बांग्लादेश में कार्यवाहक सरकार प्रणाली बहाल, सुप्रीम कोर्ट ने 2011 के अपने फैसले को पलटा

युगवार्ता    20-Nov-2025
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बांग्लादेश का सुप्रीम कोर्ट। फोटो - ढाका ट्रिब्यून


ढाका, 20 नवंबर (हि.स.)। बांग्लादेश के उच्चतम न्यायालय के अपीलीय प्रभाग ने आज एक अहम फैसले में कार्यवाहक सरकार प्रणाली (केयरटेकर गवर्नमेंट सिस्टम) को फिर से लागू कर दिया। फैसले में कहा गया है कि यह व्यवस्था 14वें राष्ट्रीय चुनाव से लागू होगी। यह फैसला उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डॉ. सैयद रेफात अहमद की अगुवाई वाले अपीलीय प्रभाग की सात सदस्यों वाली पीठ ने सुनाया। 10 मई 2011 को उच्चतम न्यायालय ने कार्यवाहक सरकार प्रणाली को खत्म कर दिया था।

ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट में फैसले की जानकारी देते हुए बताया गया कि पीठ के बाकी सदस्य न्यायमूर्ति एमडी अशफाकुल इस्लाम, न्यायमूर्ति जुबैर रहमान चौधरी, न्यायमूर्ति एमडी रेजाउल हक, न्यायमूर्ति एसएम इमदादुल हक, न्यायमूर्ति एकेएम असदुज्जमान और न्यायमूर्ति फराह महबूब हैं। फैसले में साफ कहा गया है कि यह आदेश आगामी चुनाव को नियंत्रित नहीं करेगा। खास बात यह है कि बांग्लादेश में 1996, 2001 और 2008 में कार्यवाहक सरकार प्रणाली के तहत संसदीय चुनाव हो चुके हैं। हालांकि 1991 का संसदीय चुनाव राजनीतिक सहमति से बनी एक अंतरिम सरकार के तहत हुआ था। इस समय देश में अंतरिम सरकार ही है।

रिपोर्ट के अनुसार उच्चतम न्यायालय के अपीलीय प्रभाग ने आज अपने 2011 के पुराने फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर निर्णय सुनाया। उच्चतम न्यायालय ने 2011 में कार्यवाहक सरकार प्रणाली को खत्म कर दिया था। द डेली स्टार की वेबसाइट पर आज सुबह प्रसारित रिपोर्ट में बताया गया था कि अपीलीय प्रभाग ने 11 नवंबर को पुनर्विचार याचिका की सुनवाई पूरी की और फैसला सुनाने के लिए आज का दिन तय किया था।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने उच्चतम न्यायालय से अपने 2011 के फैसले को पलटने और देश में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने और लोकतंत्र स्थापित करने के लिए संविधान में कार्यवाहक सरकार प्रणाली को बहाल करने की अपील की थी। सनद रहे कार्यवाहक सरकार को कार्यवाहक शासन के रूप में भी जाना जाता है। यह एक अस्थायी तदर्थ सरकार होती है। यह कुछ सरकारी कर्तव्यों और कार्यों को तब तक करती है जब तक कि एक नियमित सरकार निर्वाचित या गठित नहीं हो जाती।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी), जमात-ए-इस्लामी, पांच नागरिकों, नौगांव के स्वतंत्रता सेनानी मोफज्जल इस्लाम और दो संगठनों ने पिछले साल 10 मई 2011 के फैसले को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। महत्वपूर्ण यह है कि 10 मई 2011 को उच्चतम न्यायालय ने बहुमत के फैसले में कहा था कि संविधान का 13वां अमेंडमेंट (केयरटेकर गवर्नमेंट से जुड़ा) रद्द और अमान्य है। इसके बाद 30 जून 2011 को जातीय संसद ने 15वां अमेंडमेंट एक्ट पास किया। इसमें कार्यवाहक सरकार प्रणाली को खत्म करने सहित कई बदलाव किए गए। इस बारे में तीन जुलाई 2011 को राजकीय अधिसूचना जारी की गई थी।

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद

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