क्वेटा, 14 अक्टूबर (हि.स.)। बलोचिस्तान की प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. महरंग बलोच और बलोच सॉलिडेरिटी कमेटी (बीवाईसी) की अन्य महिला नेताओं के खिलाफ दर्ज मामलों की ताजा सुनवाई आतंकवाद विरोधी अदालत के बजाय क्वेटा जिला जेल में हुई। बीवाईसी ने इसे प्रशासनिक दमन का एक भयावह उदाहरण बताया है।
द बलोचिस्तान पोस्ट (पश्तो भाषा) की 13 अक्टूबर की रिपोर्ट के अनुसार, बलोच सॉलिडेरिटी कमेटी ने एक्स पर एक बयान में कहा कि हिरासत में ली गई महिलाओं की न्यायिक हिरासत बढ़ा दी गई है। डॉ. महरंग बलोच, सिबगतुल्लाह बलोच, बेबो बलोच, बैबर्ग बलोच और गुलजादी बलोच को मार्च में पब्लिक ऑर्डर ऑर्डिनेंस (एमपीओ) के तहत गिरफ्तार किया गया था। वे वर्तमान में हिरासत में हैं। इनकी रिमांड कई बार बढ़ाई जा चुकी है।
डॉ. महरंग बलोच के वकील इसरार बलोच ने बताया कि मामले की सुनवाई शनिवार को आतंकवाद निरोधक अदालत संख्या एक के न्यायाधीश मोहम्मद अली मुबीन ने क्वेटा जिला जेल में की। सुनवाई के दौरान अभियोजक चालान पेश करने में विफल रहा। इसके कारण आरोप नहीं लगाए जा सके और औपचारिक सुनवाई शुरू नहीं हो सकी। जज ने सुनवाई 18 अक्टूबर तक स्थगित कर दी गई।
बीवाईसी का कहना है कि जेल में सुनवाई करना पारदर्शिता को दबाने, सार्वजनिक जांच को समाप्त करने और बलोचिस्तान में शांतिपूर्ण राजनीतिक असंतोष को आपराधिक बनाने की एक गंभीर और सोची-समझी योजना है। जो पाकिस्तान के अपने संविधान और निष्पक्ष सुनवाई तथा कानून की उचित प्रक्रिया के अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन है।
उल्लेखनीय है कि बलोच यकजेहती समिति की नेता हैं। वह बलोचिस्तान में जबरन गायब किए जाने, गैर-न्यायिक हत्याओं और अन्य मानवाधिकार उल्लंघनों के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष के लिए जानी जाती है। उन्हें 2025 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया। उन्होंने 2019 में इस समिति की स्थापना की थी। उन्होंने 2023 में बलोच लॉन्ग मार्च का नेतृत्व किया। इसमें लाखों लोगों ने हिस्सा लिया। महरंग बलोच ने अपने पिता के अपहरण और भाई के जबरन गायब होने के बाद मानवाधिकारों के लिए आंदोलन शुरू किया। वह अपने संघर्ष में अहिंसक और गांधीवादी तरीकों पर जोर देती हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद