
नई दिल्ली, 16 दिसंबर (हि.स)। लोकसभा ने मंगलवार को ‘सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानूनों में संशोधन) विधेयक, 2025’ को अपनी मंजूरी दे दी। विधेयक पर चर्चा और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के जवाब के बाद सदन ने विपक्षी दल के सदस्यों के संशोधनों को खारिज करते हुए ‘सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानूनों में संशोधन) विधेयक, 2025’ को ध्वनि मत से स्वीकृति दे दी।
इससे पहले केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सदन में विधेयक पेश करते हुए बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश और घरेलू कंपनियों की कार्यक्षमता बढ़ाने का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में तीन प्रमुख कानूनों, बीमा अधिनियम (1938), जीवन बीमा निगम अधिनियम (1956) और बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम (1999) में व्यापक संशोधन का प्रस्ताव है।
सीतारमण ने लोकसभा में ‘सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानूनों में संशोधन) विधेयक, 2025’ पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि बीमा कंपनियों द्वारा अर्जित किए गए अवैध लाभों को वापस लेने और प्रभावित बीमा पॉलिसीधारकों को वितरित करने के लिए भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) को सशक्त बनाया जा रहा है। वित्त मंत्री ने कहा कि बीमा विधेयक में पुनर्बीमा कंपनियों के लिए शुद्ध स्वामित्व निधि की आवश्यकता को 5,000 करोड़ रुपये से घटाकर 1,000 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में कहा कि जीएसटी परिषद सचिवालय जीएसटी कटौती का लाभ पॉलिसीधारकों तक नहीं पहुंचने से संबंधित शिकायतों की जांच कर रहा है। ये विधेयक सार्वभौमिक बीमा कवरेज और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।
'सबका बीमा सबकी रक्षा विधेयक, 2025 की पांच बड़ी बातें:-
बीमा क्षेत्र में 100 फीसदी विदेशी निवेश
अब तक भारतीय बीमा कंपनियों में विदेशी निवेश की सीमा 74 फीसदी थी। इस विधेयक के पारित होने के बाद अब विदेशी कंपनियां 100 फीसदी स्वामित्व के साथ भारत में काम कर सकेंगी। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे न केवल विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ेगा, बल्कि ग्लोबल बीमा कंपनियां अपनी आधुनिक तकनीक और नए उत्पाद भारतीय ग्राहकों तक पहुंचा सकेंगी।
एलआईसी के बोर्ड को अधिक अधिकार
इस विधेयक में एलआईसी अधिनियम, 1956 में संशोधन कर सरकारी बीमा कंपनी के बोर्ड को अधिक शक्तियां देने का प्रस्ताव है। अब एलआईसी को नए जोनल ऑफिस खोलने के लिए सरकार की पूर्व अनुमति की जरूरत नहीं होगी। इससे सरकारी बीमा कंपनी बाजार में निजी कंपनियों का मुकाबला तेजी से कर सकेगी।
एजेंट्स और मध्यस्थों का 'वन टाइम रजिस्ट्रेशन'
नए विधयेक के कानून में बदलने के बाद बीमा एजेंट्स और इंटरमीडियरीज के लिए 'वन-टाइम रजिस्ट्रेशन' की व्यवस्था लागू की जाएगी। इसका मतलब है कि उन्हें बार-बार लाइसेंस रिन्यू कराने के झंझट से मुक्ति मिलेगी, जो 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' की दिशा में उठाया गया एक एक बड़ा कदम है।
पॉलिसीधारकों की सुरक्षा
विधेयक का मुख्य उद्देश्य पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा करना है। इसमें बीमा कंपनियों द्वारा नियमों का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है। साथ ही दावों के निपटान को तेज और पारदर्शी बनाने के लिए बीमा नियामक आईआरडीएआई को और अधिक मजबूत करने का प्रस्ताव है।
विदेशी री-इंश्योरेंस कंपनियों के लिए राहत
विदेशी री-इंश्योरेंस कंपनियों के लिए 'नेट ओन्ड फंड' की अनिवार्यता को 5,000 करोड़ रुपये से घटाकर 1,000 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव है। इससे भारत में री-इंश्योरेंस का बाजार बड़ा होगा और जोखिम प्रबंधन बेहतर होगा।
उल्लेखनीय है कि यह विधेयक बीमा अधिनियम, 1938, जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956 और बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 में और संशोधन करेगा।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / प्रजेश शंकर