
नई दिल्ली, 30 अक्टूबर (हि.स.)। 'कोएलिशन फॉर ए जीएम-फ्री इंडिया (जीएम-मुक्त भारत गठबंधन) ने गुरुवार को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के धान की दो किस्मों को लेकर कृषि मंत्रालय को कटघरे में खड़ा किया। गठबंधन ने आरोप लगाया कि जीनोम-संपादित (एडिटेड) धान के नाम पर एक वैज्ञानिक बेईमानी की जा रही है। जीनोम-संपादित धान की किस्मों - पुसा डीएसटी-1 और डीआरआर धन 100 (कमला) के नतीजों में हेराफेरी कर उन्हें झूठे सफल प्रयोग के रूप में पेश किया गया। इस संबंध में कृषि मंत्री शिवराज सिंह को भी पत्र लिखा गया है कि वे इस संबंध में जांच करवाएं।
गुरुवार को प्रेसक्लब में आयोजित प्रेसवार्ता में जीएम फ्री इंडिया कोएलिशन की सदस्य कविता कुरुगंटी ने आरोप लगाया कि आईसीएआर के निष्कर्ष उसके अपने आंकड़ों से मेल नहीं खाते यानी आंकड़ों में हेरफेर कर के सफलता का झूठा दावा किया गया है। जीनोम-संपादित चावल की किस्मों को 'भारत के लिए चमत्कारी बीज' बताकर विज्ञान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इस तरह बिना ठोस जांच और आंकड़ों के, वैज्ञानिक फर्जीवाड़े को बढ़ावा दे कर भारत के वैज्ञानिक संस्थानों को बदनाम करने और आईसीएआर एवं अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों की साख पर धब्बा लगाने का काम किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि कृषि में वैज्ञानिक तथ्यों का गलत इस्तेमाल और वह भी सरकारी संस्थानों द्वारा करोड़ों किसानों के जीवन और आजीविका के लिए खतरनाक खिलवाड़ के अलाव और कुछ भी नहीं। 'यह बुनियादी मानवाधिकार का मसला है और इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इन चावल की इन दोनों किस्मों की घोषणा के दौरान खारी और क्षारीय मिट्टी के लिए पुसा डीएसटी-1 को गैर जीएम एमटीयू-1010 (कॉटन डोरा सन्नलू) किस्म के मुकाबले बेहतर बताया गया। इसी तरह कमला को बीपीटी 5204 (सांबा महसूरी) के मुकाबले 17 प्रतिशत अधिक उत्पादन, 20 दिन जल्दी पकने और नाइट्रोजन का बेहतर उपयोग करने वाली किस्म कहा गया। इन दावों को प्रमाणित करने वाले कोई ठोस आंकड़े मौजूद नहीं हैं। बल्कि आईसीएआर की अपनी रिपोर्टें ही उसके दावों के खोखलेपन को साबित करती हैं।
उन्होंने कृषि मंत्रालय से मांग की कि जीनोम-संपादित धान पर किए गए सभी प्रचारात्मक दावे तुरंत वापस लिए जाएं।
आईसीएआर के ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन राइस के ट्रायल आंकड़ों और प्रक्रिया की स्वतंत्र, पारदर्शी वैज्ञानिक जांच हो।
इसके साथ ही जब तक जीनोम एडिटिंग पर जैव सुरक्षा नियमन और स्वतंत्र निगरानी की व्यवस्था नहीं बनती, जीनोम-संपादित फसलों की रिलीज़ पर रोक लगाई जाए। जीनोम एडिटिंग से जुड़े सभी मामलों को सख्त नियमन के दायरे में लाया जाए और अनुसंधान एवं विकास से जुड़ी सभी रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए।
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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी