
लखनऊ, 10 नवंबर (हि.स.)। भारत की राजनीति अब सिर्फ देश की सीमाओं में सीमित नहीं रही। हालिया घटनाक्रम और सत्ता के बदलते समीकरणों ने इसे विश्व राजनीति का अध्ययन बिंदु बना दिया है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि भारत में उभर रही नई राजनीतिक चेतना अब 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव की दिशा और दशा तय करेगी। शिकागो में रहने वाले अप्रवासी भारतीय प्रो.रविशंकर पाठक ने बताया कि दुनिया की निगाह अब भारत पर है, जहां लोकतंत्र सिर्फ एक प्रणाली नहीं, बल्कि जनभागीदारी की ताकत के रूप में विकसित हो रहा है। पिछले एक दशक में योजनाओं, जनकल्याण, डिजिटल कनेक्टिविटी और युवाओं की भूमिका ने राजनीति की परिभाषा ही बदल दी है।
भारत लोकतंत्र का रोल मॉडल
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जापान के राजनीतिक विश्लेषक भारत को 21वीं सदी का लोकतांत्रिक प्रयोगशाला कह रहे हैं। उनका मानना है कि भारत में जिस तरह जनता योजनाओं से सीधे जुड़ रही है, वह दुनिया के कई लोकतांत्रिक देशों के लिए प्रेरक मॉडल बन गया है। राजनीतिक विश्लेषक प्रो. आनन्द शंकर सिंह मानते हैं कि 2027 का उत्तर प्रदेश चुनाव केवल एक राज्य का नहीं रहेगा, बल्कि यह 2029 के लोकसभा चुनाव की पूर्वपीठिका साबित होगा। यूपी की जनता जिस दिशा में झुकेगी, वही दिशा राष्ट्रीय राजनीति का भविष्य तय करेगी।
नए सामाजिक समीकरणों के अनुरूप अपनी रणनीतियां गढ़ रहीं राजनीतिक पार्टियां
भारत का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश अब राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बन चुका है। 2027 के विधानसभा चुनाव में युवाओं, महिलाओं और नए मतदाताओं की निर्णायक भूमिका होगी। धार्मिक, जातीय और विकास के मुद्दों की जगह अब रोजगार, टेक्नोलॉजी और शासन-प्रदर्शन केंद्र में आ रहे हैं। भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा जैसी पार्टियां अपनी रणनीतियां नए सामाजिक समीकरणों के अनुरूप गढ़ रही हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि 2027 यूपी चुनाव का नतीजा सीधे 2029 लोकसभा की दिशा तय करेगा। यदि जनता विकास और स्थिरता के पक्ष में जाती है तो केंद्र में वही रुझान मजबूत रहेगा।
युवा और महिला मतदाता सियासत के गेमचेंजर
प्रो. राकेश तिवारी की मानें तो इस दशक का सबसे बड़ा बदलाव यह है कि जनता अब सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि निर्णायक शक्ति बन चुकी है। सोशल मीडिया पर युवा पीढ़ी अब अपनी राय और असंतोष खुले तौर पर रख रही है। नीतियों पर सीधा संवाद और डिजिटल भागीदारी से राजनीतिक जवाबदेही बढ़ी है। महिला मतदाता अब 'सेक्रेट वोटर' के रूप में चुनाव परिणामों को प्रभावित कर रही हैं।
भारत मॉडल ऑफ डेमोक्रेसी 2.0: 2029 का चुनाव बनेगा वैश्विक नेतृत्व की कसौटी
उन्होंने कहा कि 2029 का लोकसभा चुनाव सिर्फ भारत नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति की दिशा तय करेगा। भारत की अर्थव्यवस्था, विदेश नीति, रक्षा और टेक्नोलॉजी में बढ़ती भूमिका ने दुनिया का ध्यान खींचा है। यह चुनाव तय करेगा कि भारत एशिया की अगुवाई करेगा या वैश्विक नीति निर्माण में अमेरिका-यूरोप के बराबर खड़ा होगा। कई देशों के थिंक टैंक इसे भारत मॉडल ऑफ डेमोक्रेसी 2.0 के रूप में देख रहे हैं।
भारत का लोकतंत्र दुनिया के लिए उदाहरण, राजनीति में जवाबदेही नई ताकत
भारत में राजनीति अब भावनाओं और वादों से आगे निकलकर प्रदर्शन और परिणाम की राजनीति बन गई है। यही बदलाव 2027 और 2029 दोनों में निर्णायक होगा। राजनीतिक विश्लेषक लव कुमार मिश्र का मानना है कि भारत का लोकतंत्र अब वैश्विक संदर्भ में रोल मॉडल बन रहा है। यहां जनता सरकार को जवाबदेह बना रही है और यही लोकतंत्र की असली ताकत है।
लोकतंत्र का भारतीय मॉडल विश्व मंच पर चमका
भारत की राजनीति अब वैश्विक मंच पर लोकतंत्र की जीवंत मिसाल बन चुकी है। 2027 का उत्तर प्रदेश चुनाव उसकी पहली परीक्षा होगी और 2029 का लोकसभा चुनाव तय करेगा कि भारत विश्व राजनीति में लोकतांत्रिक नेतृत्व की अगली पंक्ति में खड़ा है या नहीं। जनता की जागरूकता, युवाओं की भागीदारी और सोशल मीडिया का संवाद अब भारत को एक नए युग की राजनीति की ओर ले जा रहा है, जहां सत्ता जनता से चलती है और जनता दुनिया को दिशा देती है।
जनता की सोच ने बदली राजनीति की दिशा
राजनीतिक विश्लेषक चन्द्रमा तिवारी के अनुसार, सत्ता और विपक्ष के बीच नए समीकरण बन रहे हैं, जो आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों की दिशा तय करेंगे। राजनीतिक दलों ने अब रणनीति में बदलाव करते हुए क्षेत्रीय मुद्दों के साथ-साथ राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को भी प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि जनता की बदलती सोच, युवाओं की भागीदारी और सामाजिक मीडिया पर सक्रियता ने राजनैतिक माहौल को पूरी तरह बदल दिया है। केंद्रीय स्तर पर नई नीतियों और योजनाओं ने राज्य स्तर पर चुनावी समीकरण बदलने में अहम भूमिका निभाई है। वहीं, विपक्षी दलों के भीतर भी असंतोष और नए गठबंधनों की संभावना चर्चा में है। राजनीतिक हलकों में यह माना जा रहा है कि आगामी चुनाव में पुराने समीकरणों के टूटने के बाद सत्ता में आने वाले दल के लिए जनसंवाद और स्थानीय मुद्दों पर पकड़ अहम होगी।
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश