विराजमान हो गए हैं। मंदिर में भगवान श्रीराम लला के बालस्वरूप की प्रतिष्ठापना के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 दिनों के तप व उपवास को निर्मोही अखाड़ा के स्वामी गोविंद देव गिरि के हाथों से जलपान कर पूरा किया। प्रधानमंत्री मोदी को गोविंद गिरी जी महाराज ने चम्मच से जल पिलाया
सोने के आभूषणों तथा फूलों से सजी 51 इंच की रामलला की मनोहारी मूर्ति इतनी सजीव है मानों बोल पड़ेगी। रामलला के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में हीरे- मोतियों का हार और कानों में कुंडल सुशोभित हैं। हाथ में स्वर्ण धनुष-बाण है। रामलला पीली धोती पहने हुए नजर आये। इस मूर्ति को मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने शालीग्राम शिला से बनाया है। शास्त्रों और धर्म ग्रंथों में श्याम रंग के शालीग्राम पत्थर को साक्षात भगवान विष्णु का स्वरूप माना गया है और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भगवान विष्णु के ही सातवें अवतार माने गए हैं। शालीग्राम शिला की आयु हजारों साल होती है। यह जल रोधी होती है। चंदन और रोली लगाने से मूर्ति की चमक प्रभावित नहीं होगी।
“रामलला के विग्रह को मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज ने शालीग्राम शिला से बनाया है। शास्त्रों में शालीग्राम पत्थर को साक्षात भगवान विष्णु का स्वरूप माना गया है और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भगवान विष्णु के ही सातवें अवतार हैं। ”
 
नख से शिखा तक रामलला की मूर्ति की कुल ऊंचाई 51 इंच है और वजन करीब 200 किलो है। यह अचल मूर्ति है जबकि रामलला की पुरानी मूर्ति चल मूर्ति होगी। इस मूर्ति को अयोध्या की पंचकोसी परिक्रमा करायी जाएगी। यहां के मंदिरों में ले जाया जाएगा। उस मूर्ति को भी राम मंदिर के गर्भगृह में नई प्रतिमा के साथ ही रखा गया है। प्राण प्रतिष्ठा के संपन्न होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने जो एक विशेष कार्य किया उसने एक बार फिर सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। प्राण प्रतिष्ठा के ठीक बाद प्रधानमंत्री मोदी राम मंदिर निर्माण में शामिल रहे कर्मियों-श्रमिकों से मिले और उन पर पुष्प बरसाए। उन्होंने इस दौरान सियावर रामचंद्र की जय का उद्घोष किया। उन्होंने श्रमिकों का बार-बार आभार जताया और राम मंदिर के निर्माण के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।
बहरहाल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देखरेख में त्रेतायुग में जिस तरह से अयोध्या का वैभव था, उसी के अनुसार इसको संवारा गया है। संपूर्ण अयोध्या को नए सिरे से एक ऐसी आधुनिक नगरी के तौर पर तैयार किया गया है जहां आकर हर कोई हतप्रभ रह गया। यहां के कण-कण में श्रीराम का दर्शन हो रहा है। प्रयास है कि पूरी तरह राममय अयोध्या में श्रद्धालुओं को कभी न भूलने वाला अद्भुत एहसास हो। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट अयोध्या के वैभव और आत्मा के अनुरूप तैयार किया गया है। साथ ही अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन का पुनर्विकास अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुरूप हुआ है। रेलवे स्टेशन पर कदम रखते ही रामभक्तों को एक अलौकिक एहसास होगा। इसका आर्किटेक्चर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर से प्रेरित है। राम मंदिर की पहली झलक स्टेशन पर ही नजर आ जाएगी। रामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद से ही देश से लाखों लोग अयोध्या पहुंच रहे हैं। ऐसे में केंद्र सरकार से लेकर यूपी सरकार ने अयोध्या को सुविधाजनक परिवहन से जोड़ने वाले हर साधन को बेहतर बनाने का काम किया है।
राम आग नहीं, ऊर्जा हैं: प्रधानमंत्री
अयोध्या में मुख्य यजमान के रूप में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीराम के चरित्र की व्याख्या की। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज हमारे राम आ गए हैं, राम सदियों की प्रतीक्षा के बाद आए हैं। इस मौके पर मेरा कंठ अवरुद्ध है। अब रामलला टेंट में नहीं बल्कि दिव्य मंदिर में रहेंगे। आज से हजार साल बाद भी लोग आज की इस तारीख की, आज के इस पल की चर्चा करेंगे। ये कितनी बड़ी राम कृपा है कि हम सब इस पल को जी रहे हैं और इसे साक्षात घटित होते देख रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने देश की जनता से राम के गुणों को आत्मसात करने की अपील की। उन्होंने कहा कि हर युग में लोगों ने राम को जीया है। हर युग में लोगों ने अपने-अपने शब्दों में, अपनी तरह से राम को अभिव्यक्त किया है। यह राम रस जीवन प्रवाह की तरह निरंतर बहता रहता है। कुछ लोग कहते थे कि राम मंदिर बना तो आग लग जाएगी। उन सबसे कहना चाहूंगा कि आइए, महसूस कीजिए। राम आग नहीं, ऊर्जा हैं। राम विवाद नहीं, समाधान हैं। राम सिर्फ हमारे नहीं, राम सबके हैं। राम अनंत हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा, वसुधैव कुटुंबकम के विचार की भी प्रतिष्ठा है। ये साक्षात मानवीय मूल्यों और सर्वोच्च आदर्शों की भी प्राण प्रतिष्ठा है। कई देशों ने इतिहास की गांठ को जब खोलने की कोशिश की, परिस्थितियां और जटिल हो गईं। लेकिन भारत ने जिस परिपक्वता के साथ इतिहास की इस गांठ को न सिर्फ खोला है, बल्कि सुलझाया है। वह इस बात का संकेत है कि भारत का भविष्य उज्ज्वल है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि ये मंदिर, मात्र एक देव मंदिर नहीं है, ये भारत की दृष्टि का, भारत के दर्शन का, भारत के दिग्दर्शन का मंदिर है। ये राम के रूप में राष्ट्र चेतना का मंदिर है। राम भारत की आस्था हैं, राम भारत का आधार हैं, राम भारत का विचार हैं, राम भारत का विधान हैं, राम भारत की चेतना हैं, राम भारत का चिंतन हैं, राम भारत की प्रतिष्ठा हैं, राम भारत का प्रताप हैं, राम प्रभाव हैं, राम प्रवाह हैं, राम नेति भी हैं, राम नीति भी हैं, राम नित्यता भी हैं, राम निरंतरता भी हैं, राम व्यापक हैं, विश्व हैं, विश्वात्मा हैं इसलिए जब राम की प्रतिष्ठा होती है तो उसका प्रभाव शताब्दियों तक नहीं होता, उसका प्रभाव हजारों वर्षों तक होता है। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा कि आज मैं पूरे पवित्र मन से महसूस कर रहा हूं कि कालचक्र बदल रहा है। यह सुखद संयोग है कि हमारी पीढ़ी को एक कालजयी पथ के शिल्पकार के रूप में चुना गया है। हजारों वर्ष बाद की पीढ़ी राष्ट्र निर्माण के हमारे आज के कार्यों को याद करेगी, इसलिए मैं कहता हूं यही समय है, सही समय है। प्रधानमंत्री मोदी ने रावण का जिक्र करते हुए कहा कि लंकापति महाज्ञानी थे। पराक्रम के धनी थे। पर आप जटायु को देखिए, उन्हें पता था कि वह लंकापति को परास्त नहीं कर पाएंगे। फिर भी वह भिड़ गए। यही भारत के निर्माण का आधार बनेगा। प्रधानमंत्री ने राम के प्रति समर्पण को राष्ट्र के प्रति समर्पण से जोड़ देने का संकल्प दिलाया और कहा कि प्रभु को जो भोग चढ़ेगा, वह भारत के परिश्रम की पराकाष्ठा का प्रसाद भी होगा। उन्होंने कहा कि यह भारत के विकास का अमृतकाल है। आज भारत युवा शक्ति से भरा हुआ है। ऐसी परिस्थितियां न जाने कितने समय बाद बनेंगी। हमें अब बैठना नहीं है, चूकना नहीं है।
रामलला के साथ भारत का स्व लौटाः मोहन भागवत
श्री रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान पूरा होने के बाद मंदिर परिसर में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आज 500 वर्षों बाद रामलला यहां लौटे हैं और जिनके प्रयासों से हम आज का यह स्वर्ण दिन देख रहे हैं उन्हें हम कोटि-कोटि नमन करते हैं। इस युग में राम लला के यहां वापस आने का इतिहास जो कोई भी श्रवण करेगा उसके सारे दुख-दर्द मिट जाएंगे, इतना इस इतिहास में सामर्थ्य है। प्रधानमंत्री मोदी के 11 दिन के कठोर व्रत का जिक्र करते हुए भागवत ने कहा, इस समारोह के लिए प्रधानमंत्री ने कठोर व्रत रखा। मेरा उनसे पुराना परिचय है और वो तपस्वी ही हैं। अयोध्या में रामलला आए, अयोध्या से बाहर क्यों गए थे? अयोध्या उस पुरी का नाम है जिसमें कोई द्वंद नहीं, कोई कलह नहीं है। राम जी 14 वर्ष बाद वापस आए और कलह खत्म हुआ। रामलला के इस युग में आज के दिन फिर वापस आने का इतिहास जो श्रवण करेगा उसका हर दुख मिटेगा, प्रधानमंत्री मोदी ने तप किया अब हमको भी तप करना है। रामराज्य के सामान्य नागरिकों का जो वर्णन है हम भी इस भारत देश की संतानें हैं। हमें सारे कलह को विदाई देनी पड़ेगी, छोटे-छोटे कलह को लेकर लड़ाई करने की आदत छोड़नी होगी। आज अयोध्या में रामलला के साथ भारत का स्वर लौट आया है। पूरे विश्व को त्रासदी से राहत देने वाला एक नया भारत खड़ा होकर रहेगा। आज का कार्यक्रम इसी का प्रतीक है। जोश की बातों में होश की बातें करने का काम मुझे सौंपा जाता है। रामलला तो आ गए, अब रामराज्य लाने की जिम्मेदारी रामभक्तों की है। सभी सत्य, करुणा, सुचिता, अनुशासन और परोपकार के लिए आगे बढ़ें। अपने जीवन में लालच छोड़कर अनुशासन में रहने से रामराज्य आएगा। सब मिलकर चलेंगे और अपने देश को विश्व गुरु बनाएंगे। पांच सौ वर्ष के संघर्ष के बाद ये घड़ी आई है। आज के दिन जिन्होंने संघर्ष किया, उन्हें याद करने का दिन है। उनका ये व्रत हमें आगे लेकर जाना है। जिस धर्मस्थापना को लेकर रामलला आए हैं, उनका आदेश सिर पर लेकर हम यहां से जाएं।
 
मंदिर वहीं बना, जहां का संकल्प थाः योगी आदित्यनाथ
भगवान रामलला की जय व भारत माता की जय तथा जय जय सीताराम से अपने उद्बोधन की शुरुआत कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि आज इस ऐतिहासिक अवसर पर भारत का हर नगर, हर ग्राम अयोध्या धाम है। हर मन में राम नाम है। हर आंखे हर्ष और संतोष के आंसू से भीगी हैं। हर जुबान राम नाम जप रही है। रोम-रोम में राम रमे हैं। ऐसा लगता है कि हम त्रेतायुग में आ गए हैं। सीएम योगी ने कहा कि भारत का हर मार्ग रामजन्मभूमि की ओर आ रहा है। मंदिर वहीं बना है, जहां बनाने का संकल्प लिया था। 500 वर्षों के सुदीर्घ अंतराल के बाद आए प्रभु श्री रामलला के विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा के ऐतिहासिक और अत्यंत पावन अवसर पर आज पूरा भारत भाव-विभोर और भाव विह्वल है। श्री अवधपुरी में श्री रामलला का विराजना भारत में 'रामराज्य' की स्थापना की उद्घोषणा है। 'सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती' की परिकल्पना साकार हो उठी है। रामकृपा से अब कभी कोई भी श्री अयोध्या धाम की पारंपरिक परिक्रमा को बाधित नहीं कर सकेगा। यहां की गलियों में गोलियां नहीं चलेंगी, सरयू जी रक्त रंजित नहीं होंगी। अयोध्या धाम में कर्फ्यू का कहर नहीं होगा। यहां उत्सव होगा। रामनाम संकीर्तन गुंजायमान होगा। यहां दीपोत्सव हुआ करेंगे। पूरा राष्ट्र राममय है। आज रघुनन्दन राघव रामलला हमारे हृदय के भावों से भरे संकल्प स्वरूप सिंहासन पर विराज रहे हैं। आखिर भारत को इसी दिन की तो प्रतीक्षा थी। भाव-विभोर कर देने वाली इस दिन की प्रतीक्षा में लगभग पांच शताब्दियां व्यतीत हो गईं, दर्जनों पीढ़ियां अधूरी कामना लिए इस धराधाम से साकेतधाम में लीन हो गईं, किन्तु प्रतीक्षा और संघर्ष का क्रम सतत जारी रहा। श्रीरामजन्मभूमि, संभवत: विश्व में पहला ऐसा अनूठा प्रकरण रहा होगा, जिसमें किसी राष्ट्र के बहुसंख्यक समाज ने अपने ही देश में अपने आराध्य के जन्मस्थली पर मंदिर निर्माण के लिए इतने वर्षों तक और इतने स्तरों पर लड़ाई लड़ी हो। संन्यासियों, संतों, पुजारियों, नागाओं, निहंगों, बुद्धिजीवियों, राजनेताओं, वनवासियों सहित समाज के हर वर्ग ने जाति-पांति, विचार- दर्शन, उपासना पद्धति से ऊपर उठकर राम काज के लिए स्वयं का उत्सर्ग किया। अंतत: वह शुभ अवसर आ ही गया कि जब कोटि-कोटि सनातनी आस्थावानों के त्याग और तप को पूर्णता प्राप्त हो रही है। आज संतोष इस बात का भी है कि मंदिर वहीं बना है, जहां बनाने का संकल्प लिया था। सीएम ने आगे कहा कि संकल्प और साधना की सिद्धि के लिए, हमारी प्रतीक्षा की समाप्ति के लिए, हमारे संकल्प पूर्णता के लिए आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हृदय से आभार और अभिनंदन। गर्भगृह में वैदिक विधि-विधान से रामलला के बाल विग्रह के प्राण-प्रतिष्ठा के हम सभी साक्षी बने। अलौकिक छवि है हमारे प्रभु की। बिल्कुल वैसी जैसा संत तुलसीदास जी ने वर्णन किया है। धन्य है वह शिल्पी, जिसने हमारे मन में बसे राम की छवि को मूर्त रूप प्रदान किया। विचारों और भावनाओं की विह्वलता के बीच मुझे पूज्य संतों और अपनी गुरु परम्परा का पुण्य स्मरण हो रहा है। आज उनकी आत्मा को असीम संतोष और आनन्द की अनुभूति हो रही होगी, जिन परम्पराओं की पीढ़ियां श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ में अपनी आहुति दे चुकी हैं, उनकी पावन स्मृति को यहां पर कोटि-कोटि नमन करता हूं। श्रीरामजन्मभूमि मुक्ति महायज्ञ न केवल सनातन आस्था व विश्वास की परीक्षा का काल रहा, बल्कि, संपूर्ण भारत को एकात्मकता के सूत्र में बांधने के लिए राष्ट्र की सामूहिक चेतना जागरण के ध्येय में भी सफल सिद्ध हुआ। सदियों के बाद भारत में हो रहे इस चिरप्रतिक्षित नवविहान को देख अयोध्या समेत भारत का वर्तमान आनन्दित हो उठा है। भाग्यवान है हमारी पीढ़ी जो इस राम-काज के साक्षी बन रहे हैं और उससे भी बड़भागी हैं वो जिन्होंने सर्वस्व इस राम-काज के लिए समर्पित किया है और करते चले जा रहे हैं। जिस अयोध्या को अवनि की अमरावती और धरती का वैकुंठ कहा गया, वह सदियों तक अभिशप्त रही। उपेक्षित रही। सुनियोजित तिरस्कार झेलती रही। अपनी ही भूमि पर सनातन आस्था पददलित होती रही, चोटिल होती रही। किंतु राम का जीवन हमें संयम की शिक्षा देता है और भारतीय समाज ने संयम बनाये रखा। हर एक नए दिन के साथ हमारा संकल्प और दृढ़ होता गया। और आज देखिए पूरी दुनिया अयोध्या जी के वैभव को निहार रही है। हर कोई अयोध्या आने को आतुर है।
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बद्रीनाथ वर्मा

बद्रीनाथ वर्मा (सहायक संपादक)
देश-समाज से जुड़े विभिन्न विषयों पर बेबाक लेखन करने वाले बद्रीनाथ वर्मा ने अपनी पत्रकारिता की यात्रा ऐतिहासिक अखबार ‘दैनिक भारतमित्र‘ से शुरू की। अपने दो दशक से भी अधिक के कार्यकाल में वे कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रह चुके हैं। इन दिनों ‘युगवार्ता‘ पत्रिका में सहायक संपादक के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं।