संवेदनशील लोग हृदय से नारायण बन सकते हैं: डॉ. मोहन भागवत

युगवार्ता    07-Nov-2025
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Bhaghwat


बैंगलोर, 7 नवंबर (हि.स.)। जिस व्यक्ति ने समाज के प्रति संवेदनशील संवेदना विकसित कर ली है, वह नर से नारायण बन सकता है। इसी प्रकार संस्कारविहीन व्यक्ति के भी मनुष्य बनने का खतरा है। सम्पूर्ण समाज को संवेदनशील बनना चाहिए, ऐसा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा।

बेंगलुरु में वंचित बच्चों के लिए आश्रय स्थल 'नेले' की 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर जे.पी. नगर स्थित आर.वी. डेंटल कॉलेज में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि किसी काम को लगातार 25 साल तक करते रहना मुश्किल होता है। काम अच्छा भी हो, तो भी रास्ते में थकान तो होती ही है। पहाड़ चढ़ने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और उतरते समय भी संतुलन बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। उन्होंने कहा, हम सभी के लिए खुशी की बात है कि नींव का काम, जो बिना इस चिंता के शुरू हुआ कि कौन जुड़ेगा और कौन जाएगा, 25 साल पूरे होने पर भी आगे बढ़ रहा है।

भौतिकवाद के जाल में फँसी दुनिया आज हर चीज़ में लाभ-हानि सोच रही है। मनुष्य, परिवार, समाज, सृष्टि सब अलग-अलग हैं, और सभी को अपने सुख के लिए प्रयास करना चाहिए। दुनिया लगभग दो हज़ार सालों से इस मानसिकता में जी रही है कि अगर किसी काम से नुकसान होता है तो उसे न करें। कहा जाता है कि सभी को अपने भले के लिए प्रयास करना चाहिए, और सुख का अपना रास्ता खुद ढूँढ़ना चाहिए। आज दुनिया के पास तमाम सुविधाएँ हैं, विज्ञान तरक्की कर चुका है। हालाँकि, उन्होंने अनाथ बच्चों के होने पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसका कारण यह रवैया है कि हमारा समाज से कोई नाता नहीं है।

मनुष्य का सभी जीवों के प्रति संवेदनशील होना ही उसे अन्य प्राणियों से भिन्न बनाता है। उसकी संवेदनशीलता के कारण ही ऋषि वाल्मीकि के मन में कांव-कांव करने वाले पक्षी के विलाप से करुणा का उदय हुआ और रामायण की रचना हुई। यदि मनुष्य में संवेदनशीलता है, तो वह नर से नारायण बन जाता है। इसी प्रकार, यदि उसके पास उचित संस्कार नहीं हैं, तो वह नराधम बन जाता है। संसार में सभी को नारायण बनने का अवसर मिलना चाहिए। लेकिन यदि हमें यह अनुभव न हो कि हम भी संसार से संबंधित हैं, तो कुछ लोग नराधम भी बन सकते हैं। यदि कुछ लोग इस प्रकार नराधम बन जाते हैं, तो यह केवल उनका ही नहीं, बल्कि पूरे समाज का दोष है। इसलिए, कुछ दयालु लोग ऐसा अच्छा वातावरण बनाने के लिए नेला जैसी संस्थाएँ बना रहे हैं।

लेकिन ऐसी संस्थाएँ चलाने वालों का लक्ष्य क्या होना चाहिए? भविष्य में, समाज ज़्यादा संवेदनशील बने, रिश्तों के प्रति जागरूक हो, और समाज सभी बच्चों का ध्यान रखे। समाज को स्वयं यह काम अपने हाथ में लेना चाहिए कि ऐसी संस्था की ज़रूरत ही न पड़े। अगर हम अपने दिलों में दीया जलाएँ और सबके दिलों में उजाला फैलाएँ, तो भारत मज़बूती से खड़ा होगा, फिर भारत विश्व गुरु बनेगा, उन्होंने कहा।

मंच पर 25वीं वर्षगांठ समिति के अध्यक्ष श्रीनाथ भैसानी, नेले फाउंडेशन के अध्यक्ष डी. शिवकुमार, नेले फाउंडेशन के ट्रस्टी सुरेश जे.आर. उपस्थित थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संयुक्त कार्यकारी सचिव मुकुंद सीआर, अखिल भारतीय प्रबंधन प्रमुख मंगेश बेंडे, अखिल भारतीय सह-बौद्धिक प्रमुख सुधीर उपस्थित थे।

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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश महादेवप्पा

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