
- क्या विपक्ष अब मान ले कि मोदी को चुनाव में हराना नामुमकिन है!
पटना, 15 नवम्बर (हि.स.)। 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों का जनादेश केवल एक राज्य का चुनाव परिणाम नहीं है। यह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आजादी के बाद की सबसे निर्णायक राजनीतिक रेखा है। बिहार ने इस बार जो लकीर खींची है, वह देश के हर राजनीतिक समीकरण को पलट देने वाली है।
देश के भीतर अब तक विधानसभा चुनावों में कई बड़े उलटफेर दर्ज हुए थे, लेकिन गठबंधन राजनीति में किसी भी राजनीतिक खेमे का 90 प्रतिशत से अधिक स्ट्राइक रेट, वह भी इतने विषम जातीय, सांस्कृतिक और राजनीतिक समीकरणों वाले बिहार में। यह रिकॉर्ड आज तक कभी नहीं बना था और अब यह रिकॉर्ड टूट चुका है। बिहार ने इसे कर दिखाया।
मोदी को हराना अब राजनीतिक कल्पना मात्र राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्र की मानें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हराना अब केवल 'राजनीतिक कल्पना' बन गया। बिहार के जनादेश ने इसे साफ-साफ 'ना' में बदल दिया। वामपंथ, अल्ट्रा लेफ्ट, कांग्रेस और आरजेडी, सभी का प्रभाव ढह गया। 35 साल के जातीय और सामाजिक समीकरण एक झटके में ध्वस्त हुए। जहां एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण खड़ा था,वहां से मुस्लिम और यादव वोट दोनों टूट गए। परिणामस्वरूप,आरजेडी सबसे निचले पायदान पर आ गई।
जाति राजनीति को मात, विकास की लहर सत्ता पक्ष के साथ आजादी के बाद पहली बार बिहार में ऐसा मतदान हुआ, जहां जाति मायने नहीं रखी। पहचान की राजनीति बेअसर रही। गरीबी, बेरोजगारी और उद्योग की कमी जैसी समस्याएं मतदान में निर्णायक नहीं रहीं। उलट लहर नहीं, बल्कि सत्ता पक्ष की सबसे शक्तिशाली लहर दिखाई दी। महिला वोट में 10 प्रतिशत की अभूतपूर्व बढ़त ने समीकरण जड़ से बदल दिए। 2025 का बिहार मतदान भारतीय राजनीति में नई दिशा का संकेत है।
एनडीए का 90 प्रतिशत स्ट्राइक रेट अभूतपूर्व भाजपा-जेडीयू गठबंधन ने 101 सीटों पर भाजपा 89 और जेडीयू 85 सीटें जीतकर गठबंधन राजनीति का नया इतिहास रच दिया। एलजेपी और आरएलएसपी ने भी अहम सीटें जीतीं। यह स्ट्राइक रेट लोकतांत्रिक देशों में बेहद दुर्लभ है और विश्व स्तर पर गठबंधन रणनीति का मॉडल बन सकता है।
74 साल का राजनीतिक पैटर्न टूटा 1951 से 2025 तक बिहार में लगभग 7 प्रतिशत मतदान की लहर सत्ता बदल देती रही। लेकिन 2025 में पहली बार 9.6 प्रतिशत की लहर सत्ता के पक्ष में चली,जो बिहार के राजनीतिक इतिहास में अभूतपूर्व है। यह बढ़ी हुई वोटिंग केवल बदलाव नहीं, बल्कि नीति, विचारधारा और नेतृत्व पर जनता के विस्फोटक भरोसे को दर्शाती है।
अदला-बदली का डर खत्म अब कोई गठबंधन सहयोगी एनडीए के लिए बोझ नहीं। बिहार का जनादेश स्पष्ट संदेश देता है कि कोई समर्थन वापसी का खेल अब नहीं खेल सकता। यह राजनीतिक स्थिरता के लिए बड़ा सबक है।
विपक्ष की खामोशी, हार की स्वीकृति महागठबंधन के नेता राहुल गांधी, कांग्रेस और आरजेडी सभी बयानबाजी में भ्रम और विफलता छिपाने की कोशिश करते रहे। बिहार के भारी जनादेश के बाद विपक्ष पूरी तरह असहाय दिखा। महिला वोट, पीडीए मॉडल और पुराने समीकरण काम नहीं आए।
राष्ट्रीय और वैश्विक असरराजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बिहार में जो हुआ वही बंगाल, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में भी चुनावी रणनीति पर असर डालेगा। ममता बनर्जी, स्टालिन या अखिलेश यादव-कोई भी सुरक्षित नहीं। भारत की राजनीति अब प्रयोग नहीं, स्थिरता की दिशा में बढ़ रही है और इस स्थिरता की धुरी हैं नरेन्द्र मोदी और एनडीए।
विकसित भारत की दिशा तय करेगा-2030 बिहार के जनादेश ने भारतीय राजनीति का नया मॉडल पेश किया है। जातियां हारीं, विकास और नेतृत्व जीते। महिला वोट निर्णायक बना। यह जनादेश केवल जीत नहीं, बल्कि बिहार की 2030 की तस्वीर और विकसित भारत का पहला मॉडल तैयार करेगा।
महिला वोट और नई राजनीतिक सोचमहिला वोट 10 प्रतिशत तक बढ़ा और यह सीधे मोदी-नितीश के पक्ष में गया। इस मूक क्रांति ने जातीय वोट बैंक तोड़ा और नई राजनीतिक सोच को जन्म दिया।
प्रो-इंकम्बेंसी वेव और स्थिर नेतृत्वइतिहास बताता है कि बिहार में बढ़ी हुई वोटिंग का असर सत्ता के पक्ष में रहा। 9.6 प्रतिशत की लहर ने पिछले 20 साल की सत्ता-विरोधी लहर को पलट दिया। बिहार ने प्रो-इंकम्बेंसी वेव का नया अध्याय लिखा।
राष्ट्रीय जनाधार का विस्तार भाजपा जहां कभी नहीं जीत पाती थी, वहां भी जीत हासिल की। मंडल-कमंडल के बाद 35 साल में न जीती गई सीटों पर भी सफलता मिली। यह सिर्फ राज्य की लहर नहीं, राष्ट्रीय जनाधार का विस्तार और वैश्विक रणनीति का मॉडल है।
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हिन्दुस्थान समाचार / राजेश