आईसीसीएस में डॉ. ओशीन शर्मा और डॉ. एन. राजगोपाल की पुस्तक हुआ का विमोचन

युगवार्ता    06-Dec-2025
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आईसीसीसी के कार्यक्रम में पुस्तकों का विमोचन करते प्राध्यापक यशवंत पाठक, धर्मशाला स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. एन राजगोपाल, अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र, दिल्ली के अध्यक्ष नितिन अग्रवाल व अन्य


आईसीसीसी के कार्यक्रम में पुस्तकों का विमोचन करते प्राध्यापक यशवंत पाठक, धर्मशाला स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. एन राजगोपाल, अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र, दिल्ली के अध्यक्ष नितिन अग्रवाल व अन्य


नई दिल्ली, 6 दिसंबर (हि.स.)। राजधानी दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र (आईसीसीएस) के केशवकुंज स्थित सभागार में शनिवार को अमेरिका में सांस्कृतिक अध्ययन सहित चार विषयों में शोध उपाधि प्राप्त कर चुकीं विदुषी डॉ. ओशीन शर्मा की पुस्तक ‘एकल्चररेशन ऑफअमेरिंडियंस’ और हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. एन राजगोपाल की पुस्तक ‘सेक्रेड स्टोरीऑफ लैंडस्केप्स’ का विमोचन किया गया। इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न भागों से आए शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और साहित्यप्रेमियों मौजूद रहे।

समारोह में दक्षिणी फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के प्राध्यापक एवं प्रख्यात लेखक यशवंत पाठक, अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र, दिल्ली के अध्यक्ष नितिन अग्रवाल सहित अनेक विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का मंच संचालन केंद्र के सचिव विवेक पौचरी ने किया।

इस अवसर पर डॉ. ओशीन शर्मा ने अपने गुरु एवं मार्गदर्शक डॉ. एन. राजगोपाल के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी यह पुस्तक 19वीं शताब्दी के मूल अमेरिकी लेखकों की आत्मकथाओं, भाषणों और जीवन कथाओं के आधार पर यह विश्लेषण करती है कि किस प्रकार यूरोपीय उपनिवेशवाद के दौर में वहां के मूल निवासी समुदायों को गहरे धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दबावों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि इस शोध में भाषा, धर्म, शिक्षा, पहचान और सामुदायिक जीवन में आए परिवर्तनों का सूक्ष्म अध्ययन किया गया है। यह पुस्तक उस मूल प्रश्न को सामने लाती है कि जब कोई प्रभुत्वशाली संस्कृति किसी समुदाय की पहचान को बदलने पर बल देती है, तब शारीरिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से जीवित रहने का वास्तविक अर्थ क्या होता है। इसमें सांस्कृतिक रूपांतरण सिद्धांत, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और मूल निवासियों के लेखन का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। साथ ही यह भी उल्लेख है कि समय के साथ ‘मूल भारतीय’ से ‘मूल अमेरिकी’ जैसी शब्दावली में परिवर्तन कैसे हुआ।

केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला के प्राध्यापक डॉ. एन. राजगोपाल ने कहा कि यह उनके लिए अत्यंत गर्व और हर्ष का विषय है कि उनकी शोध छात्रा डॉ. ओशीन शर्मा ने गहन अध्ययन, चिंतन और परिश्रम के माध्यम से इतनी महत्वपूर्ण विद्वतापूर्ण कृति का सृजन किया है। यह पुस्तक मूल अमेरिकी समुदायों की सांस्कृतिक यात्रा का अत्यंत संवेदनशील, सूक्ष्म और तथ्यपरक अध्ययन है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि यह समुदाय सांस्कृतिक संपर्क, अनुकूलन, संघर्ष और परिवर्तन की जटिल प्रक्रियाओं से कैसे गुजर रहा है।

उन्होंने कहा कि परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाते हुए अपनी पहचान और सांस्कृतिक मूल्यों को बचाए रखना आसान नहीं होता, लेकिन यह पुस्तक दर्शाती है कि मूल निवासी समुदाय किस प्रकार अपने इतिहास, स्मृतियों और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित कर रहे हैं। उन्होंने इसे मूल निवासी अध्ययन और अंतर-सांस्कृतिक शोध के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान बताया। दक्षिणी फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के प्राध्यापक यशवंत पाठक ने कहा कि डॉ. ओशीन शर्मा पर सभी को गर्व होना चाहिए।

उन्होंने बताया कि एक विषय में शोध उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने तीन अन्य विषयों में भी शोध किया है और वर्तमान में वह मूल अमेरिकी समुदायों के साथ प्रत्यक्ष रूप से कार्य कर रही हैं। वहां के मूल निवासी समाज ने भी उनके कार्य को सम्मान और कृतज्ञता के साथ स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक पढ़ने पर यह स्पष्ट होता है कि विश्व की प्राचीन सभ्यताओं, विशेषकर आदिवासी संस्कृतियों की सोच में गहरी समानता है। ईश्वर की अवधारणा, देवी-देवताओं और मानव के आपसी संबंधों को लेकर भारतीय परंपरा और मूल निवासी परंपराओं में विशेष साम्य दिखाई देता है।

अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र, दिल्ली के अध्यक्ष नितिन अग्रवाल ने दोनों पुस्तकों के लिए लेखकों को बधाई देते हुए कहा कि संस्था का मूल उद्देश्य ही दुनिया भर की मूल निवासी परंपराओं, प्राचीन संस्कृतियों और सांस्कृतिक धरोहर पर होने वाले गंभीर शोध को मंच प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि ऐसे विद्वान, शोधकर्ता और लेखक आगे आकर इन विषयों पर निरंतर लेखन करें, ताकि विश्व समुदाय इन प्राचीन संस्कृतियों के महत्व को ठीक से समझ सके। ---------------

हिन्दुस्थान समाचार / प्रशांत शेखर

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