सुनामी के दौरान तिरुचेंदूर में हुआ चमत्कार; ‘समुद्र का रक्षक मुरुगन’ के रूप में आज भी पूजे जाते हैं सुभ्रमण्यम स्वामी

युगवार्ता    26-Dec-2025
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तिरुचेंदूर सुब्रमण्य स्वामी मंदिर बीच


तूतूकुड़ी, 26 दिसंबर (हि.स.)। 26 दिसंबर 2004 को आई विनाशकारी सुनामी ने तमिलनाडु के तटीय इलाकों को झकझोर कर रख दिया था। कन्याकुमारी से लेकर चेन्नई तक फैले सैकड़ों गांवों में तबाही मच गई थी। हजारों लोगों की जान चली गई, जबकि असंख्य परिवार बेघर हो गए, लेकिन इसी व्यापक विनाश के बीच तिरुचेंदूर में एक ऐसी घटना घटी, जिसे आज भी श्रद्धालु दैवीय चमत्कार के रूप में स्मरण करते हैं। समुद्र के अत्यंत समीप स्थित अरुलमिगु सुभ्रमण्यम स्वामी मंदिर सुनामी की प्रचंड लहरों के बावजूद पूरी तरह सुरक्षित रहा।

तमिलनाडु के इतिहास में 26 दिसंबर 2004 एक ऐसी तारीख है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। जिस प्रकार उस दिन हिंद महासागर में उठी विनाशकारी सुनामी ने दुनिया के कई देशों में भारी तबाही मचाई थी, उसी तरह यह दिन तमिलनाडु के तटीय इलाकों के लिए भी एक अविस्मरणीय त्रासदी बनकर सामने आया। उस समय तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों, विशेषकर मछुआरा समुदाय, ने कभी “सुनामी” जैसे शब्द के बारे में सुना तक नहीं था। अचानक उठीं विशाल समुद्री लहरों ने उनके जीवन को पल भर में तहस-नहस कर दिया।

दक्षिण में कन्याकुमारी से लेकर उत्तर में चेन्नई तक फैले सैकड़ों तटीय गांवों में सुनामी ने व्यापक तबाही मचाई। इस प्राकृतिक आपदा में हजारों लोगों की जान चली गई, जबकि असंख्य परिवार बेघर हो गए। कई स्थानों पर मछुआरों की नावें, जाल, मछली पकड़ने के उपकरण और घर पूरी तरह नष्ट हो गए। समुद्र पर निर्भर रहने वाला मछुआरा समुदाय आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से बुरी तरह प्रभावित हुआ और उनका सामान्य जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया।

इस व्यापक विनाश के बीच एक ऐसी घटना भी सामने आई, जिसे आज श्रद्धालु चमत्कार के रूप में याद करते हैं। सुनामी की भीषण और ऊंची लहरों के बावजूद समुद्र के अत्यंत समीप स्थित तिरुचेंदूर सुभ्रमण्यम स्वामी मंदिर पूरी तरह सुरक्षित रहा। जब आसपास के गांवों और बस्तियों में समुद्र का पानी घुस गया था, उस समय भी मंदिर परिसर को किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं पहुंची।

भक्तजन इस घटना को भगवान मुरुगन की दिव्य कृपा और आध्यात्मिक शक्ति का प्रमाण मानते हैं। इसी आस्था और विश्वास के चलते भगवान मुरुगन को ‘कडल काथा कांदन’, अर्थात ‘समुद्र का रक्षक मुरुगन’ कहा जाने लगा। श्रद्धालुओं का मानना है कि मंदिर का विशिष्ट स्थापत्य (डिज़ाइन) और इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा इतनी सशक्त है कि उसने सुनामी जैसी भयावह प्राकृतिक आपदा से भी मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्रों की रक्षा की।

इसके बाद से भगवान तिरुचेंदूर सुभ्रमण्यम स्वामी को ‘सुनामी को हराने वाले सुभ्रमण्यम स्वामी’ और ‘सुनामी विजयशाली सुभ्रमण्यम स्वामी’ के नाम से भी जाना जाने लगा। यह मान्यता आज भी भक्तों के बीच गहराई से रची-बसी हुई है और मंदिर की धार्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाती है।

वर्तमान समय में तिरुचेंदूर सुभ्रमण्यम स्वामी मंदिर एक प्रमुख और प्रसिद्ध आध्यात्मिक तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित हो चुका है। यहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान मुरुगन के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। विशेष रूप से त्योहारों, विशेष धार्मिक अवसरों और छुट्टियों के दौरान मंदिर में दसियों हजार भक्त दर्शन कर भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।-------------

हिन्दुस्थान समाचार / Dr. Vara Prasada Rao PV

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