उच्च शिक्षा के नियमन में एकरूपता लाने के लिए नया शिक्षा विधेयक जरूरी : धर्मेन्द्र प्रधान

युगवार्ता    16-Dec-2025
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केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान मंगलवार को संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए


नई दिल्ली, 16 दिसंबर (हि.स.)। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक को समय की मांग बताते हुए मंगलवार को कहा कि उच्च शिक्षा के नियमन, मानक निर्धारण और विश्वविद्यालयों के प्रत्यायन में एक समान व्यवस्था लाने की आवश्यकता है, ताकि इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 के अनुरूप बनाया जा सके। उन्होंने बताया कि यह विधेयक सोमवार को संसद में पेश किया गया, जिसे विपक्ष के विरोध के बीच संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया है।

प्रधान ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि प्रस्तावित विधेयक के तहत नियमन, मानक निर्धारण और प्रत्यायन के लिए तीन अलग-अलग परिषदों का गठन किया जाएगा, जो विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान के साथ समन्वय में कार्य करेंगी।

केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि वर्तमान में उच्च शिक्षा क्षेत्र में कई नियामक, मानक निर्धारण और प्रत्यायन निकाय कार्य कर रहे हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) एक साथ नियामक, मानक निर्धारण और प्रत्यायन की भूमिका निभाता रहा है, जिससे हितों के टकराव और वस्तुनिष्ठता की कमी जैसी समस्याएं सामने आईं। समय के साथ एआईसीटीई, एनसीटीई और संसद के अधिनियमों के तहत बने राष्ट्रीय महत्व के संस्थान अस्तित्व में आए, वहीं वास्तुकला परिषद जैसे निकाय भी कार्यरत हैं। ऐसे में सभी को एक समान ढांचे के अंतर्गत लाने की जरूरत महसूस की गई।

प्रधान ने बताया कि विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान के अंतर्गत तीन स्वायत्त परिषदें होंगी—विकसित भारत शिक्षा विनियमन परिषद (नियामक), विकसित भारत शिक्षा गुणवत्ता परिषद (प्रत्यायन) और विकसित भारत शिक्षा मानक परिषद (मानक निर्धारण)। ये तीनों परिषदें स्वतंत्र रूप से कार्य करेंगी, जबकि शिक्षा अधिष्ठान समन्वय की भूमिका निभाएगा।

राज्य विश्वविद्यालयों से जुड़ी आशंकाओं पर मंत्री ने स्पष्ट किया कि उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि यूजीसी में राज्यों की भूमिका सीमित रही है, लेकिन नई व्यवस्था मौजूदा ढांचे के भीतर ही समन्वय सुनिश्चित करेगी।

इस बीच, प्रस्तावित विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025 के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों के वित्तपोषण की व्यवस्था पर भी प्रकाश डाला गया। वर्तमान प्रणाली के अनुसार केन्द्र सरकार केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को यूजीसी के माध्यम से और राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों को सीधे अनुदान देती है। एनईपी-2020 के अनुरूप अब वित्तपोषण के कार्य को अकादमिक मानक निर्धारण, नियमन और प्रत्यायन से अलग रखने का प्रावधान किया गया है।

विधेयक के अनुसार, केन्द्रीय वित्तपोषित उच्च शिक्षण संस्थानों को अनुदान वितरण की जिम्मेदारी शिक्षा मंत्रालय द्वारा विकसित पारदर्शी तंत्र के माध्यम से सुनिश्चित की जाएगी। संस्थानों के प्रदर्शन पर नियामक परिषद की प्रतिक्रिया अनुदान की मात्रा तय करने का एक प्रमुख आधार होगी, जिससे पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके। वहीं, जेआरएफ, एसआरएफ जैसी अन्य सहायता योजनाएं पूर्ववत तंत्र के तहत जारी रहेंगी।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार

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