(फिल्म समीक्षा) संवेदनशील विषय सरोगेसी पर मोहसिन खान की ‘ममता चाइल्ड फैक्ट्री’ ने जीता दिल

युगवार्ता    10-Dec-2025
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मोहसिन खान


फिल्म: ममता चाइल्ड फैक्ट्री

कलाकार: प्रथमेश परब, अंकिता लांडे, पृथ्वी प्रताप और गणेश यादव

डायरेक्टर: मोहसिन खान

रिलीज़ डेट : 10 Dec 2025

भाषा: हिंदी

रेटिंग: 3.5 स्टार्स

बॉलीवुड में इन दिनों नए और संवेदनशील विषयों पर फ़िल्में बनाने का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। इसी कड़ी में निर्देशक मोहसिन खान अपनी पहली हिंदी फिल्म ‘ममता चाइल्ड फैक्ट्री’ लेकर आए हैं, जो सरोगेसी जैसे गंभीर मुद्दे को बेहद सहज, भावुक और मनोरंजक अंदाज़ में पेश करती है। सेंसर बोर्ड के साथ लंबे विवादों के बाद यह फिल्म ओटीटी पर रिलीज हुई है। मराठी स्टार प्रथमेश परब की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म इमोशंस, ड्रामा और सिचुएशनल कॉमेडी का असरदार मिश्रण है, जो दर्शकों को शुरुआत से अंत तक बांधे रखती है।

कहानी

कहानी दिगंबर कांतोड़े उर्फ भाऊ (प्रथमेश परब) और उसके दोस्त चोच्या (पृथ्वी प्रताप) के इर्दगिर्द घूमती है, जो एक छोटे से शहर में रियल एस्टेट एजेंट हैं। इन्हीं की मुलाकात शहर में सरोगेसी क्लिनिक खोलने आई डॉ. अमृता देशमुख (अंकिता लांडे) से होती है। गांव की महिलाओं को सरोगेसी समझाना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाता है। इसी बीच एक लोकल एमएलए अपनी पत्नी के लिए सीक्रेटली सरोगेसी करवाता है और यहीं से कहानी में कॉमेडी के साथ कई दिलचस्प मोड़ आते हैं। छोटे शहर की मानसिकता, उनकी धारणाएं और वहां की अनोखी घटनाएं फिल्म में भरपूर मनोरंजन पैदा करती हैं।

परफॉर्मेंस

'दृश्यम' और 'ताजा खबर' जैसी परियोजनाओं में नज़र आ चुके प्रथमेश परब इस फिल्म से हिंदी में डेब्यू करते हैं और शुरुआत से ही अपनी दमदार एक्टिंग का लोहा मनवा लेते हैं। भाऊ के किरदार में उन्होंने मासूमियत, मज़ाकिया अंदाज़ और भावनाओं का बेहतरीन संतुलन दिखाया है। पृथ्वी प्रताप ने चोच्या के रोल में अच्छी कॉमिक टाइमिंग दिखाई, जबकि अंकिता लांडे ने डॉ. अमृता के किरदार को विश्वास के साथ निभाया। नेता संजय भोसले के रूप में गणेश यादव भी प्रभाव छोड़ते हैं।

लेखन और निर्देशन

ऐड फिल्म मेकर के तौर पर पहचाने जाने वाले मोहसिन खान ने अपनी पहली हिंदी फीचर फिल्म में सरोगेसी जैसे सामाजिक मुद्दे को मनोरंजन, संवेदनशीलता और सटीक व्यंग्य के साथ पेश किया है। फिल्म छोटे शहरों की मानसिकता को बारीकी से पकड़ती है और आधुनिक मेडिकल साइंस के बीच उनकी सोच के टकराव को ह्यूमर के माध्यम से दर्शाती है। कई सीन और डायलॉग दर्शकों के दिल को छूते हैं। फिल्म का टोन मनोरंजक होते हुए भी अपने मुद्दे को गंभीरता से सामने रखता है और अंत में एक मजबूत सामाजिक संदेश भी देता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / लोकेश चंद्र दुबे

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