नवर्ष की शुरुआत गुरु-प्रदोष का दुर्लभ संयोग से, उपवास में रहेंगे बाबा महाकाल होगी विशेष पूजा

युगवार्ता    31-Dec-2025
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भगवान महाकाल की भस्म आरती


भगवान महाकाल का राजा स्वरूप में श्रृंगार


उज्जैन, 30 दिसम्बर (हि.स.)। नववर्ष 2026 की शुरुआत गुरु-प्रदोष के दुर्लभ संयोग के साथ हो रही है। नववर्ष का पहला आशीर्वाद लेने के लिए श्रद्धालु उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकाल के दरबार में चलित भस्म आरती के माध्यम से दर्शन के लिए पहुंचेंगे। पूरे देश में जहां नववर्ष का उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा, वहीं कालों के काल बाबा महाकाल इस अवसर पर उपवास रखेंगे और संध्या आरती में उन्हें विशेष भोग अर्पित किया जाएगा।

दरअसल, इस बार नववर्ष की शुरुआत प्रदोष व्रत के साथ हो रही है। मान्यता के अनुसार उज्जैन के राजा भगवान महाकाल भी भक्तों की तरह इस दिन उपवास रखते हैं और उन्हें विशेष भोग अर्पित किया जाता है। यह प्रदोष व्रत नव वर्ष के पहले दिन गुरुवार को पड़ रहा है, जिसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जाता है। धार्मिक पंचांग के अनुसार त्रयोदशी तिथि का आरंभ सुबह 1:47 बजे होगा, जबकि इसका समापन रात 10:22 बजे होगा। वहीं प्रदोष काल शाम 5:35 बजे से रात 8:19 बजे तक रहेगा। इसी कारण इस दिन बाबा महाकाल उपवास रखेंगे और मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी।

संध्या आरती में लगेगा विशेष भोगमहाकालेश्वर मंदिर के पुजारी महेश गुरु ने बताया कि प्रदोष व्रत के अवसर पर विशेष पूजा और फलाहार का विधान है। इस दिन भगवान महाकाल सुबह नैवेद्य के रूप में फलाहार ग्रहण करते हैं, जबकि संध्या आरती के समय विशेष भोग अर्पित किया जाता है। सामान्य दिनों में भगवान को सुबह नियमित भोग लगाया जाता है, लेकिन प्रदोष व्रत पर यह परंपरा अलग होती है। मान्यता है कि बाबा महाकाल के दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

गुरु प्रदोष व्रत का विशेष महत्वपुजारी महेश गुरु ने बताया कि गुरुवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है। इस दिन विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करने से साधक को विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि गुरु प्रदोष व्रत से शत्रुओं पर विजय मिलती है, जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और भगवान शिव की कृपा से दुख, तनाव व कष्ट समाप्त होते हैं। साथ ही यह व्रत दांपत्य जीवन में मधुरता लाने और वैवाहिक कलह को शांत करने में भी सहायक माना गया है।

प्रदोष व्रत का धार्मिक महत्वप्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत पर आनंद तांडव करते हैं। इस समय की गई पूजा-अर्चना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता के मार्ग भी प्रशस्त करता है।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर

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