वंदे मातरम् मां भारती को परतंत्रता से मुक्त कराने का पवित्र संकल्प थाः प्रधानमंत्री

युगवार्ता    08-Dec-2025
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सोमवार को लोकसभा में बोलते हुए


नई दिल्ली, 8 दिसंबर (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को लोकसभा में वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में विशेष चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि इस राष्ट्रगीत की 150 वर्ष की यात्रा संघर्ष, प्रेरणा और अनेक ऐतिहासिक पड़ावों से भरी रही है। उन्होंने कहा कि जब वंदे मातरम् के 50 वर्ष पूरे हुए थे, तब देश गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था और जब 100 वर्ष हुए, तब देश आपातकाल की जंजीरों में बंधा था। उस कालखंड में संविधान का गला घोटा गया और देशभक्तों को जेल में डाल दिया गया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम् वह मंत्र है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पूरे देश को एकता, वीरता और बलिदान की शक्ति दी। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद जब ब्रिटिश शासन अत्याचार और दमन बढ़ा रहा था, तब बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने वंदे मातरम् के माध्यम से अंग्रेजी शासन के अभियान—'गॉड सेव द क्वीन'—का सशक्त जवाब दिया। अंग्रेज इतने भयभीत हुए कि उन्हें इस गीत पर प्रतिबंध लगाने और इसके प्रकाशन को रोकने के लिए कानून बनाने पड़े।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वंदे मातरम् सिर्फ राजनीतिक संघर्ष का नारा नहीं था, बल्कि मां भारती को परतंत्रता से मुक्त कराने का पवित्र संकल्प था। अंग्रेज़ समझ गए थे कि 1857 के बाद भारत पर नियंत्रण आसान नहीं रहेगा, इसलिए उन्होंने बंगाल को केंद्र बनाकर 'फूट डालो और राज करो' की नीति को आगे बढ़ाया। ऐसे समय में बंगाल की बौद्धिक शक्ति और वंदे मातरम् का उदय पूरे देश के लिए नई ऊर्जा लेकर आया।

उन्होंने कहा कि आज देश वंदे मातरम् के 150 वर्ष, सरदार वल्लभभाई पटेल और भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती, और गुरु तेग बहादुर के 350वें शहादत दिवस जैसे ऐतिहासिक अवसरों का साक्षी है। यह कालखंड भारतीय इतिहास की प्रेरक घटनाओं को फिर से स्मरण करने का अवसर प्रदान करता है।

मोदी ने कहा कि वंदे मातरम् ने 1947 में देश को आजादी दिलाने वाले आंदोलन को दिशा दी। आज जब सदन इस चर्चा में शामिल है, तब यहां पक्ष–प्रतिपक्ष नहीं है, बल्कि यह अवसर है उस ऋण को स्वीकार करने का, जिसके कारण हम लोकतंत्र की इस उच्च संस्था में बैठे हैं। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् के 150 वर्ष देश और संसद दोनों के लिए गौरव को पुनः स्थापित करने का महत्वपूर्ण अवसर हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार

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