भारत में शुरू हुई और यहीं थमी मार्कस रेम और स्टेफी नेरियस की 16 साल की जादुई साझेदारी

युगवार्ता    04-Oct-2025
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मार्कस रेम  और स्टेफी नेरियस


-मार्कस ने अपनी कोच के साथ जो यात्रा 2009 में भारत में शुरू की, वह अंततः भारत में ही समाप्त हुई

नई दिल्ली, 4 अक्टूबर (हि.स.)। जब मार्कस रेम ने वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप 2025 में 8.43 मीटर की लंबी छलांग लगाई, तो उन्होंने न सिर्फ अपना लगातार आठवां विश्व खिताब जीता, बल्कि पैरा खेल इतिहास की सबसे यादगार साझेदारियों में से एक का समापन भी किया। इस स्वर्ण पदक के पीछे एक गहरी और सशक्त कहानी थी — एथलीट और कोच के बीच का 16 साल पुराना रिश्ता, जो भारत में शुरू हुआ और संयोग से भारत में ही समाप्त हुआ।

सोलह साल पहले, एक दुबला-पतला जर्मन लड़का और उनकी नई कोच पहली बार बैंगलोर के एक खचाखच भरे स्टेडियम में साथ उतरे थे। किशोरावस्था का वह खिलाड़ी अनुभवहीन था, लेकिन जुनून से भरा हुआ था। 14 साल की उम्र में वेकबोर्डिंग दुर्घटना में अपना दायां पैर खोने के बाद वह खुद को फिर से खोज रहा था। दूसरी ओर, कोच स्टेफी नेरियस पहले से ही विश्व चैम्पियन थीं। एक ऐसी भाला फेंक खिलाड़ी, जिसने दबाव का भार झेला था और जीत का स्वाद चखा था।

स्पर्धा के बाद रेम ने कहा, “वह प्रतियोगिता भारत में ही हमारी शुरुआत थी। वह हमारी पहली विदेशी प्रतियोगिता थी। मैं घबराया हुआ था, खुद को लेकर असमंजस में था, लेकिन स्टेफी ने मुझे विश्वास दिलाया। वहीं से यह शानदार सफर शुरू हुआ। अब जब यह भारत में खत्म हो रहा है, तो लगता है मानो जीवन ने यह कहानी खुद लिखी हो।”

जैसे ही जर्मनी का राष्ट्रगान बजा और उनके गले में पदक डाला गया, रेम ने एक बार फिर अपने हेडबैंड को छुआ। यह छोटा सा इशारा था, लेकिन उनके लिए इसका गहरा अर्थ था। वह कहते हैं, “स्टेफी अब अपने वीकेंड और परिवार के साथ समय बिताने की हकदार हैं। मैं जो कुछ भी हूं, उसमें उनका बहुत बड़ा योगदान है।”

रेम के लिए खेल हमेशा पहचान का माध्यम थे। वह याद करते हैं, “मैं वही बच्चा था जो तेज दौड़ता था, दूर तक कूदता था, लेकिन हादसे के बाद, एक दिन में ही मैंने सब खो दिया। मानो अपनी पहचान खो दी हो।”

नेरियस समझती थीं। उनका नजरिया सिर्फ तकनीक या फिटनेस तक सीमित नहीं था। यह उस किशोर की आत्मा को फिर से जगाने के बारे में था, जिसे लगता था कि उसके सपने खत्म हो चुके हैं। प्रशिक्षण सत्रों में उतनी ही बातचीत होती जितनी ड्रिल्स। वह हमेशा उसे याद दिलातीं कि जिस इंसान को वह फिर से पाना चाहता है, वह कहीं गया नहीं है — बस उसे दोबारा खोजने की जरूरत है।

नेरियस ने अपने शिष्य के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “मैंने रेम और इसने मुझे अलग पहचान दिलाई। मेरा काम सिर्फ इसे रास्ता दिखाना था और मुझे खुशी है कि मैं ऐसा करने में सफल रही।”

उनकी उपलब्धियों का रिकॉर्ड केवल कहानी का एक हिस्सा है। जब रेम ने शुरुआत की थी, तो कृत्रिम पैर वाले खिलाड़ियों का लंबी कूद विश्व रिकॉर्ड 7 मीटर से भी कम था। नेरियस की कोचिंग में उन्होंने हर दीवार तोड़ दी। पहले 7 मीटर, फिर 7.50, फिर 8 मीटर का जादुई आंकड़ा, और आखिरकार 2023 में 8.72 मीटर की चौंकाने वाली छलांग — जो सक्षम खिलाड़ियों को भी चुनौती देती है।

रेम न कहा, “वह हमेशा मुझे मेरी सीमाओं से आगे ले जाती रहीं। जब भी मुझे लगता था कि अब और नहीं हो सकता, वह दिखातीं कि एक और कदम बाकी है।”

लेवरकुज़न में प्रशिक्षण के दौरान नेरियस अपनी शांति और सख्ती के लिए जानी जाती थीं। वह हर बारीकी पर ध्यान देतीं — टेकऑफ का कोण, रन-अप की लय, कूद का टाइमिंग। लेकिन इसके साथ ही उनकी मानवीय संवेदनशीलता भी उतनी ही गहरी थी। साथी खिलाड़ी अक्सर कहते थे कि दोनों का रिश्ता कोच और खिलाड़ी से ज्यादा, परिवार जैसा लगता था।

रेम ने भी माना कि उनका रिश्ता “सिर्फ कोच और खिलाड़ी का नहीं था।”। वे साथ में दुनिया घूमे, लंबी तैयारियों से गुज़रे, चोटों से लड़े और जीत का जश्न मनाया। रेम ने कहा, “वह मेरे जीवन का आधा हिस्सा मेरे साथ रहीं। एथलीट के तौर पर, इंसान के तौर पर — उन्होंने मुझे बदल दिया।”

कई बार देखा जाता था कि एयरपोर्ट पर थके हुए रेम का किट बैग नेरियस खुद उठातीं। या फिर देर रात तक वीडियो देखकर उनके जंप का बारीकी से विश्लेषण करतीं, ताकि अगले 10 सेंटीमीटर का रास्ता खोजा जा सके। रेम ने कहा, “उनकी चिंता सिर्फ ट्रैक तक सीमित नहीं थी। वह मेरी भी परवाह करती थीं।”

रेम की कहानी यहां खत्म नहीं होती। वह पहले ही एम्स्टर्डम के डच प्रशिक्षण समूह से जुड़ने का निर्णय ले चुके हैं, जहां वह विश्व चैम्पियन फ्लेर जोंग के साथ अभ्यास करेंगे। उन्हें अब भी अपने 8.72 मीटर विश्व रिकॉर्ड को तोड़ने का सपना है।

वह कहते हैं, “मैं अब भी सपने देखने वाला हूं। अभी और दूरी बाकी है।”

लेकिन उनकी यात्रा चाहे जहां भी ले जाए, उसका एक हिस्सा हमेशा स्टेफी नेरियस का रहेगा क्योंकि एक ऐसी दुनिया में, जहां खिलाड़ी और कोच के रिश्ते अक्सर दबाव में टूट जाते हैं, उनका रिश्ता कायम रहा। वह भी 16 साल तक और इस सफर में दोनों ने आठ विश्व खिताब और एक विश्व रिकॉर्ड बनाया। लेकिन पदकों से परे यह रिश्ता सम्मान, देखभाल और विश्वास पर टिका था।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील दुबे

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