अरावली पहाड़ियों को लेकर अपने फैसले पर पुनर्विचार करे उच्‍चतम न्‍यायालय : गहलोत

युगवार्ता    16-Dec-2025
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पूर्व मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत


जयपुर, 16 दिसंबर (हि.स.)। पूर्व मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत ने अरावली पहाड़ियों को लेकर हाल ही में उच्‍चतम न्‍यायालय में केंद्र सरकार की ओर से लगाई गई याचिका का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की है। उन्‍होंने कहा कि यह फैसला पर्यावरण संरक्षण नहीं, बल्कि खनन माफियाओं के लिए 'रेड कार्पेट' है। थार के रेगिस्तान को दिल्ली तक जाने का निमंत्रण देकर सरकार आने वाली पीढ़ियों के साथ जो अन्याय कर रही है, उसे इतिहास कभी माफ नहीं करेगा।

गहलोत ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि केंद्र सरकार ने उच्‍चतम न्‍यायालय में ऐसी रिपोर्ट पेश की है जिससे अरावली का दायरा सिमट गया है। अरावली राजस्थान का केवल पर्वत नहीं, हमारा 'रक्षा कवच' है। केंद्र सरकार की सिफारिश पर इसे '100 मीटर' के दायरे में समेटना प्रदेश की 90 फीसदी अरावली के 'मृत्यु प्रमाण पत्र' पर हस्ताक्षर करने जैसा है। उन्होंने कहा कि सबसे भयावह तथ्य यह है कि राजस्थान की 90 फीसदी अरावली पहाड़ियां 100 मीटर से कम हैं। यदि इन्हें परिभाषा से बाहर कर दिया गया, तो यह केवल नाम बदलना नहीं है, बल्कि कानूनी कवच हटाना है। इसका सीधा मतलब है कि इन क्षेत्रों में अब वन संरक्षण अधिनियम लागू नहीं होगा और खनन बेरोकटोक हो सकेगा।

गहलोत ने लिखा, पहाड़ की परिभाषा उसकी ऊंचाई से नहीं, बल्कि उसकी भूगर्भीय संरचना से होती है। एक छोटी चट्टान भी उसी टेक्टोनिक प्लेट और पर्वतमाला का हिस्सा है, जो एक ऊंची चोटी है। इसे अलग करना वैज्ञानिक रूप से तर्कहीन है। अरावली थार रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकने वाली दीवार है। विशेषज्ञों की चेतावनी है कि 10 से 30 मीटर ऊंची छोटी पहाड़ियां (रिज) भी धूल भरी आंधियों को रोकने में उतनी ही कारगर होती हैं। इन छोटी पहाड़ियों को खनन के लिए खोल देने का मतलब दिल्ली और पूर्वी राजस्थान तक रेगिस्तान को खुद निमंत्रण देना है।

गहलोत ने बताया कि अरावली की चट्टानी संरचना बारिश के पानी को रोकती है और उसे जमीन के भीतर भेजती है। ये पहाड़ियां पूरे क्षेत्र में भूजल रिचार्ज का काम करती हैं। इन्हें हटाने का मतलब पहले से ही पानी की कमी से जूझ रहे उत्तर-पश्चिम भारत में सूखे को निमंत्रण देना है। उन्‍होंने दावा किया कि यह फैसला पर्यावरण संरक्षण नहीं, बल्कि खनन माफियाओं के लिए 'रेड कार्पेट' है। थार के रेगिस्तान को दिल्ली तक जाने का निमंत्रण देकर सरकार आने वाली पीढ़ियों के साथ जो अन्याय कर रही है, उसे इतिहास कभी माफ नहीं करेगा। विडंबना ये है कि सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई इसलिए शुरू हुई थी, ताकि अरावली को स्पष्ट रूप से पहचाना और बचाया जा सके, लेकिन केंद्र सरकार की जिस सिफारिश को कोर्ट ने माना, उसने अरावली के 90 फीसदी हिस्से को ही तकनीकी रूप से 'गायब' कर दिया।

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हिन्दुस्थान समाचार / संदीप

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