तिब्बत संकट में, दुनिया ने नहीं की मदद तो चीन खत्म कर देगा अस्तित्व: पेम्पा त्सेरिंग

युगवार्ता    24-Nov-2025
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हिन्दुस्थान समाचार सेवा के कार्यालय मे तिब्बती निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति पेम्पा त्सेरिंग


तिब्बती निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति से हिन्दस्थान समाचार ने की विस्तृत बातचीत

लखनऊ, 24 नवंबर (हि.स.)। तिब्बती निर्वासित सरकार (केंद्रीय तिब्बती प्रशासन-सीटीए) के राष्ट्रपति पेम्पा त्सेरिंग ने अपने देश के अस्तित्व काे

बचाने के लिए दुनिया से गुहार लगाई है। पेम्पा तिब्बत और तिब्बत के लोगों के अधिकारों, संस्कृति को चीनी पंजे से बचाने के लिए दुनियाभर में घूम-घूम कर समर्थन जुटा रहे हैं। इसी सिलसिले में वे इस समय उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में प्रवास पर हैं। यहां उन्हाेंने ​विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों से भेंट कर तिब्बत और वहां के लाेगाें की पीड़ा बताई हैं। उनका कहना है कि अगर दुनिया के लाेगाें ने आवाज नहीं उठाई ताे चीन खूबसूरत देश तिब्बत का मूल अस्तित्व खत्म कर देगा।

साेमवार काे तिब्बती निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति पेम्पा त्सेरिंग लखनऊ में हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी न्यूज एजेंसी के कार्यालय पहुंंचे। यहां राष्ट्रपति पेम्पा ने हिन्दुस्थान समाचार सेवा से तिब्बत की वर्तमान स्थिति और समस्याओं—चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की। इससे पहले वे यहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यालय भी गए। वार्ता के दौरान अपने प्रवास के उद्देश्य के सवाल पर केंद्रीय तिब्बती प्रशासन-सीटीए के राष्ट्रपति पेम्पा त्सेरिंग ने कहा कि वे केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम देशों में जा रहे हैं। उनका सिर्फ एक ही मकसद है चीनी शिकंजे से तिब्बत को स्वतंत्र कराकर उसकी मूल संस्कृति और वहां के लोगों को मानवाधिकारों को बहाल करना है। उन्होंने कहा कि अब दुनिया तिब्बत के दर्द को समझने लगी है।

चीन किस प्रकार ​तिब्बत के अस्तित्व को खत्म कर रहा

इस सवाल पर केंद्रीय तिब्बती प्रशासन-सीटीए के राष्ट्रपति पेम्पा त्सेरिंग ने कहा कि कम से कम आठ दशक से चीनी प्रशासन तिब्बत को अपने शिकंजे में लेकर उसका मूल अस्तित्व को खत्म करने के लिए सभी प्रकार के हथकंडे अपना रहा है। सबसे दुखद बात यह है कि चीन प्रशासन ने तिब्बत के लोगों के मानवाधिकार पूरी तरह से खत्म कर दिए हैं। उनकी धार्मिक स्वतंत्रता प्रतिबंधित कर दी है। धार्मिक स्थलों की गतिविधियां खत्म सी कर दी हैं। ऐसे में तिब्बत के लोग स्वतंत्र होकर अपने धार्मिक कार्यक्रम नहीं कर सकते हैं। चीनी ने वहां तिब्बत की भाषा, धर्म, संस्कति और परंपराओं को पूरी तरह से लगभग खत्म कर दिया है।

चीनी प्रशासन तिब्बत के युवा—छात्रों के प्रति कैसा व्यवहार कर रहा है?

इस सवाल पर भावुक होते हुए केंद्रीय तिब्बती प्रशासन-सीटीए के राष्ट्रपति त्सेरिंग ने कहा कि तिब्बत की भावी पीढ़ी को पूरी तरह से तिब्बत से अलग किया जा रहा है ताकि वे भविष्य में अपने देश तिब्बत के लिए आवाज न उठा पाएं। तिब्बत के नौनिहालों, छात्रों और युवाओं को चीनी संस्कति में ढाल रहा है। उनके लिए अलग से स्कूल और हास्टल बनाए जा रहे हैं, जहां उनका तिब्बत की संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है। युवाओं को चीनी सरकार के प्रति वफादार बनाया जा रहा है और उनके जीवन में चीनी कल्चर भरा जा रहा है।

चीन तिब्बत में क्या विकास कर रहा है?

इस सवाल पर राष्ट्रपति त्सेरिंग ने कहा कि चीन पूरी दुनिया को तिब्बत के विकास की बातें बता रहा है, लेकिन असलियत बहुत ही क्रूर और तिब्बत के लोगों के लिए दुखदाई है। चीन ने तिब्बत की जनसांख्यकीय और भौगोलिक स्थिति को पूरी तरह से बदल दिया है। बड़े बडे डैम बना रहा है और ऐसे डैम जो पर्यावरण पारिस्थितिकीय के अनुरूप नहीं है और तिब्बत के पर्यावरण को प्रदूषित और नष्ट किया जा रहा है।

दुनिया का तिब्बत के प्रति क्या नजरिया है?

त्सेरिंग ने बताया कि दरअसल चीन ने पूरी दुनिया में अपने हिसाब से प्रोपेगंडा चला रखा है कि तिब्बत उसका है और इसलिए विकास कर रहा है, लेकिन सच यह नहीं है। सच ये है कि तिब्बत हमारा देश है और हमें मिलना चाहिए। दुनिया चीनी की साम्राज्यवादी नीतियों से भली प्रकार परिचित है कि चीनी तंत्र अपनी ताकत और रणनीतिक चाल से दुनिया के तमाम देशों को अपने जाल में फंसा रखा है।

इस लड़ाई में आप कैसा सहयोग चाहते हैं?

इस पर राष्ट्रपति त्सेरिंग ने कहा है कि हमारा पूरा आंदोलन ​अहिंसा पर आधारित है। परम पूज्यनीय दलाईलामा के मार्गदर्शन में हम अपने प्यारे देश तिब्बत के अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ रहे हैं। भारत सहित दुनिया बिरादरी से चाहते हैं कि वे अहिंसावादी तरीके से समर्थन करें और चीन की विस्तारवादी नीतियों का खुलकर विरोध करें। तिब्बत के समर्थन में अपनी आवाज उठाएं।

चीन सरकार का पड़ाेसी देशों के प्रति क्या रुख पाते हैं ?

त्सेरिंग इस सवाल पर बहुत गंभीर हो गए। उन्होंने कहा कि चीन ने अपने सभी पड़ाेसी देशों को अपने जाल में फंसा रखा है। उन्होंने श्रीलंका, पाकिस्तान और नेपाल तक के उदाहरण दिए कि कैसे चीन ने ऋण देकर अपने जाल में फंसाया फिर उनका शोषण कर रहा है। चीन पड़ाेसी देशों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करके प्रशासनिक तंत्र में कब्जा करता है। उन्होंने हैरत भी जताई कि कई पड़ाेसी देश चीनी की विस्तारवादी नीतियों को जानते हुए अनजान बने हुए हैं।

तिब्बत की स्वायत्तता बनाए रखने में भारत की क्या भू​मिका है?

उन्होंने कहा कि भारत सरकार और यहां के लोग तिब्बत के लिए बहुत कुछ हैं। इनके बिना इस आंदोलन की अब तक की यात्रा संभव नहीं थी। इसलिए केंद्रीय तिब्बती प्रशासन-सीटीए आभार भी जताता है। उन्होंने कहा कि तिब्बत प्रकरण में भारत अपनी विदेशी नीति के अनुरूप काम कर रहा है और कई मोर्चों पर हमारे साथ है। उन्होंने कहा कि भारत और तिब्बत की मूल संस्कृति एक ही है और तिब्बत के अस्तित्व में भारत की बड़ी भूमिका है।

भारत के लिए चीन कितना बड़ा खतरा है?

इस पर उन्होंने कहा कि चीन अपने घरेलू मोर्चे पर पूरी तरह से विफल है, लेकिन उसने दुनिया का ध्यान अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित कर रखा है और खुद को निर्णायक भूमिका में देखने लगा है। भारत की सीमा में उसने कई विवादित ढांचे खडे किए हैं। सैन्य की दृष्टि से भी भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है। गलवान घाटी और चीनी घुसपैठ यही बताते हैं, लेकिन भारत ने भी अपने बार्डर एरिया में विकास के काफी काम किए हैं और अपनी सैन्य क्षमता को भी काफी विकसित किया है। भारत काे इसे जारी रखना चाहिए।

भारत—चीन व्यापार पर कुछ कहना चाहेंगे?

भारत चीन व्यापार दोनों देशों की जरूरतों पर निर्भर करता है, लेकिन जहां तक मेरा विचार है तो भारत को खुद आत्मनिर्भरता बढ़ानी चाहिए क्योंकि अभी भी चीनी उत्पाद भारी मात्रा में भारत आ रहे हैं और इससे आर्थिक असंतुलन की स्थिति बनेगी। जो भारत के लिए उपयुक्त नहीं होगी। इसलिए यहां के उद्यमियों और सरकार को इस दिशा में ठोस प्रयास करने चाहिए।

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हिन्दुस्थान समाचार / शिव सिंह

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