
नई दिल्ली, 10 दिसंबर (हि.स.)।
भारतीयों के खाने में प्रोटीन की मात्रा का लगभग आधा हिस्सा अब चावल, गेहूं, सूजी और मैदा जैसे अनाजों से आता है। यह जानकारी काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के एक नए स्वतंत्र अध्ययन से सामने आई है। इसमें 2023-24 एनएसएसओ घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) आंकड़ों के आधार पर खान-पान के रुझानों का विश्लेषण किया गया है।
भारतीय पर्याप्त मात्रा में, औसतन 55.6 ग्राम प्रतिदिन, प्रोटीन का सेवन करते हैं। लेकिन इस अध्ययन में पाया गया है कि इस प्रोटीन का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा अनाजों से आता है, जिनमें कम गुणवत्ता वाला अमीनो एसिड होता है और वे आसानी से पचते नहीं हैं। प्रोटीन में अनाजों की यह हिस्सेदारी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एनआईएल) की ओर से सुझाई गई 32 प्रतिशत की मात्रा से बहुत अधिक है। सीईईडब्ल्यू अध्ययन में यह भी पाया गया है कि भोजन में सब्जी, फल और दाल जैसे प्रमुख खाद्य समूहों का सेवन कम है, जबकि खाना पकाने के तेल, नमक और चीनी की अधिकता है। इसके साथ ही सर्वाधिक खर्च करने वाली 10 प्रतिशत आबादी सबसे गरीब की तुलना में 1.5 गुना अधिक प्रोटीन का सेवन करती है।
बुधवार को सीईईडब्ल्यू फेलो अपूर्व खंडेलवाल ने कहा कि यह अध्ययन भारत की खाद्य प्रणाली में एक छिपे हुए संकट को सामने लाता है, जैसे कम गुणवत्ता के प्रोटीन पर बहुत अधिक निर्भरता, अनाजों व तेलों से अतिरिक्त कैलोरी का सेवन, विविधतापूर्ण व पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य सामग्री का बहुत कम उपयोग। सबसे गरीब 10 प्रतिशत घरों का एक व्यक्ति एक सप्ताह में केवल 2-3 गिलास दूध और 2 केले के बराबर फल खाता है, जबकि सबसे अमीर 10 प्रतिशत घरों का एक व्यक्ति 8-9 गिलास दूध और 8-10 केले के बराबर फल खाता है। खान-पान का यह अंतर संतुलित आहार तक पहुंच में व्यापक असमानता दर्शाता है। इसी के साथ, पोषण और आय के लिए सिर्फ कुछ फसलों पर अत्यधिक निर्भरता इसका जलवायु अनुकूलन घटा देती है। इसलिए खाने की थाली से लेकर खेत तक विविधता लाना, एक राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए।”
सीईईडब्ल्यू के मुताबिक बीते एक दशक में भारत का प्रोटीन सेवन थोड़ा बढ़ा है, लेकिन यह पर्याप्त है। भारत के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन औसत प्रोटीन सेवन 2011-12 और 2023-24 के बीच 60.7 ग्राम से बढ़कर 61.8 ग्राम और शहरी क्षेत्रों में 60.3 ग्राम से बढ़कर 63.4 ग्राम हो गया है।
सीईईडब्ल्यू के विश्लेषण से पता चलता है कि इन औसतों के पीछे गहरी असमानता मौजूद है: भारत की सबसे अमीर 10 प्रतिशत आबादी सबसे गरीब आबादी की तुलना में अपने घर पर 1.5 गुना अधिक प्रोटीन का सेवन करती है, और पशु-आधारित प्रोटीन के स्रोतों तक उसकी पहुंच भी अधिक है। उदाहरण के लिए, ग्रामीण आबादी के सबसे गरीब 10 प्रतिशत लोगों में दूध का सेवन सुझाए गए स्तर (अनुशंसित स्तर) का सिर्फ एक तिहाई है, जबकि सबसे अमीर लोगों में यह सुझाए गए स्तर से 110 प्रतिशत से अधिक है।
सीईईडब्ल्यू के मुताबिक पिछले एक दशक में भारत में फाइबर सेवन (रेशे वाली खाद्य सामग्री) में थोड़ा सुधार आया है। यह प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 28.4 ग्राम से बढ़कर 31.5 ग्राम हो गया है, जो सुझाए गए 32.7 ग्राम के स्तर के नजदीक है। लेकिन इस फाइबर का अधिकांश हिस्सा दालों, फलों, मेवे (नट्स) और विभिन्न सब्जियों जैसे अधिक फाइबर वाले खाद्य पदार्थों के बजाए अनाज से आता है। शाकाहारियों और मांसाहारियों दोनों ही श्रेणियों में हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन बहुत कम है। यह पाचन स्वास्थ्य, आंत के माइक्रोबायोटा संतुलन और दीर्घकालिक रोग की रोकथाम को कमजोर करता है।
भारतीय प्रतिदिन लगभग 11 ग्राम नमक का सेवन करते हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के सुझाए गए 5 ग्राम के स्तर से दोगुना से भी अधिक है। इस नमक सेवन में से 7 ग्राम से अधिक नमक घर पर पकाए गए खाने से आता है, जबकि बाकी हिस्सा परिष्कृत और परोसे गए खाद्य पदार्थों से आता है, जो सुविधाजनक और पैकेज्ड उत्पादों पर बढ़ती निर्भरता को दर्शाता है।
सुहानी गुप्ता, रिसर्च एनालिस्ट, सीईईडब्ल्यू ने कहा, “मोटे अनाज और दालें बेहतर पोषण होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं, लेकिन इन्हें प्रमुख खाद्य कार्यक्रमों, जैसे कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में कम इस्तेमाल किए जाते हैं, कम उपलब्ध कराए जाते हैं, जिनमें चावल और गेहूं की अधिकता बनी हुई है। वहीं, हमारे अध्ययन से पता चलता है कि उच्च आय वाले परिवार सबसे गरीब परिवारों की तुलना में लगभग दोगुना वसा का सेवन करते हैं, जो कुपोषण के बढ़ते हुए दोहरे बोझ का संकेत देता है। इसे दूर करने के लिए अलग-अलग उपाय अपनाने की जरूरत है, जैसे विविधतापूर्ण, पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों तक पहुंच और मांग को मजबूत करना, विशेष रूप से कम आय समूहों के लिए, जबकि अमीर समूहों के लिए अतिरिक्त खपत को घटाना, और पैकेज्ड प्रोसेस्ड फूड की व्यवस्था को नए सिरे से तैयार करना।”
सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि व्यवस्ता के स्तर पर, प्रमुख सार्वजनिक खाद्य कार्यक्रमों - जिनमें पीडीएस, पीएम पोषण और सक्षम आंगनबाड़ी और पोषण 2.0 शामिल हैं - में सुधार करना ज़रूरी है ताकि अनाज पर ज्यादा ध्यान देने के बजाय मोटे अनाजों, दालों, दूध, अंडे, फल और सब्जियों तक पहुंच बढ़ाई जा सके। इस परिवर्तन के लिए सरकारों, बाजारों और नागरिक समाज को एकसाथ मिलकर काम करना होगा।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी