कश्मीर विश्वविद्यालय में डॉ. राही मासूम रज़ा की विरासत पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन

युगवार्ता    01-Nov-2025
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उपराज्यपाल सिन्हा ने कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के स्थापना दिवस पर वहां के लोगों को दी शुभकामनाएं


श्रीनगर, 01 नवंबर (हि.स.)। कश्मीर विश्वविद्यालय में शुक्रवार को डॉ. राही मासूम रज़ा की विरासत पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने किया। संगोष्ठी में भारत और विदेश के 40 से ज्यादा विद्वान, जिनमें क़तर, अमेरिका और प्रमुख भारतीय विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधि हैं, रज़ा के साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान पर शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे।उपराज्यपाल ने इस मौके पर कहा कि डॉ. राही मासूम रज़ा नई पीढ़ियों को सपने देखने और अपनी क्षमता पर विश्वास करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।

सिन्हा ने कहा कि इस प्रसिद्ध लेखक का सबसे बड़ा उपहार आत्म-साक्षात्कार का संदेश और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने की कला है। उन्होंने आग्रह किया कि रज़ा के आदर्शों को अकादमिक मंचों से आगे बढ़ाया जाए और जनता के साथ व्यापक रूप से साझा किया जाए। मनोज सिन्हा ने कहा कि रज़ा के विचार एकता, समानता और सामूहिक विकास को बढ़ावा देते हैं, विशेष रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों के उत्थान को। अपने संबोधन में उपराज्यपाल सिन्हा ने कहा कि संगोष्ठी का उद्देश्य रज़ा के विकसित भारत के दृष्टिकोण से प्रेरित होकर नए विचार उत्पन्न करना है। उन्होंने कहा कि यह अमृत मंथन समाज के लिए नए विचार और एक नया रास्ता लेकर आएगा।

यह कार्यक्रम आईडिया कम्युनिकेशंस, कश्मीर विश्वविद्यालय, मजलिस फ़ख़्र-ए-बहरीन और जम्मू-कश्मीर बैंक ने संयुक्त रूप से आयोजित किया है। कुलपति प्रोफ़ेसर नीलोफ़र ख़ान ने सत्र की अध्यक्षता की, जबकि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर नवीन चंद लोहानी और जम्मू-कश्मीर के संस्कृति विभाग के मुख्य सचिव बृज मोहन शर्मा विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। प्रसिद्ध बॉलीवुड गीतकार समीर अंजान ने मुख्य भाषण दिया।

कार्यक्रम के दौरान उर्दू कवि डॉ. नूर अमरोहवी, संपादक अजीत सिंह, शिक्षाविद् विजय धर और उर्दू विद्वान प्रोफ़ेसर मुहम्मद ज़मान अज़ुरदा को उनके साहित्यिक और सामाजिक योगदान के लिए सम्मानित किया गया। प्रोफ़ेसर नीलोफ़र ख़ान ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राही मासूम रज़ा जैसे लेखक हमें याद दिलाते हैं कि साहित्य न केवल समाज का प्रतिबिम्ब होता है बल्कि उसका मार्गदर्शन भी करता है।

समीर अंजान ने रज़ा की भावनात्मक गहराई की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनके शब्द लोगों के दिलों से सीधे जुड़ते हैं, जबकि प्रोफ़ेसर लोहानी ने कहा कि रज़ा का साहित्य भावनाओं का सम्मान करता है, सीमाओं का नहीं और आज भी अत्यंत प्रासंगिक है। आईडीईए कम्युनिकेशंस के निदेशक आसिफ आज़मी ने कहा कि यह संगोष्ठी रज़ा के शताब्दी समारोह की शुरुआत है जो 2026 तक जारी रहेगा।

इस संगोष्ठी में 2 नवंबर को श्रीनगर के टैगोर हॉल में जम्मू और कश्मीर कला, संस्कृति और भाषा अकादमी की ओर से मुशायरा और काव्य संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा, जिसमें भारत, क़तर और अमेरिका के कवि भाग लेंगे।

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हिन्दुस्थान समाचार / बलवान सिंह

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