
नई दिल्ली, 10 दिसंबर (हि.स.)। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने कहा है कि देश में किसी धर्म अथवा सम्प्रदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने की मौजूदा व्यवस्था पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। भारतीय संविधान में धार्मिक अल्पसंख्यक शब्द का प्रयोग तो है, पर इसको स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। इसलिए यह आवश्यक है कि 'अल्पसंख्यक' को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए।
विहिप की केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की दो दिवसीय बैठक के बुधवार को समापन के बाद अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने इसमें लिए गए फैसलों की जानकारी मीडिया से साझा की। उन्होंने कहा कि संविधान में धार्मिक अल्पसंख्यक शब्द का प्रयोग तो है, पर इसकी कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के अनुसार केंद्र सरकार किसी भी धर्म को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती है।
उन्होंने कहा कि मार्गदर्शक मंडल का मत है कि यह तय होना चाहिए कि किसी धर्म को अल्पसंख्यक घोषित करने के पीछे क्या आधार हों। क्या उस धर्म के लोगों को कभी उत्पीड़न सहना पड़ा है? क्या वे किसी क्षेत्र में सामाजिक या आर्थिक रूप से पीछे रह गए हैं?।
बैठक में यह भी कहा गया कि भारत में मुसलमान और ईसाई समुदाय को इतिहास के किसी भी दौर में धर्म के आधार पर उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा है। वर्ष 2011 की जनगणना में मुसलमानों की आबादी 14 प्रतिशत से अधिक थी और वर्तमान में यह 18–20 प्रतिशत तक बताई जा रही है। ऐसे में धर्म आधारित अल्पसंख्यक की व्यवस्था पर पुनर्विचार की जरूरत बताई गई।
विहिप अध्यक्ष ने कहा कि लाल किले पर हाल में हुए धमाके की जांच से यह स्पष्ट हुआ है कि हमलावर न तो गरीब थे और न ही किसी तरह से सामाजिक तौर पर पिछड़े। वे पढ़े-लिखे और सक्षम परिवारों से थे। बैठक में यह चिंता जताई गई कि एक विश्वविद्यालय जिहादी विचारधारा फैलाने, युवाओं की भर्ती करने और विदेश से धन जुटाने का केंद्र बन चुका है। आलोक कुमार ने कहा कि जिहादी सोच केवल कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं, बल्कि एक गहरी वैचारिक समस्या है। लोकतंत्र और स्वतंत्रता के दौर में इस मानसिकता का सामाजिक, वैचारिक और कानूनी स्तर पर कड़ा प्रतिरोध जरूरी है।
वहीं बैठक में तमिलनाडु उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जीआर स्वामीनाथन को हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाने से जुड़े संदर्भ पर भी चर्चा हुई।
विहिप ने कहा कि किसी निर्णय के खिलाफ उचित रास्ता उच्चतम न्यायालय में अपील है, न कि किसी जज पर राजनीतिक दबाव बनाना। विहिप ने ऐसे प्रयासों की कड़ी निंदा की है।
-------------
हिन्दुस्थान समाचार / कुमार अश्वनी