कानपुर में 15 साल से भटक रही बुजुर्ग महिला ने सुनी मातृभाषा तेलुगु, परिजनों संग रवाना हुई तेलंगाना

युगवार्ता    19-Nov-2025
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हॉस्पिटल की नर्स इंचार्ज आशा वर्मा बुजुर्ग भारत अम्मा और उनका बेटा तिरुमल यादव बाएं से दाएं


अस्पताल स्टाफ के साथ बुजुर्ग भारत अम्मा यादव


कानपुर, 19 नवम्बर (हि.स.)। भारत विविधताओं का देश है क्योंकि यहां के लोग प्राकृतिक क्षेत्रवार अलग—अलग भाषाएं बोलते हैं। यही अलग—अलग भाषा कभी कभार अपनों से न जुड़ पाने का कारण बन जाती है। ऐसा ही मामला बुधवार को कानपुर में उस समय सामने आया जब 15 साल से शहर में भटक रही तेलंगाना से गुमशुदा बुजुर्ग महिला अपने परिजनों से मिली। वह सिर्फ कानपुर में 15 साल तक इसलिए भटकती रही कि उसकी भाषा कोई नहीं समझ पाता था। करीब ढ़ाई साल से जिला अस्पताल में उसका ठिकाना रहा और स्टॉफ बराबर देखभाल करता रहा।

मूलरूप से तेलंगाना की रहने वाली बुजुर्ग महिला भारत अम्मा यादव साल 2010 में अपने घर से अचानक लापता हो गई थी। उस समय उनकी दिमागी हालत कुछ ठीक नहीं थी और वहां से करीब 1400 किलोमीटर का सफर करते हुए कानपुर तक आ पहुंचीं। ऐसे में उनके लिए सबसे बड़ी समस्या भाषा की दीवार बनकर सामने आ खड़ी हुई। ना तो उन्हें हिंदी बोलनी आती और ना ही अंग्रेजी जिसके चलते शहर में लोग उसका दर्द तो एहसास करते रहें लेकिन बांट नहीं सकते थे। भिक्षा मांगकर अपना पेट भरना और फिर सड़क किनारे पड़े रहना। इस तरह साल दर साल बीतते गए। उधर बुजुर्ग महिला के घर वालों ने भी उनके मिलने की आस छोड़ दी थी। क्योंकि उन्हें घर से लापता हुए एक दशक से भी ज्यादा का समय बीत चुका था।

करीब ढ़ाई साल पहले पुलिस ने अस्पताल में कराया था भर्ती

जिला अस्पताल उर्सला के सीएमस डॉ. बाल चंद्र ने बुधवार को बताया कि जुलाई 2023 में रेलबाजार पुलिस ने एक अज्ञात महिला को उर्सला अस्पताल में भर्ती कराया था। उस समय बुजुर्ग की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी और उनके हाथ में फ्रैक्चर भी हो गया था। उस समय भी पुलिस और डॉक्टरों के लिए सबसे बड़ी समस्या बुजुर्ग की भाषा को समझने की थी। कई महीनों तक बुजुर्ग का इलाज किया गया। हालांकि उनका नाम पता और घर ना मालूम होने के चलते अस्पताल स्टाफ ने यह फैसला किया कि जब तक उनकी पहचान नहीं होती तब तक इन्हें यही रहने दिया जाए।

तेलंगाना से कानपुर काेर्स करने आए डाक्टर ने समझी मातृभाषा तेलुगु

इस तरह बुजुर्ग इलाज होने के बाद भी अस्पताल में ही रहने लगी यहीं खाना खाती और सो जाती लेकिन एक दिन एक ऐसा चमत्कार हुआ जिसे सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया। दरअसल उर्सला अस्पताल में डीएनबी का कोर्स कर रहे रेजिडेंट डॉक्टर भारद्वाज जो खुद भी तेलंगाना के ही रहने वाले थे। सोमवार के दिन वह राउंड पर निकले थे कि तभी उनकी नजर बुजुर्ग महिला पर पड़ी। जो अकेले बैठकर खुद से बातें कर रही थी। डॉक्टर ने उनकी बातों को गौर से सुना और वह समझ गए कि​ बुजुर्ग महिला तेलंगाना की रहने वाली है।

यह सूचना सुनकर मेडिकल स्टाफ में एक नई उम्मीद की किरण के साथ-साथ खुशी का माहौल हो गया। अस्पताल की सिस्टर इंचार्ज आशा वर्मा सक्रिय हो गईं और उन्होंने डॉक्टर भारद्वाज की सहायता से तेलंगाना के महबूबनगर जिले की संबंधित पुलिस से संपर्क साधा और बुजुर्ग की फोटो को भेजकर उनके परिजनों तक सूचना पहुंचाई।

जिला कारागार में वॉर्डन है बेटा

तेलंगाना पुलिस ने भी सक्रियता दिखाते हुए महिला के बेटे तिरुमल यादव को खोज निकाला। दरअसल वह महबूबनगर जिला कारागार में वॉर्डन है। 15 सालों के लंबे इंतजार के बाद बुधवार को उनका बेटा अस्पताल पहुंचा और अपनी मां को इतने समय के बाद मिलते ही फूट-फूटकर रोने लगा। वहीं दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया। उधर अस्पताल स्टाफ ने बुजुर्ग को माला पहनाकर नम आंखों से विदाई दी।

हिन्दुस्थान समाचार / रोहित कश्यप

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