सीजेआई को चिट्ठी

युगवार्ता    12-Apr-2024   
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न्यायालय के हर फैसले पर प्रतिक्रिया के साथ उससे असहमत होते हुए बेंच और न्यायाधीशों पर सवाल खड़ा करना एक आम सा चलन हो गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए हरीश साल्वे सहित देश के 600 से ज्यादा वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखी है।
सोशल मीडिया के दौर में किसी को भी बिना जाने कुछ भी कहना आजकल अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा हो गया है। संविधान बनाने वाले अगर भविष्य देख पाते तो शायद कुछ कड़े प्रावधान और किए जाते। आज इसी कड़ी में न्यायालय भी शामिल हो गया है। अगर फैसला पक्ष में आया तो न्यायालय सही है अगर विपक्ष में आया तो सब बिक गए हैं। कुछ दिन पहले ही एक कार्यक्रम में प्रशांत भूषण ये कहते हुए पाए गए कि ज्यूडिशियरी भी कॉम्प्रोमाइज हो रही है। हालांकि कुछ ही दिनों बाद जब इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला आया तो वे इसे एक क्रांतिकारी कदम बता रहे थे। न्यायालय के हर फैसले पर प्रतिक्रिया के साथ उससे असहमत होते हुए बेंच और न्यायाधीशों पर सवाल खड़ा करना एक आम सा चलन हो गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए हरीश साल्वे सहित देश के 600 से ज्यादा वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखी है। वकीलों ने
यह चिट्ठी न्यायपालिका की अखंडता को कमजोर करने के उद्देश्य से एक विशिष्ट हित समूह के कार्यों के खिलाफ गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए लिखी है। उन्होंने लिखा है कि एक समूह देश में न्यायपालिका को कमजोर करने में जुटा हुआ है। वकीलों ने पत्र में न्यायपालिका पर सवाल उठाने को लेकर चिंता जाहिर की है। चिट्ठी में न्यायपालिका पर खास समूह के दबाव को लेकर और न्यायपालिका की अखंडता को कम दिखाने की कोशिशों पर भी चिंता व्यक्त की गई है। सीजेआई को लिखी चिट्ठी में वकीलों ने कहा है कि ये समूह न्यायिक फैसलों को प्रभावित करने के लिए दबाव की रणनीति अपना रहा है और ऐसा खासकर सियासी भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़े मामलों में हो रहा है। चिट्ठी में कहा गया है कि ये समूह ऐसे बयान देता है जो सही नहीं होते हैं और ये राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा करते हैं। अपनी चिट्ठी में वकीलों ने ऐसे कई तरीकों पर प्रकाश डाला है, जिनमें न्यायपालिका के तथाकथित ‘स्वर्ण युग’ के बारे में झूठी कहानियों का प्रचार भी शामिल है। लोकतंत्र की मजबूत नींव वकीलों के मुताबिक इसका उद्देश्य वर्तमान कार्यवाही को बदनाम करना और अदालतों के प्रति जनता के विश्वास को कम करना है। इसे लोकतंत्र की नींव पर हमला समझ सकते हैं। चिट्ठी में हरीश साल्वे समेत देश के सीनियर वकीलों ने लिखा है कि कानून का समर्थन करने वाले लोगों के रूप में हमें लगता है कि अपनी अदालतों के लिए आवाज उठाने का समय आ गया है। उन्होंने लिखा है कि हमें साथ आने की जरूरत है। छिपे हुए हमलों के खिलाफ बोलने की जरूरत है और यह सुनिश्चित करते हुए कि हमारी अदालतें हमारे लोकतंत्र के स्तंभ के रूप में बनी रहें, इन सोचे-समझे हमलों से बचने की जरूरत है।
 
 
चिट्ठी लिखने की वजह
दरअसल, पत्र से एक बात स्पष्ट है कि जिस तरह से अदालतें विपक्षी नेताओं से जुड़े भ्रष्टाचार के हाई प्रोफाइल मामलों से निपट रही हैं। उससे कई राजनैतिक पार्टियों को आपत्ति है। कमाल की बात यह है कि ये वही पार्टियां है जिन्हें लोकतंत्र की दुहाई देते सुना जा सकता है। केजरीवाल मामले में देश ने देखा कि किस तरह से न्यापालिका पर सोशल मीडिया द्वारा हमला करवाया गया। सीजेआई को भेजे पत्र में वकीलों ने चिंता जताते हुए कहा है कि ये निहित स्वार्थ समूह अदालतों के पुराने तथाकथित सुनहरे युग का गलत नैरेटिव गढ़ते हैं और अदालतों की वर्तमान कार्यवाही पर सवाल उठाते हैं। ये राजनैतिक लाभ के लिए जानबूझकर कोर्ट के फैसलों पर बयान देते हैं। पत्र में कहा गया है कि यह परेशान करने वाली बात है कि कुछ वकील दिन में नेताओं का बचाव करते हैं और रात में मीडिया के जरिए जज को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। इस समूह ने बेंच फिक्सिंग का पूरा सिद्धांत गढ़ा है जो कि न सिर्फ अपमानजनक और अवमानना पूर्ण है बल्कि अदालतों के सम्मान और प्रतिष्ठा पर हमला है।
 
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भारतीय जनता पार्टी के सांसद रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि भारतीय न्यायपालिका एक असाधारण संस्था है और उसे किसी भी मुद्दे पर अपनी इच्छानुसार निर्णय लेने का पूरा अधिकार है। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वरिष्ठ वकीलों द्वारा उठाई गई चिंताओं का समर्थन किया और कहा कि डराना और धमकाना कांग्रेस की  संस्कृति है। भारतीय न्यायपालिका एक असाधारण संस्था है और उसे किसी भी मुद्दे पर अपनी इच्छानुसार निर्णय लेने का पूरा अधिकार है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी स्पष्ट रूप से कहा है कि डराना और धमकाना कांग्रेस की संस्कृति है। हम हर संस्था का सम्मान करते हैं।
रविशंकर प्रसाद
वरिष्ठ भाजपा नेता
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सौरव राय

सौरव राय (वरिष्‍ठ संवाददाता)
इन्हें घुमक्कड़ी और नई चीजों को जानने-समझने का शौक है। यही घुमक्कड़ी इन्हें पत्रकारिता में ले आया। अब इनका शौक ही इनका पेशा हो गया है। लेकिन इस पेशा में भी समाज के प्रति जवाबदेही और संजीदगी इनके लिए सर्वोपरि है। इन्होंने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्नातकोत्तर और फिर एम.फिल. किया है। वर्तमान में ये हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ साप्ताहिक में वरिष्‍ठ संवाददाता हैं।