एहसान फरामोश मालदीव

युगवार्ता    07-Feb-2024   
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मालदीव की भौगोलिक स्थिति में भारत एकमात्र देश है जिसने मालदीव के सामरिक हितों का ध्यान रखा है। साथ ही हर आपदा में उसके साथ डटकर खड़ा रहा है। लेकिन एहसान फरामोश मालदीव अब चीन की गोद में बैठने को आतुर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप जाने के बाद जिस तरह से मालदीव सरकार के मंत्रियों का बयान आया।
विदेश मंत्रालय की कड़ी आपत्ति के बाद उन्हें हटा दिया गया। यह देश की मजबूत विदेश नीति को दर्शाता है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में उन तीन मंत्रियों से ही गलती हुई या वर्तमान में जो मालदीव
सरकार है उसका रुख बदल चुका है? अगर यह सही है तो इसके पीछे के क्या कारण है?
मालदीव की भौगोलिक स्थिति में भारत एकमात्र देश है जिसने मालदीव के सामरिक हितों का ध्यान रखा है।
अगर हम इतिहास की बात करें तो मालदीव में जितनी भी समस्याएं आई। जैसे 1988 का तख्ता पलट, 2004
की सुनामी, 2014 में पीने के पानी की किल्लत या फिर कोविड में 20 करोड़ डॉलर की मदद। इन सभी
समस्याओं में सबसे पहला देश जिसने मालदीव को मदद पहुंचाई वह भारत है। मालदीव की सरकार भी इस
बात को समझ रही है। लेकिन फिर भी मालदीव की नई सरकार चीन की गोद में जाकर बैठ गई। दरअसल, पूरा
मामला चीनी कर्ज का है।
 
चीन छोटे देशों को कर्ज देकर फंसाता है और कर्ज न चुकाने की स्थिति में उनकी विदेश नीति खुद तय करने
लगता है। फिलहाल चीन और मालदीव के बीच 20 समझौते हुए हैं कहा जा रहा है कि चीन मालदीव में
आधारभूत संरचना के साथ कई अन्य प्रोजेक्ट पर काम करना चाह रहा है। चीन की यह चाहत मालदीव के
लिए खुला खतरा है। एक रिपोर्ट के अनुसार कोविड के दौरान जब ज्यादातर देशों ने मालदीव के पर्यटन उद्योग
में अपना काम बंद कर दिया था तब भी चीनी कंपनियां यहाँ पैसा लगा रही थीं। एक रिपोर्ट के अनुसार जो
पैसा मालदीव में लगा है वो बाजार से इकट्ठा पैसा नहीं हैं। बल्कि वो सीधे चीनी सरकार के बैंको से आया
पैसा है।
 
लेकिन चीनी कंपनियों का ये पैसा बाजार से इकट्ठा नहीं किया गया था। ये पैसा चीन के सरकारी
बैंकों का था। यानी ये सीधे तौर पर चीन की सरकार का पैसा था। इसका मतलब ये हुआ कि अगर चीनी
निवेश के संबंध में भविष्य में कोई विवाद हुआ या मालदीव पैसा देने में असमर्थ हो गया जिसकी सम्भावना
सबसे अधिक है। तो मामला चीन की अदालत में जाएगा और मालदीव सरकार हर्जाना भरने के लिए बाध्य
होगी। इस समझौते से चीन ने मालदीव सरकार को अपनी शर्तों से बांध दिया है। भविष्य में मालदीव में कोई
दूसरी सरकार भी आए तो उसे ये समझौता मानना होगा।
 
दूसरा प्रमुख कारण है मुस्लिम आबादी। वर्तमान सरकार मोदी और भारत विरोधी नारों के साथ ही सरकार में
आई है। 17 नवंबर 2023 को मोहम्मद मुइज्जु की सरकार बनी। मुइज्जु ने अपने चुनावी भाषणों में कहा था
कि अगर वे राष्ट्रपति बने तो भारत के सैनिकों को मालदीव से बाहर निकाल देंगे। राष्ट्रपति बनने के बाद जिस
तरह से मुइज्जु ने तुर्की और चीन की यात्रा की उससे उनकी मंशा साफ हो जाती है। लेकिन चीन और तुर्की की
गोद में बैठे मुइज्जु शायद यह भूल गए कि उनके देश की जीडीपी अभी भी भारत से आने वाले सैलानियों पर
ही निर्भर है। इस बात का उन्हें एहसास बहुत जल्द हो गया जब सोशल मीडिया पर भारतीयों ने बॉयकॉट
मालदीव ट्रेंड कर दिया। नामी हस्तियां जिसमें सलमान खान, अक्षय कुमार, जॉन अब्राहम आदि ने मालदीव का
बॉयकॉट कर लक्षद्वीप का समर्थन किया।
 
वहीं भारतीयों ने ढाई लाख से अधिक हवाई टिकटें और होटल बुकिंग कैंसिल कर दी। जिसके बाद मालदीव
सरकार ने आनन-फानन में अपने तीन मंत्रियों को सस्पेंड किया। साथ ही भारत सरकार से इसके लिए माफी
भी मांगी। 1965 में ब्रिटिश राज से आजाद हुए मालदीव को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसका इतिहास बेहद
पुराना है। यहां तक की उसके नाम में संस्कृत भाषा का इस्तेमाल किया गया है ‘माला’ और ‘दीप’ जिससे
मालदीव बना। हालांकि अभी भी वहां की पढ़ी-लिखी जनता भारत सरकार द्वारा किए गए कार्यों और मदद को
सर्वोपरि मानती है और मानती है कि भारत के प्रति मुइज्जु सरकार का रवैया ऐसा नहीं होना चाहिए। भारत
एक विश्वसनीय पड़ोसी है और दोनों देशों का साझा इतिहास रहा है। मालदीव में लोकतंत्र बचाने का श्रेय भी
भारत को जाता है जिसने 1988 में अपने सैनिकों को भेज कर आपरेशन कैक्टस के तहत वहां से उग्रपंथियों
को मार भगाया था।
 
चीन की चालाकी
भारत और मालदीव के रिश्तों में आई खटास का फायदा चीन उठा रहा है। मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद
मुइज्जू अब खुलकर चीन प्रेम दिखा रहे हैं और भारत की मदद का भी लाज नहीं रख रहे हैं। मालदीव अब
भारत की पीठ में छुरा घोंप रहा है और चीन से गलबहियां कर रहा है। इस बीच अब चीन का खतरनाक
जासूसी जहाज मालदीव की ओर जा रहा है। इसके फरवरी के पहले सप्ताह में माले पहुंचने की उम्मीद है। चीन
का यह कदम ऐसे वक्त में आया है, जब मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू नई दिल्ली से दूरी बनाते
हुए बीजिंग के साथ अपने संबंध को मजबूत कर रहे हैं।
 
एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की ओर झुकाव रखने वाले मोहम्मद मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के बाद मालदीव
के साथ द्विपक्षीय संबंधों में आई खटास के बीच भारत एडवांस निगरानी उपकरणों से लैस इस चीनी सर्वे और
रिसर्च जहाज पर बारीकी से नजर रख रहा है, जो अब माले की ओर जा रहा है। चीनी अनुसंधान पोत यानी
चीनी रिसर्च जहाज जियांग यांग होंग इंडोनेशिया के सुंडा जलडमरू मध्य के रास्ते से हिंद महासागर क्षेत्र
(आईओआर) की तरफ से मालदीव पंहुचेगा।
 
ताइवान में हारा चीन
ताइवान की सत्तारूढ़ पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार लाई चिंग-ते ने चुनाव जीत लिया है, जबकि मुख्य
विपक्षी पार्टी कुओमितांग (केएमटी) के उम्मीदवार होउ यू-इह ने हार मान ली। लाई की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव
पार्टी, जो ताइवान की अलग पहचान की वकालत करती है और चीन के क्षेत्रीय दावों को खारिज करती है, तीसरे
कार्यकाल की मांग कर रही थी, जो ताइवान की मौजूदा चुनावी प्रणाली के तहत अभूतपूर्व था। चुनावी नतीजे
और चीन द्वारा ताइवान पर अपना दावा किए जाने की वकालत अब कमजोर होगी। 1996 में अपने पहले
प्रत्यक्ष चुनाव के बाद से, ताइवान सत्तावादी शासन और मार्शल लॉ के खिलाफ दशकों के संघर्ष के बाद एक
सफल लोकतंत्र की कहानी कह रहा है। लाई को राष्ट्रपति पद के लिए दो विरोधियों का सामना करना पड़ रहा
था - केएमटी के होउ और ताइवान पीपुल्स पार्टी के पूर्व ताइपे मेयर वेन-जे, जिसकी स्थापना 2019 में ही हुई
थी। भारत और मालदीव के रिश्तों में आई खटास का फायदा चीन उठा रहा है। मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद
मुइज्जू अब खुलकर चीन प्रेम दिखा रहे हैं और भारत की मदद का भी लाज नहीं रख रहे हैं।
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सौरव राय

सौरव राय (वरिष्‍ठ संवाददाता)
इन्हें घुमक्कड़ी और नई चीजों को जानने-समझने का शौक है। यही घुमक्कड़ी इन्हें पत्रकारिता में ले आया। अब इनका शौक ही इनका पेशा हो गया है। लेकिन इस पेशा में भी समाज के प्रति जवाबदेही और संजीदगी इनके लिए सर्वोपरि है। इन्होंने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्नातकोत्तर और फिर एम.फिल. किया है। वर्तमान में ये हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ साप्ताहिक में वरिष्‍ठ संवाददाता हैं।