अवैध धर्मांतरण के विरुद्ध कठोर कानून के पक्ष में लामबंद संत समाज, राष्ट्रव्यापी अभियान की घोषणा

युगवार्ता    09-Oct-2025
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निर्मोही आणि अखाड़े के अध्यक्ष  महंत राजेंद्र दास जी महाराज व अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री  जितेंद्रानंद सरस्वती महाराज ीकरेउइमङसम


नई दिल्ली, 9 अक्टूबर (हि.स.)। देश में अवैध घर्मांतरण के खिलाफ कठोर कानून बनाने की वकालत करने के लिए संत समाज लामबंद हो गए हैं और एक राष्ट्रीय अभियान की घोषणा की है। गुरुवार को निर्मोही आणि अखाड़े के अध्यक्ष एवं अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत राजेंद्र दास महाराज एवं अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री जितेंद्रानंद सरस्वती ने एक संयुक्त प्रेस वार्ता में धर्म स्वतंत्रता अधिनियम के गठन की मांग करते हुए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने की घोषणा की।

अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री जितेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि देश में विविधता के आधार पर धार्मिक स्वतंत्रता है। मौजूदा समय में यह स्वतंत्रता धर्मांतरण के रूप में एक गंभीर संकट का सामना कर रही है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन और प्रचार करने की स्वतंत्रता है लेकिन, यह स्वतंत्रता लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है। प्रचार का अर्थ धर्मांतरण नहीं है, यह अनेक मामलों में न्यायपालिका निर्णय दे चुकी है।

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद देश में अनेक संतों और महा पुरुषों ने अवैध धर्मांतरण को रोकने के लिए केंद्रीय कानून की मांग की। संविधान सभा में भी इस विषय पर चर्चा हुई किंतु, तत्कालीन सत्ताधारी दल का यह मानना था कि इस कानून को बनाने का अधिकार सिर्फ राज्य सरकारों को है। इसीलिए देश के कई राज्यों - मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि ने धर्म स्वतंत्रता अधिनियम बनाए। इन कानूनों का उद्देश्य आस्था का दमन करना नहीं, बल्कि छल-कपट, बल प्रयोग और प्रलोभन के माध्यम से धर्म परिवर्तन को रोकना है। अब अवैध धर्मांतरण करने वाली शक्तियों व उनके समर्थकों ने इन संविधान सम्मत कानूनों को संबंधित उच्च न्यायालयों में चुनौती दी है किन्तु दुर्भाग्य से सर्वोच्च न्यायालय ने इन सभी अपीलों को इकट्ठा कर एक साथ सुनवाई का आदेश दिया है।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों का विषय होने के कारण, उच्च न्यायालयों द्वारा निर्णय के पश्चात ही, इन मामलों में सर्वोच्च न्यायालय को विचार करना चाहिए। हर राज्य की परिस्थितियां अलग अलग हैं, वहां के कानूनों का स्वरूप और उनका विरोध करने के आधार भी अलग अलग हैं। इन सब को भला एक साथ कैसे सुना जा सकता है, ये बात किसी की भी समझ से परे है। मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्ति के संदर्भ में स्वामी दयानंद सरस्वती की एक याचिका में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ये राज्य सरकारों का विषय है इसलिए इन सब मामलों को सर्वोच्च न्यायालय मे एक साथ नहीं सुना जा सकता।

निर्मोही आणि अखाड़े के अध्यक्ष व अखाड़ा परिषद के महामंत्रीमहंत राजेंद्र दासमहाराजने कहा कि राज्यों द्वारा पारित धर्म स्वतंत्रता अधिनियमों के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने उन राज्यों से भी राय मांगी है जहां ऐसा कोई कानून बना ही नहीं है और वहाँ के सत्ताधारी दल स्वयं धर्मांतरण के कुचक्र रचने वाली शक्तियों के साथ खड़े हैं। उन सब को भी एक साथ सुनना देश के चिंतकों के मन में शंका पैदा करती है। इसी समय इन शक्तियों के साथ जुड़े कुछ कथित संविधानवेत्ता धर्मांतरण के संबंध में संविधान पीठ द्वारा स्थापित निर्णयों पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए दिखे। धर्मांतरण के पक्ष में अंतर्राष्ट्रीय षडयन्त्र पहले से ही सक्रिय हैं, जो अनेक बार उजागर हो चुके हैं। यह आशंका निर्मूल नहीं है कि हमारी न्यायपालिका भी कहीं इन षड्यंत्रों से प्रभावित तो नहीं हो रही।

उन्होंने कहा कि हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हमारी न्यायपालिका की प्रतिष्ठा सुरक्षित रहे।

संतों ने यह भी कहा कि आज की परिस्थियों की भीषणता को देखते हुए आवश्यक है कि अवैध धर्मांतरण को रोकने वाले कानूनों को और अधिक मजबूत किया जाए ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक सद्भाव व स्वधर्म पालन की स्वतंत्रता के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित हो सके।

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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी

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