
बेंगलुरू, 9 नवंबर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि संगठन का ध्येय सुस्पष्ट है, संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित कर अच्छे इरादों वाला मजबूत समाज बनाना। यह संगठित हिंदू समाज धार्मिक ज्ञान के माध्यम से दुनिया को शांति और खुशी दे, यही हमारा एकमात्र विजन है। इसे प्राप्त करने के बाद संघ को किसी अन्य लक्ष्य की आवश्यकता नहीं है। संगठित समाज बाकी काम कर देगा।
बेंगलुरु में आयोजित संघ शताब्दी व्याख्यानमाला के दूसरे दिन रविवार को प्रश्नों का उत्तर देते हुए सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा, संगठन के अस्तित्व और कानूनी वैधता पर सवाल उठाने की जरूरत नहीं है। अदालत, सरकार और कर विभाग, सभी ने संगठन को मान्यता दी है।
भागवत ने कहा, संघ की स्थापना साल 1925 में हुई थी। उस समय हम अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे थे। तो फिर उनकी सरकार में जाकर पंजीकरण कराना कैसे संभव है? आज़ादी के बाद के भारत में भी पंजीकरण अनिवार्य नहीं है। क़ानून के अनुसार, यह संस्था 'व्यक्तियों के समूह' की श्रेणी में आती है। जब आयकर विभाग ने कर लगाया, तो अदालत ने 'गुरु दक्षिणा' को कर-मुक्त घोषित कर दिया। हालाँकि सरकार ने संस्था पर तीन बार प्रतिबंध लगाया लेकिन अदालत ने हर बार उसे रद्द कर दिया। इसलिए, संस्था को क़ानूनी मान्यता प्राप्त है।
अगले बीस वर्षों के विजन के बारे में बोलते हुए भागवत ने कहा, हमारा मिशन स्पष्ट है, संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करना, अच्छे इरादों वाला एक मजबूत समाज बनाना। यह संगठित हिंदू समाज धार्मिक ज्ञान के माध्यम से दुनिया को शांति और खुशी दे। यही हमारा एकमात्र विजन है। इसे प्राप्त करने के बाद संघ को किसी अन्य लक्ष्य की आवश्यकता नहीं है। संगठित समाज बाकी काम कर देगा।
अल्पसंख्यकों से संबंधित एक प्रश्न के उत्तर में भागवत ने कहा, उन्होंने कहा कि संघ जाति, धर्म या संप्रदाय के आधार पर किसी के लिए अपने दरवाजे बंद नहीं करता। हर कोई 'भारत माता का पुत्र' होने की भावना के साथ शाखा में भाग ले सकता है। मोहन भागवत ने कहा, संघ किसी को विशेष लाभ नहीं देता, न ही किसी के लिए कोई अन्य स्कूल या संस्थान शुरू करता है। संघ का काम 'शाखा' और 'मानव विकास' है। विद्या भारती जैसी स्वतंत्र संस्थाएँ अन्य कार्य कर रही हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश महादेवप्पा