
-आक्रांताओं के किए अपमान का परिमार्जन है, लंबे संघर्ष के बाद जन्मभूमि मंदिर का निर्माण : चम्पत राय
अयोध्या, 31 दिसंबर (हि.स.)। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा आयोजित द्वितीय प्रतिष्ठा द्वादशी समारोह में बुधवार को ट्रस्ट के महासचिव चम्पतराय ने जन्मभूमि मंदिर व अयोध्या का विस्तृत परिचय दिया। उन्होंने कहा कि यद्यपि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार आज वर्ष 2025 का अंतिम दिन 31 दिसंबर है। भारतीय पंचांग का विचार करें तो आज पौष शुक्ल द्वादशी है| 02 वर्ष पूर्व आज ही के दिन जन्मभूमि मंदिर में श्रीराम लला विग्रह की प्रतिष्ठा हुई थी। इसलिए यह दिन संपूर्ण हिंदुत्व के गौरव का दिन है। यह दिन जन्मभूमि स्थान प्राप्त करने के लिए हुए लंबे संघर्ष की विजय का प्रतीक बना है।
उन्होंने राम मंदिर और समारोह के परिचय में कहा इस वर्ष पांच दिवसीय आयोजन किया गया है| हमारे ट्रस्टी कर्नाटक के उडुपी कृष्ण मठ के जगतगुरु माध्वाचार्य जी 5 दिन से यहां पूजन कर रहे थे। आज वह पूजन पूर्ण हुआ| अयोध्या के ही जगतगुरु रामदिनेशाचार्य महाराज भगवान राम का गुणगान कथा के माध्यम से कर रहे हैं। अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे हैं। 25 नवंबर को रामलला मंदिर के मुख्य शिखर पर ध्वजारोहण हुआ था। आज राजनाथ सिंह के हाथों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सान्निध्य में, अयोध्या के 25-30 संत की उपस्थिति में ध्वजारोहण किया गया। अभी 6 मंदिरों में क्रमानुसार एक-एक करके उचित समय पर वह ध्वजारोहण किए जाएंगे।
इस मंदिर को प्राप्त करने के लिए यहां का हिंदू समाज यहां के संत महात्मा 500 वर्ष से प्रयास कर रहे थे| जब जैसी स्थिति हुई वैसा कार्य हुआ। 40 साल के प्रयत्नों से यह परिस्थितियों पैदा हुई कि देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने इस स्थान को भगवान को समर्पित कर देने का निर्णय दिया और लगभग 70 एकड़ का यह मैदान भगवान को समर्पित हो गया। प्रारम्भ से ही विचार था कि मंदिर ऐसा बने जो 1000 साल तक खड़ा रहे। मंदिर के निर्माण में आईआईटी गुवाहाटी, आईआईटी दिल्ली के सेवानिवृत्त डायरेक्टर, आईआईटी गुवाहाटी के वर्किंग डायरेक्टर, आईआईटी सूरत के वर्किंग डायरेक्टर, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी मद्रास, आईआईटी बॉम्बे के स्ट्रक्चर इंजीनियर के प्रोफेसर, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर और इंजीनियर, नेशनल जिओ रिसर्च इंस्टीट्यूट हैदराबाद के टीम डायरेक्टर्स ने पूरा सहयोग दिया। इन सब के सामूहिक चिंतन, सामूहिक विवेक का प्रमाण यह मंदिर है। प्रधानमंत्री की इच्छानुसार सूर्यवंशी राम के जन्म के समय दोपहर 12 बजे सूर्य देव की किरणें रामलला के ललाट पर तिलक करें| इसको इसरो ने स्वीकार किया। प्रतिवर्ष रामनवमी के दिन 4 मिनट के लिए सूर्य देव की किरणें रामलला के ललाट को प्रकाशित करती हैं। यह विचार हुआ कि यहां संपूर्ण भारत का दर्शन होना चाहिए। दक्षिण भारत में मंदिर के चारों ओर एक परकोटा बनाया जाता है। उसी प्रकार 800 मीटर लंबाई का आयताकार परकोटा यहां बनाया गया है। यह 14 फीट चौड़ाई में है अत्यधिक भीड़ का नियंत्रण करने में इसकी बहुत बड़ी भूमिका होगी। यहां पंचायतन पूजा, पांच देवताओं की सामूहिक पूजा की व्यवस्था की गई।
लक्ष्मण शेषनाग के अवतार हैं इसलिए मंदिर का नाम है शेषावतार
राम को राम महर्षि विश्वामित्र, महर्षि वशिष्ठ ने बनाया| युद्ध का विजय मंत्र महर्षि अगस्त ने दिया। राम का जीवन समाज के सामने सबसे पहले प्रथम कवि महर्षि वाल्मीकि ने प्रस्तुत किया। चारों महर्षियों के नाम पर एक-एक मंदिर की रचना की गई है। साथ ही एक मंदिर निषाद राज के लिए, गुरु की आज्ञा से एक वनवासी महिला राम की प्रतीक्षा में बैठी उस माता शबरी को भी एक मंदिर दिया गया है। भगवान के चरणों से स्पर्श होकर एक शिला से नारी प्रकट हो गई एक मंदिर अहिल्या का बनाया गया। सीता हरण रोकने का प्रयास करने वाले प्रथम बलिदानी जटायु को भी स्थापित किया गया है। एक अंतिम प्राणी उसका नाम है गिलहरी, एक स्थान गिलहरी को मिला है। उत्तर भारत में महात्मा तुलसीदास ने राम का जीवन अवधी भाषा में लिखा एक मंदिर उनका भी है। भारत की तमाम सांस्कृतिक परंपरा का ज्ञान हो इस लिए वर्टिकल दीवार पर भगवान राम के जीवन से जन्म से लेकर राज्याभिषेक तक के त्रिआयामी म्यूरल लगाए गए।
यात्रियों की सम्पूर्ण सुविधा का ध्यान रखा गया है। पर्यावरण का विचार किया गया है। 02 वर्षों से 22 जनवरी 24 के बाद मैं ऐसा मानता हूं 80 हजार से एक लाख श्रद्धालु प्रतिदिन दर्शन करते हैं। कुंभ मेला के काल में 40 दिन तक चार लाख लोगों का औसत है। इस सिस्टम का लाभ यह मिला कि कोई दुर्घटना शब्द यहां अभी तक प्रयोग में न आया। यह सामान्य मंदिर नहीं है यह हिंदुस्तान के सम्मान का मंदिर है।
हिन्दुस्थान समाचार / पवन पाण्डेय