हॉकी इंडिया ने भारत को दो ओलंपिक गोल्ड दिलाने वाले के.डी. सिंह ‘बाबू’ को किया याद

युगवार्ता    30-Oct-2025
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हॉकी इंडिया ने भारत को दो ओलंपिक गोल्ड दिलाने वाले के.डी. सिंह ‘बाबू’ को किया याद


- भारतीय हॉकी के 100 वर्षों के जश्न में हॉकी इंडिया ने शुरू की विशेष श्रृंखला

- स्वर्णिम इतिहास रचने वाले दिग्गजों को किया जाएगा याद

नई दिल्ली, 30 अक्टूबर (हि.स.)। हॉकी इंडिया ने आज भारतीय हॉकी के सबसे महान खिलाड़ियों में से एक कुंवर दिग्विजय सिंह ‘बाबू’ को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने अपने अद्भुत खेल कौशल, नेतृत्व और दृष्टि से भारत की हॉकी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। ‘बाबू’ न केवल मैदान पर अपनी कलात्मक ड्रिब्लिंग और सटीक पासिंग के लिए जाने जाते थे, बल्कि उन्हें ‘मेजर ध्यानचंद’ का उत्तराधिकारी भी कहा जाता था, जिन्होंने भारत की स्वर्णिम परंपरा को आगे बढ़ाया।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में 1922 में जन्मे के.डी. सिंह ने लखनऊ में कॉलेज स्तर से हॉकी की शुरुआत की। जल्द ही उन्होंने उत्तर प्रदेश की टीम से राष्ट्रीय स्तर पर खेलते हुए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। वर्ष 1947 में पूर्वी अफ्रीका दौरे पर उन्होंने मेजर ध्यानचंद के साथ खेलते हुए 70 गोल दागकर सबको चौंका दिया था।

1948 लंदन ओलंपिक में उन्होंने भारतीय टीम के उपकप्तान के रूप में पदार्पण किया और स्वतंत्र भारत को उसका पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई। फाइनल में भारत ने ब्रिटेन को 4-0 से हराया था। इसके बाद 1952 हेलसिंकी ओलंपिक में के.डी. सिंह ने कप्तान के रूप में भारत का नेतृत्व किया और नीदरलैंड्स को 6-1 से हराकर लगातार दूसरा स्वर्ण पदक दिलाया।

उनकी अद्वितीय उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें 1953 में अमेरिका का “हेल्म्स ट्रॉफी” प्रदान किया गया, यह सम्मान पाने वाले वे पहले भारतीय थे। उसी वर्ष उन्हें एशिया का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित किया गया और बाद में 1958 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।

खेल जीवन के बाद भी उन्होंने भारतीय हॉकी को नई दिशा देने का कार्य जारी रखा। 1972 म्यूनिख ओलंपिक में वे मुख्य कोच रहे, जहां भारत ने कांस्य पदक जीता। साथ ही, उन्होंने लखनऊ और मेरठ में खेल छात्रावास स्थापित किए, ग्रामीण स्तर पर टूर्नामेंट आयोजित किए और युवा खिलाड़ियों के भोजन व रहने की व्यवस्था तक की।

के.डी. सिंह जैसे महान खिलाड़ियों ने भारतीय हॉकी की उस नींव को मजबूत किया, जिस पर आज भी देश की खेल परंपरा गर्व से खड़ी है। हॉकी इंडिया आने वाले दिनों में ऐसे ही और दिग्गज खिलाड़ियों की कहानियां साझा करेगा, जिन्होंने भारत को विश्व खेल मानचित्र पर स्वर्णाक्षरों में अंकित किया।

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हिन्दुस्थान समाचार / आकाश कुमार राय

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