
पटना, 08 नवम्बर(हि.स.)। बिहार में गुरुवार को पहले चरण का मतदान संपन्न हो चुका है और अब दूसरे दौर के प्रचार के लिए सिर्फ दो दिन ही बचे हैं। हालांकि, पहले चरण के मदतान ने बिहार का राजनीतिक पारा चढ़ा दिया है। प्रदेश के 18 जिलों की 121 सीटों पर हुए मतदान में मतदाताओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
चुनाव आयोग की ओर से जारी मतदान के अंतिम आंकड़ों के अनुसार, पहले चरण में कुल 65.08 फीसदी मतदान दर्ज किया गया। इस ऐतिहासिक मतदान ने सभी समीकरण बदल दिए हैं। पहले चरण के मतदान ने बिहार की राजनीति में सस्पेंस, रोमांच और नए समीकरणों का दौर शुरू भी कर दिया है।
इस बार के चुनाव में सिर्फ उम्मीदवारों का भाग्य नहीं, बल्कि पिछले दो दशकों से मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले नीतीश कुमार की साख, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता, तेजस्वी यादव का युवा कार्ड और प्रशांत किशोर की नई राजनीति पर जनता ने मुहर लगाई है। अब सवाल यही है कि इस पहली जंग में बढ़त किसके पाले में गई है?
राजग और जदयू को मिली शुरुआती राहत
पहले चरण के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) खेमे में आत्मविश्वास झलक रहा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइचेड (जदयू) के नेताओं का मानना है कि महिलाओं और अति-पिछड़ा वर्ग के बीच सरकार की योजनाओं का असर वोट में दिखा है। जदयू को उम्मीद है कि नीतीश कुमार की 'सात निश्चय' योजनाओं और महिला सशक्तिकरण के नारे ने ग्रामीण सीटों पर उन्हें मजबूती दी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता अब भी भाजपा समेत पूरे राजग के लिए मुख्य इंजन बनी हुई है। भाजपा ने पहले ही चरण में 'केंद्र-राज्य की डबल इंजन' अपील पर मतदाताओं को जोड़ने की कोशिश की थी। इस चुनाव में जंगलराज के मुद्दे का भी व्यापक असर देखने को मिल रहा है। युवा मतदाता, जिन्होंने जंगलराज नहीं देखा, बस उसके किस्से और कहानियां ही सुनी हैं, वह भी खुलकर जंगलराज पर चर्चा कर रहे हैं और उन्होंने एक तरह से जंगलराज की जिम्मेदार दलों से दूरी बनाने का मन बना लिया लगता है।
महागठबंधन की खिसकी जमीन
महागठबंधन के लिए पहले चरण में कोई उत्साहजनक रिपोर्ट सामने नहीं आई है। महागठबंधन के नेताओं के बदले सुर से इस बात का अहसास हो रहा है कि उनकी जमीन खिसक चुकी है। तेजस्वी यादव ने बेरोज़गारी, शिक्षा और भ्रष्टाचार पर तीखे हमले किए, लेकिन राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पारंपरिक यादव–मुस्लिम समीकरण पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सेंधबाज़ी की चर्चा हो रही है। इस बीच कांग्रेस और वाम दलों ने कुछ इलाकों में मजबूत पकड़ दिखाई, मगर राज्यव्यापी रुझान अभी राजग की ओर झुकते नज़र आ रहे हैं। सीमांचल और भोजपुर बेल्ट में राजद का प्रभाव कायम माना जा रहा है। जहां महागठबंधन अब दूसरे चरण में जोर लगाएगा।
वोट चोरी का मुद्दा फुस्स बम
बिहार में पहले चरण के मतदान से एक दिन पहले कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने दिल्ली में एक प्रेस वार्ता कर भाजपा पर हरियाणा विधानसभा चुनाव में वोट चोरी के आरोप लगाए। राहुल के वोट चोरी के आरोपों को हाइड्रोजन बम कहकर प्रचारित किया गया, लेकिन बिहार में वोट चोरी का मुद्दा चर्चा से ही गायब रहा। राहुल का हाइड्रोजन बम सुतली बम से भी कमजोर साबित हुआ।
जन सुराज की चर्चा पड़ी मंद
प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज बिहार में खुद को तीसरी ताकत के रूप में पेश कर रही थी, लेकिन पहले चरण में उसका प्रभाव सीमित रहा। प्रशांत किशोर की सभाओं में भीड़ ज़रूर दिखी, लेकिन ज़मीन पर वोट ट्रांसफर नहीं हो पाया। बिहार की राजनीति को जानने वाले रजनीकांत वशिष्ठ के मुताबिक बिहार की राजनीति बड़ी उलझी हुई है। जनता की नब्ज पकड़ने के लिए जन सुराज को लंबी राजनीतिक यात्रा तय करनी होगी।
दूसरे चरण के मतदान से पहले दोनों पक्षों ने कसी कमर
पहले चरण में राजग को शुरुआती बढ़त के संकेत जरूर मिल रहे हैं, लेकिन महागठबंधन खुद को मुकाबले में बनाए रखने के लिए पसीना बहा रहा है। उधर, जन सुराज तीसरा मोर्चा बनने की कोशिश में जुटा है, जिसकी मौजूदगी कई सीटों पर वोट बंटवारे का कारण बन सकती है। अब सबकी निगाहें 11 नवंबर पर टिकी हैं, जब दूसरे चरण का मतदान होगा। मतो की गिनती 14 नवंबर को होगी और उसी दिन पता चलेगा कि बिहार की जनता ने इस बार विकास की निरंतरता, बदलाव की नई राह और परंपरा की वापसी में से किस के लिए ईवीएम का बटन दबाया था।
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हिन्दुस्थान समाचार/डॉ. आशीष वशिष्ठ
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश