राष्ट्रीय अभिलेखागार की “सुशासन और अभिलेख 2025” प्रदर्शनी 10 अक्टूबर को

युगवार्ता    08-Oct-2025
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राष्ट्रीय अभिलेखागार (फाइल फोटो)


नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (हि.स.)। भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (एनएआई) सुशासन माह के तहत 10 अक्टूबर को डॉ. अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में सुशासन और अभिलेख 2025 नामक प्रदर्शनी का आयोजन करने जा रहा है। इस प्रदर्शनी का उद्घाटन केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत शुक्रवार को करेंगे। इस प्रदर्शनी में अभिलेखों के चयनित संग्रह प्रदर्शित किए जाएंगे जो सुशासन के स्तंभों के रूप में पारदर्शिता, जवाबदेही और अभिलेख-संरक्षण के महत्व को दर्शाता है। यह प्रदर्शनी भारत के प्रशासनिक विकास और प्रभावी शासन में दस्तावेज़ीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है।

प्रदर्शनी का एक विशेष खंड अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को समर्पित है। यह प्रदर्शनी 12 अक्टूबर तक चलेगी।

संस्कृति मंत्रालय के अनुसार प्रदर्शनी में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की शुरूआत और चुनाव सुधारों को प्रदर्शित किया जाएगा।

इसके अलावा विजय दिवस समारोह और पंचायती राज की उन्नति से संबंधित दस्तावेज, टिहरी बांध और सरदार सरोवर बांध जैसी प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के अभिलेख प्रस्तुत किए जाएंगे। प्रदर्शनी में कई मंत्रालयों की भागीदारी रहेगी जिनमें संसदीय कार्य मंत्रालय, वाणिज्य तथा उद्योग मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, विधि तथा न्याय मंत्रालय, जल शक्ति मंत्रालय, रेल मंत्रालय और भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि 11 मार्च 1891 को कोलकाता में इंपीरियल रिकॉर्ड डिपार्टमेंट के रूप में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार को बाद में 1937 में नई दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया और सर एडविन लुटियंस द्वारा डिजाइन की गई इसकी प्रतिष्ठित इमारत 1926 में बनकर तैयार हुई। यह सार्वजनिक अभिलेख अधिनियम, 1993 और सार्वजनिक अभिलेख नियम, 1997 के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।

वर्तमान में, राष्ट्रीय अभिलेखागार प्राधिकरण (एनएआई) के पास 34 करोड़ से ज़्यादा सार्वजनिक अभिलेख हैं, जिनमें आधिकारिक फ़ाइलें, खंड, मानचित्र, संधियां, दुर्लभ पांडुलिपियां, निजी दस्तावेज़, मानचित्र संबंधी अभिलेख, राजपत्र, जनगणना रिपोर्ट, विधानसभा और संसदीय बहसें और प्रतिबंधित साहित्य शामिल हैं। इस संग्रह में संस्कृत, फ़ारसी, उड़िया और अन्य भाषाओं में प्राच्य अभिलेखों का एक समृद्ध भंडार भी शामिल है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए भारत की प्रशासनिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी

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