भारत के कृषि क्षेत्र में प्राकृतिक खेती ला सकती है क्रांतिकारी बदलाव: प्रधानमंत्री

युगवार्ता    03-Dec-2025
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी साउथ इंडिया नेचुरल फार्मिंग समिट 2025 में किसानों से बातचीत करते हुए (फाइल फोटो)


नई दिल्ली, 3 दिसंबर (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को देशवासियों से प्राकृतिक खेती अपनाने और इसे बढ़ावा देने की अपील की है। उन्होंने कहा कि यह न केवल कृषि की लागत में कमी लाता है, बल्कि मिट्टी की सेहत, पर्यावरण संरक्षण और किसानों की आय बढ़ाने में भी सक्षम है। प्रधानमंत्री ने अपने आधिकारिक लिंक्डइन पोस्ट में विस्तृत लेख साझा किया, जिसमें उन्होंने हाल ही में कोयंबटूर में आयोजित साउथ इंडिया नेचुरल फार्मिंग समिट 2025 में शामिल होने के अनुभव और भारत में प्राकृतिक खेती की संभावनाओं पर विचार प्रस्तुत किए।

प्रधानमंत्री ने लेख में बताया कि उन्होंने कुछ माह पहले तमिलनाडु के किसानों के एक समूह ने उनसे मुलाकात की और प्राकृतिक खेती के अपने नवाचारी तरीकों के बारे में विस्तार से बताया। इसी दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री को कोयंबटूर में होने वाले प्राकृतिक खेती सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया था। प्रधानमंत्री ने किसानों का यह आमंत्रण स्वीकार करते हुए 19 नवंबर को इस सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने कहा कि परंपरागत रूप से एमएसएमई हब माने जाने वाले कोयंबटूर में प्राकृतिक खेती पर ऐसा बड़ा आयोजन होना, अपने आप में कृषि जगत की नई सोच, नए आत्मविश्वास और भविष्य की दिशा को दर्शाता है।

अपने लेख में प्रधानमंत्री ने कहा कि प्राकृतिक खेती भारत की प्राचीन कृषि-ज्ञान परंपरा और आधुनिक पारिस्थितिक सिद्धांतों का समन्वित रूप है। इसमें बिना रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के फसलों की खेती की जाती है। प्राकृतिक खेती में फसलों, पेड़ों और पशुधन को एक ही खेत में सहजीवी रूप से विकसित होने दिया जाता है, जिससे जैव विविधता और मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। इसके साथ ही खेत के अवशेषों के पुनर्चक्रण, मल्चिंग और प्राकृतिक पोषक तत्वों के उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता दीर्घकालीन रूप से सुधरती है।

प्रधानमंत्री ने सम्मेलन में मिले किसानों और कृषि-उद्यमियों की प्रेरक कहानियों का उल्लेख करते हुए लिखा कि विविध पृष्ठभूमियों से आए लोग-वैज्ञानिक, युवा स्नातक, एफपीओ प्रमुख, पारंपरिक किसान और यहां तक कि उच्च वेतन वाली कॉर्पोरेट नौकरियां छोड़कर खेती में लौटे लोग आज प्राकृतिक कृषि के क्षेत्र में नए मॉडल स्थापित कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि एक किसान 10 एकड़ में केले, नारियल, पपीता, काली मिर्च और हल्दी की मल्टी-लेयर फार्मिंग करते हैं, साथ ही 60 देशी गायें, 400 बकरियां और देसी मुर्गीपालन का भी संचालन करते हैं। एक अन्य किसान देशी धान किस्मों जैसे ‘मपिल्ली सांबा’ और ‘करुप्पु कवूनी’ को संरक्षित कर रहे हैं और उनसे मूल्यवर्धित उत्पाद- हेल्थ मिक्स, पफ्ड राइस, चॉकलेट और प्रोटीन बार बना रहे हैं।

एक प्रथम पीढ़ी के स्नातक किसान 15 एकड़ में प्राकृतिक खेती का संचालन करते हैं और 3,000 से अधिक किसानों को प्रशिक्षण दे चुके हैं, जबकि उनका समूह हर महीने 30 टन सब्जियां आपूर्ति करता है। कुछ एफपीओ संचालकों ने कसावा (टैपिओका) किसानों की मदद करते हुए कसावा-आधारित उत्पादों को बायोएथेनॉल और कम्प्रेस्ड बायोगैस जैसी हरित ऊर्जा के स्रोत के रूप में बढ़ावा दिया है।

प्रधानमंत्री ने लिखा कि सम्मेलन में मिले कई कृषि नवप्रवर्तक इस बात का प्रमाण हैं कि विज्ञान और स्थिरता को एक साथ मिलाकर बड़े स्तर पर कृषि परिवर्तन संभव है। उदाहरण के तौर पर समुद्री शैवाल आधारित जैव उर्वरक बनाने वाले एक उद्यमी ने 600 मछुआरों को रोजगार दिया है। एक अन्य विशेषज्ञ ने पोषक तत्वों से भरपूर बायोचार विकसित किया है, जो मिट्टी की गुणवत्ता और जल धारण क्षमता में सुधार करता है।

प्रधानमंत्री ने अपने लेख में सरकार के उन प्रयासों का भी उल्लेख किया जो प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। पिछले वर्ष शुरू हुआ राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन अब तक लाखों किसानों को इससे जोड़ चुका है। देशभर में हजारों हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती अपनाई जा रही है। उन्होंने कहा कि पीएम-किसान, कर्ज सुविधा का विस्तार, निर्यात को बढ़ावा और किसान क्रेडिट कार्ड को पशुपालन तथा मत्स्य पालन तक विस्तारित करने जैसे उपाय प्राकृतिक खेती की दिशा में गति प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि प्राकृतिक खेती ‘श्री अन्न’ (मिलेट्स) को बढ़ावा देने की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता से भी गहराई से जुड़ी है और यह सुखद है कि बड़ी संख्या में महिला किसान इस आंदोलन की अगुवाई कर रही हैं।

प्रधानमंत्री ने चेताया कि पिछले कुछ दशकों में रासायनिक खादों और कीटनाशकों पर अत्यधिक निर्भरता से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति, नमी और दीर्घकालिक स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। साथ ही खेती की लागत लगातार बढ़ी है। प्राकृतिक खेती इन सभी चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करती है। पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत और मल्चिंग जैसे पारंपरिक उपाय मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं, जलवायु परिवर्तन और अनिश्चित मौसम के खिलाफ फसलों को अधिक सुदृढ़ बनाते हैं और लागत कम करते हैं।

उन्होंने किसानों से अपील की कि वे ‘एक एकड़, एक सीजन’ के फार्मूले से शुरुआत करें। छोटे स्तर पर मिले सकारात्मक परिणाम बड़े पैमाने पर अपनाने का आत्मविश्वास देंगे। उन्होंने कहा कि जब पारंपरिक ज्ञान, वैज्ञानिक अनुसंधान और संस्थागत सहायता एक साथ आती हैं, तब प्राकृतिक खेती एक व्यवहार्य और रूपांतरकारी मॉडल बन जाती है।

प्रधानमंत्री ने देशवासियों से आग्रह किया कि वे एफपीओ के माध्यम से प्राकृतिक खेती से जुड़ें या इस क्षेत्र में स्टार्टअप स्थापित करने के अवसर तलाशें। उन्होंने कहा कि कोयंबटूर में किसानों, विज्ञान, उद्यमिता और सामूहिक प्रयास का जो संगम देखने को मिला, वह अत्यंत प्रेरणादायक है और इससे भारत के कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों को भविष्य में नई दिशा मिलेगी।

प्रधानमंत्री ने अंत में कहा कि यदि कोई व्यक्ति या समूह प्राकृतिक खेती पर नवाचारी कार्य कर रहा हो तो उन्हें इसकी जानकारी अवश्य दें, ताकि ऐसे प्रयासों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहन मिल सके।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार

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