मप्र स्थापना दिवस के दूसरे दिन सृजन, संस्कृति और कला के रंगों से सराबोर रहा समारोह

युगवार्ता    02-Nov-2025
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सम्राट विक्रमादित्य महानाट्य मंचन


मध्य प्रदेश के 70वें स्थापना दिवस समारोह “अभ्युदय मध्य प्रदेश


मध्य प्रदेश के 70वें स्थापना दिवस समारोह “अभ्युदय मध्य प्रदेश


- लाल परेड ग्राउंड पर पहली बार हुआ सम्राट विक्रमादित्य महानाट्य मंचन

भोपाल, 02 नवंबर (हि.स.)। मध्य प्रदेश के 70वें स्थापना दिवस समारोह “अभ्युदय मध्य प्रदेश” के दूसरे दिन रविवार को राजधानी भोपाल के लाल परेड ग्राउंड का वातावरण सृजन, संस्कृति और कला के रंगों से सराबोर रहा। दिनभर विविध सांस्कृतिक प्रस्तुतियों, लोक-कलाओं और रचनात्मक गतिविधियों ने यह संदेश दिया कि मध्य प्रदेश न केवल विकास की राह पर अग्रसर है, बल्कि अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी नए उत्साह और आधुनिक दृष्टिकोण के साथ संजोए हुए है। परंपरा और नवाचार के इस संगम ने राजधानी को रचनात्मक ऊर्जा से आलोकित कर दिया, जहाँ मंचों पर लोकधुनों, नृत्यनाट्य, संगीत और कलात्मक प्रदर्शनियों की श्रृंखला ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

स्थापना दिवस के दूसरे दिन शाम को सर्वप्रथम अद्भुत, अलौकिक और अद्वितीय महानाट्य प्रस्तुति सम्राट विक्रमादित्य का मंचन हुआ। भोपाल में पहली बार इस महानाट्य की प्रस्तुति उज्जैन की संस्था विशाला सांस्कृतिक एवं लोकहित समिति द्वारा दी गई, जिसका निर्देशन संजीव मालवीय ने किया है। नाटक की भव्यता जहां कलाकारों के अभिनय, परिधान, संवाद और सेट कर रहा था, वहीं ऊंट, घोड़े, हाथी, पालकी, बग्गी इत्यादि ने भी इसकी आकर्षकता को बढ़ाया। तीन अलग स्टेज पर अत्याधुनिक ग्राफिक, आश्रम एवं जंगल के भव्य सेट के साथ ही भव्य महाकाल मंदिर के प्रतिरूप सेट और 150 कलाकारों ने महानाट्य को जीवंत बना दिया।

इस महानाट्य की प्रस्तुति का उद्देश्य मात्र प्रदर्शन नहीं, बल्कि आम नागरिकों को इस बात से परिचित कराना था कि हमारा मध्य प्रदेश प्राचीन काल से ही कितना महान रहा है। आज जब हम जनकल्याण, सुशासन और विकास की बात कर रहे हैं, तो यह प्रेरणा हमें सम्राट विक्रमादित्य जैसे महान इतिहास पुरुषों से ही प्राप्त हुई है, जो हमारे वैभवशाली अतीत के महानायक हैं। ऐसे विक्रमादित्य जो काल गणना, विवेकपूर्ण न्याय, शौर्य और महानता के लिए जाने जाते हैं।

महानाट्य के बारे मेंश्रीराम और श्रीकृष्ण जैसे अवतार नायकों के बाद भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय नायक विक्रमादित्य ही हैं। भारत वर्ष के सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रसिद्ध पुरातन पुरुषों में विक्रमादित्य अग्रणी है। उनकी वीरता, देश को पराधीनता से मुक्त करने की उत्कृष्ट अभिलाषा राजनीतिक उपलब्धियों सैनिक अभियान और विजय यात्राएँ शासन की आदर्श अनोखी विवेकपूर्ण न्यायपद्धति, कला एवं साहित्य की उन्नति में उदार सहयोग तथा सहभागिता जैसे उदात्त गुणों ने भारत ही नहीं आस-पास और सुदूर देशों में भी उन्हें सदा के लिये प्रतिष्ठित कर दिया। शकों तथा यवनों ने भारत पर आक्रमण कर आंतक मचा रखा था। शक राजा महाबली, अर्थलोभी, पापी और दुष्ट थे, क्रूर हिंसक देश विरोधी शकों की उस दुर्दान्त, प्रलयंकारी काली छाया से विक्रमादित्य ने भारत को मुक्त कराया और 96 शक सामन्तों को पराजित कर उन्हें भारत से भागने पर विवश कर दिया था। शकों को खदेड़ कर ही शकारि और साहसांक की उपाधियाँ धारण की। आज भी विकमादित्य द्वारा 2082 वर्ष पूर्व प्रारम्भ विक्रम संवत् भारत वर्ष ही नहीं दुनिया का सर्वश्रेष्ठ काल गणना का आधार है। बेताल पच्चीसी और सिहांसन बत्तीसी में विक्रमादित्य के अद्भुत, विवेकपूर्ण न्याय, वीरता, शौर्य एवं महानता की कथाएँ सर्वविदित है। इसके दरबार में नवरत्न कालिदास, वररुचि, वराहमिहिर, क्षपणक, घटखर्पर, अमर सिंह, बेताल भट्ट, शंकु, धन्वन्तरि जैसे प्रसिद्ध महापुरुष सदा जनकल्याणकारी कार्यों में ही लगे रहते रहते थे। इस महानाट्य में विक्रमादित्य के जन्म से लेकर सम्राट बनने तक की सभी गाथाएँ अंकित की गई है।

दिव्यता, भव्यता और सुरों के आनंद की अनंत यात्रामहानाट्य सम्राट विक्रमादित्य की यादगार प्रस्तुति के बाद आरंभ हुई सुरों की यात्रा, एक ऐसी यात्रा जिसमें भाव थे, दिव्यता थी और सुरीलापन। अनंत आनंद को समेटे एक ऐसी आवाज जिसे पसंद करने वाले न सिर्फ देश, बल्कि विदेशों में भी अनेक हैं। चंडीगढ़ के हंसराज रघुवंशी अपने भजन गायन के लिए 70वें स्थापना दिवस समारोह में पधारे। अपने पूरे ग्रुप के साथ वे जब मंच पर श्रोताओं से मुखातिब हुए तो उनके चाहने वालों ने जोरदार तालियों से उनका अभिनंदन किया। मेरा भोला है भंडारी....भजन के लाखों-करोड़ो दीवाने हैं और महादेव के प्रति अपार श्रद्धा और भक्ति में पिरोया यह गीत हंसराज रघुवंशी ने गाया था।

अहिराई, गणगौर, मटकी नृत्यों के बिखरे रंगसायंकालीन प्रस्तुतियों से पूर्व दोपहर में 3 बजे से मध्य प्रदेश के लोक एवं जनजातीय नृत्यों की प्रस्तुति हुई। इसमें संतोष यादव एवं साथी, सीधी द्वारा अहिराई लाठी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। बघेलखंड में यादव समुदाय द्वारा ‘अहिराई नृत्य’ अहीर नायकों की वीर गाथाएँ गाई जाती है। वहीं, शिशुपाल सिंह एवं साथी, टीकमगढ़ द्वारा मोनिया नृत्य प्रस्तुत किया गया। बुंदेलखंड का यह लोकनृत्य कार्तिक माह में अमावस्या से पूर्णिमा तक नृत्य किया जाता है। अनुजा जोशी एवं साथी, खंडवा द्वारा गणगौर नृत्य की प्रस्तुति दी गई। गणगौर निमाड़ी जन-जीवन का गीति काव्य है। स्वाति उखले एवं साथी, उज्जैन द्वारा मटकी नृत्य की प्रस्तुति दी। विभिन्न अवसरों पर मालवा के गाँव की महिलाएँ मटकी नाच करती है।

कार्यक्रम में अरविंद यादव एवं साथी, सागर द्वारा बधाई नृत्य की प्रस्तुति दी गई। बुन्देलखण्ड अंचल में जन्म विवाह और तीज-त्यौहारों पर बधाई नृत्य किया जाता है। अगले क्रम में लालबहादुर घासी एवं साथी द्वारा घसियाबाजा नृत्य की प्रस्तुति दी गई। सरगुजा जिले के सुदूर ग्रामीण अँचल में रहने वाले विशेष कर घासी जाति का यह परम्परागत नृत्य एवं जीविका का साधन है। इसके बाद संदीप उइके एवं साथी, सिवनी द्वारा गोण्ड जनजातीय नृत्य गुन्नूरसाई की प्रस्तुति दी गई।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर

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