गुजरात ने आदिवासी समुदाय के स्वास्थ्य के लिए शुरू की जीनोम सीक्वेंसिंग, देश का पहला राज्य बना

युगवार्ता    08-Nov-2025
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जीनोम सीक्वेंसिंग प्रोजेक्ट


जीनोम सीक्वेंसिंग प्रोजेक्ट


जीनोम सीक्वेंसिंग प्रोजेक्ट


गुजरात की अत्यधुनिक जीनोम सुविधा : 48 से 72 घंटे में होती है 25-50 नमूनों की सीक्वेंसिंग

गांधीनगर, 08 नवंबर (हि.स.)। गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि गुजरात सरकार प्रदेश के आदिवासी समुदायों को सशक्त बनाने को प्रतिबद्ध है। इस प्रतिबद्धता के परिणामस्वरूप गुजरात, भारत का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिसने आदिवासी समुदायों पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्यापक जीनोम सीक्वेंसिंग (अनुक्रमण) प्रोजेक्ट शुरू किया है। यह अहम जानकारी शनिवार को राज्य सूचना विभाग ने दी।

मुख्यमंत्री पटेल ने कहा कि गुजरात ने आदिवासी लोक नायक भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर वर्ष 2025 को ‘जनजातीय गौरव वर्ष’ के रूप में मनाने का संकल्प किया है। भगवान बिरसा मुंडा आदिवासी समाज की अस्मिता, आत्मसम्मान और बहादुरी के प्रतीक हैं, उनके सम्मान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस की पहल शुरू की है। उन्होंने कहा कि मोदी दृढ़तापूर्वक यह मानते हैं कि जब हमारे आदिवासी समुदाय समृद्ध होंगे, तो भारत भी समृद्ध होगा। उनके इस विजन का अनुसरण करते हुए गुजरात में मुख्यमंत्री पटेल के नेतृत्व में राज्य सरकार गुजरात के आदिवासी समुदायों को सशक्त बनाने को प्रतिबद्ध है।

जीनोम सीक्वेंसिंग और आदिवासी समुदाय के लिए इसका महत्व

शरीर की कोशिकाओं के अंदर मौजूद आनुवंशिक सामग्री को जीनोम कहा जाता है। कोशिका के अंदर जीन का सटीक स्थान और उसकी रचना को समझने के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग की जाती है। यह जीनोम में होने वाले परिवर्तन के बारे में बताता है। गुजरात की आदिवासी आबादी लंबे समय से थैलेसीमिया और सिकल सेल जैसी आनुवंशिक बीमारियों से जूझ रही है। कुछ आनुवंशिक बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनके बारे में आखिरी स्टेज तक पता नहीं चल पाता, जिससे उपचार और अधिक जटिल हो जाता है। जीनोम सीक्वेंसिंग की मदद से वैज्ञानिक म्यूटेशन (परिवर्तनों) का पता लगा सकते हैं, कम लागत वाले डायग्नोस्टिक पैनल बना सकते हैं, और आईवीएफ प्रक्रियाओं के दौरान प्रसवपूर्व या फिर भ्रूण-स्तरीय परीक्षण भी कर सकते हैं।

जीनोम मैपिंग के जरिए आदिवासी समुदायों के स्वास्थ्य में सुधार का संकल्प

यह प्रोजेक्ट आदिवासी समुदायों का स्वास्थ्य कल्याण सुनिश्चित करते हुए बेहतर स्वास्थ्य-उन्मुख योजनाएं बनाने में मदद करेगा। इससे बीमारियों का पता लगाने, कुपोषण और एनीमिया जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान करने तथा सिकल सेल एनीमिया एवं ग्लूकोज-6-फॉस्फेट डिहाइड्रोजनेज (जी6पीडी) की कमी जैसे आनुवंशिक विकारों का शीघ्र निदान संभव होगा।

उदाहरण के लिए, यदि माता और पिता, दोनों में बीटा-ग्लोबिन जीन (जिसे वाहक कहा जाता है) की एक म्यूटेटेड कॉपी है, तो इस बात की 25 फीसदी संभावना है कि उनके बच्चे को दोनों म्यूटेटेड कॉपियां विरासत में मिलेगी, जिसके चलते सिकल सेल रोग विकसित होगा। जीनोम मैपिंग के माध्यम से ऐसे वाहकों की शीघ्र पहचान की जा सकती है, जिससे रोग के बारे में शीघ्र पता लगाया जा सके और निवारक उपाय किए जा सकें। इससे समुदाय के आनुवंशिक लक्षणों के अनुसार डीएनए परीक्षण तैयार किया जा सकता है।

ये परीक्षण केवल संबंधित समुदाय में आम तौर पर होने वाले जीन परितवर्तनों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, इसका खर्च केवल 1000 से 1500 रुपए तक होता है। इसकी तुलना में, संपूर्ण जीनोम सीक्वेंसिंग व्यक्ति के सभी जीनों की पहचान करता है, जिसमें प्रति नमूना लगभग 1 लाख रुपए का खर्च होता है और एक्सोम सीक्वेंसिंग केवल जीन के कोडिंग हिस्सों को पढ़ता है, जिसमें प्रति नमूना लगभग 18,000 से 20,000 रुपए का खर्च होता है। इस प्रकार, समुदाय-विशिष्ट परीक्षण ज्यादा व्यावहारिक और कम खर्चीले होते हैं।

11 जिलों के 31 आदिवासी समुदायों के डीएनए नमूने एकत्र किए जाएंगे

गुजरात में जीनोम सीक्वेंसिंग प्रोजेक्ट के अंतर्गत शोधकर्ता 11 जिलों के 31 आदिवासी समुदायों में से डीएनए के नमूने एकत्र कर एक डेटाबेस बना रहे हैं, जो इन समूहों में आनुवंशिक रोगों के निदान और उपचार के तरीकों को सुधारने में मदद करेगा। वित्तीय वर्ष 2025-26 में, गुजरात सरकार ने एक व्यापक जीनोम डेटाबेस बनाने और मौजूदा डेटा अंतराल को पाटने के लिए ‘आदिवासी आबादी के लिए रेफरेंस जीनोम डेटाबेस का निर्माण’ प्रोजेक्ट को स्वीकृति दी है। यह प्रोजेक्ट भारत सरकार के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट के सहयोग से चलाय जा रहा है।

आदिवासी समुदाय के स्वास्थ्य के लिए जीनोम विज्ञान का उपयोग करने में गुजरात अग्रणी

गुजरात में जीनोम अनुसंधान को गति देने के लिए जीबीआरसी में आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिनमें लॉन्ग-रीड सीक्वेंसर सहित तीन जीनोम सीक्वेंसिंग मशीनें शामिल हैं, जो एक समय में 5000-10,000 बेस पेयर (मूल जोड़े) का विश्लेषण कर सकती है, जिससे वैज्ञानिकों को जटिल आनुवंशिक बदलावों का पता लगाने में मदद मिलती है। इन मशीनों का उपयोग पहले कोविड-19 के दौरान किया जाता था, लेकिन अब इनका उपयोग व्यापक जीनोम अनुसंधान के लिए किया जा रहा है।

गुजरात में, प्रत्येक सीक्वेंसिंग बैच 25-50 मानव जीनोम की सीक्वेंसिंग कर सकता है, इसके परिणाम 48 से 72 घंटे में तैयार हो जाते हैं। जीबीआरसी ने लागत प्रबंधन और स्थानीय इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करके प्रति नमूना खर्च 85,000 रुपए से घटाकर लगभग 60,000 रुपए कर दिया है। यह अनुसंधान डॉक्टरों को सुरक्षित और ज्यादा प्रभावी उपचार प्रदान करने के साथ ही यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि आदिवासी समुदाय को आधुनिक जीनोम विज्ञान का लाभ मिले।

गुजरात जीनोम सीक्वेंसिग प्रोजेक्ट शुरू करने वाला देश का पहला राज्य

मुख्यमंत्री पटेल के नेतृत्व में गुजरात देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिसने विशेष आदिवासी समुदायों के लिए बड़े पैमाने पर जीनोम सीक्वेंसिंग प्रोजेक्ट शुरू किया है। गुजरात बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (जीबीआरसी) के नेतृत्व में यह प्रोजेक्ट आदिवासी समुदायों के आनुवंशिक खाके (जेनेटिक ब्लूप्रिंट) का अध्ययन करके रोग के परीक्षण, उपचार और स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रित करता है। उल्लेखनीय है कि जीनोम इंडिया पहल के तहत कार्यरत जीनोम सीक्वेंसिंग प्रोजेक्ट यह समझने का प्रयास करता है कि आखिर क्यों आदिवासी समुदायों में आनुवंशिक विकृतियां बढ़ रही हैं, जो अक्सर अंतर्विवाह (अपने ही समूह में विवाह) और सीमित आनुवंशिक विविधता के कारण होते हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / Abhishek Barad

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