छत्तीसगढ़ में देश का पहला डिजिटल जनजातीय संग्रहालय बनकर तैयार, प्रधानमंत्री 1 नवंबर को करेंगे उद्घाटन

युगवार्ता    31-Oct-2025
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वीर नारायण सिंह स्मारक सह आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संग्रहालय


आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संग्रहालय का निरीक्षण करते मुख्यमंत्री साय


संग्रहालय में ग्रामीण आदिवासी परिवेश का चित्रण


रायपुर, 31 अक्टूबर (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के नवा रायपुर में देश का पहला डिजिटल जनजातीय संग्रहालय बनकर तैयार हो गया है। बलिदानी वीर नारायण सिंह स्मारक सह आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नाम से इस संग्रहालय का उद्घाटन 1 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे। इस संग्रहालय में आदिवासियों के जीवन, जान नायकों की गौरव गाथा, लोक संस्कृति को नवीन तकनीक के साथ वर्चुअल रियलिटी के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। पचास करोड़ रुपये की लागत से पूरा परिसर 10 एकड़ की भूमि में बनाया गया है। यहां ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हुए जनजाति विद्रोहों की झांकी तैयार की गई है। संग्रहालय में सेल्फी प्वाइंट, कॉफी टेबल बुक और दिव्यांग व वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध रहेंगी। क्यूआर कोड के जरिए मोबाइल पर भी यह देखी जा सकेगी।

यहां 14 गैलरियों में ब्रिटिश काल में जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की लगभग 650 मूर्तियां लगाई गई हैं। प्रथम गैलरी में छत्तीसगढ़ की जनजातीय जीवन शैली को दर्शाया जाएगा, वहीं दूसरी गैलरी में राज्य की जनजातियों पर अंग्रेजों और स्थानीय हुकूमत के अत्याचार, तीसरी गैलरी में हल्बा विद्रोह, चौथी गैलरी में सरगुजा विद्रोह, पांचवीं गैलरी में भोपालपट्टनम विद्रोह, छठवीं गैलरी में परलकोट विद्रोह, सातवीं गैलरी में तारापुर विद्रोह, आठवीं गैलरी में लिंगागिरी विद्रोह, नौवीं गैलरी में कोई विद्रोह के दृश्य होंगे।

इसी प्रकार दसवीं गैलरी में दंतेवाड़ा के मेरिया विद्रोह, ग्यारवीं गैलरी में मुरिया विद्रोह, बारहवीं गैलरी में रानी चौरिस विद्रोह, तेरहवीं गैलरी में बस्तर के भूमकाल विद्रोह, चौदहवीं गैलरी में शहीद वीर नारायण सिंह के सोनाखान विद्रोह एवं पंद्रहवीं गैलरी में झण्डा सत्याग्रह एवं जंगल सत्याग्रह के वीर आदिवासी नायकों के संघर्ष को बखूबी चित्रण किया जा रहा है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि 1 नवंबर को अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित जिस म्यूजियम का उद्घाटन होने जा रहा है। यह आदिवासियों के संघर्ष की वह कहानी है जो दमन के विरोध में आदिवासी आंदोलन के रूप में शुरू हुई। सब की कोशिश होनी चाहिए कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी विरासत और धरोहर के बारे में जानकारी मिले। अपने समुदाय के हितों और सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए जो संघर्ष इस समुदाय ने किया है उसे सहेज कर रखना हम सबकी प्राथमिकता है।

शहीद वीर नारायण सिंह आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मारक सह संग्रहालय 50 करोड़ रुपए की लागत से तैयार किया जा रहा है। यहां 14 गैलरियों में अंग्रेजी हुकूमत काल में जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की लगभग 650 मूर्तियां लगाई गई है। जनजातीय विद्रोहों के बारे में लोग आसानी से समझ सके, इस लिहाज से डिजिटल व्यवस्था भी की गई है।

आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संग्रहालय देश के पहला आदिवासी डिजिटल संग्रहालय है। आदिवासी संग्रहालय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के माध्यम से संग्रहालय में कैमरा लगाया गया है, जिसमें कई ऐसी तकनीक विकसित की गई है। जिसमें कैमरे के सामने जाने पर पूरी वेशभूषा आदिवासियों की तरह हो जाएगी। आदिवासियों के पोशाक, उनके रहन-सहन सहित उनकी पृष्ठभूमि आपके बैकग्राउंड में आ जाएगा। इसमें कुल 16 गैलरियां बनाई जा रही हैं जिसमें राज्य के तमाम वैसे आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में और आंदोलन के बारे में जानकारी दी जाएगी जो छत्तीसगढ़ से शुरू हुए।

इन आंदोलनों में हल्बा विद्रोह (1774-1779), सरगुजा विद्रोह (1792), भोपालपट्टनम विद्रोह (1795), परलकोट विद्रोह (1824-1825), तारापुर विद्रोह (1842-1854), मेरिया विद्रोह (1842-1863), कोई विद्रोह (1859), लिंगा गढ़ विद्रोह (1856), सोनाखान विद्रोह (1857), रानी-चो-चेरस आंदोलन (1878) तथा भूमकाल विद्रोह शामिल हैं।

आदिम जाति विकास मंत्री रामविचार नेताम ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की परिकल्पना का परिणाम है कि जनजातीय वर्गों के ऐतिहासिक गौरव गाथा, शौर्य और बलिदान का प्रतीक संग्रहालय-सह स्मारक लोगों के समर्पित हो रहा है और यह संग्रहालय नई पीढ़ियों को पुरखों की वीर गाथाओं को अवस्मरणीय बनाएगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / केशव केदारनाथ शर्मा

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