मध्य प्रदेश की भरेवा शिल्प कला विरासत को मिली राष्ट्रीय पहचान

युगवार्ता    09-Dec-2025
Total Views |
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मप्र के भरेवा शिल्पकार बलदेव वाघमारे को किया सम्मानित


- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मप्र के भरेवा शिल्पकार बलदेव वाघमारे को किया सम्मानित

भोपाल, 09 दिसम्बर (हि.स.)। मध्य प्रदेश की पारंपरिक जनजातीय भरेवा शिल्प कला की विरासत को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मंगलवार को नई दिल्ली में मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के भरेवा शिल्पकार बलदेव वाघमारे को राष्ट्रीय हस्तशिल्प पुरस्कार से सम्मानित किया। इस अवसर पर केन्द्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह उपस्थित थे। उल्लेखनीय है कि हाल में भरेवा धातु शिल्प को जीआई टैग भी मिला है।

क्या है भरेवा

स्थानीय बोली में भरेवा का मतलब है भरने वाले। भरेवा कलाकार गोंड जनजाति की एक उप-जाति से संबंधित हैं, जो पूरे भारत में, खासकर मध्य भारत में फैली हुई है। धातु ढलाई का कौशल एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होता रहता है। भरेवा धातु शिल्प की परंपरा गोंड आदिवासी समुदाय के रीति-रिवार्जा और परंपराओं के समानांतर चलती है। यह परंपरा और रीति-रिवाज का मिश्रण है। भरेवा कारीगर देवताओं की प्रतीकात्मक छवियों को जानते हैं। वे गहने भी बनाते हैं जैसे अंगूठियां और कटार, जो गोंड परिवारों में शादी की रस्मों के लिए जरूरी है। कुछ गहने विशेष रूप से आध्यात्मिक प्रमुखों या तांत्रिकों के लिए बनाए जाते हैं जैसे कलाईबंद और बाजूबंद। कंगन की विशेष कारीगरी देखते ही बनती है।

इसके अलावा, सजावटी कलाकृतियों और उपयोग की वस्तुओं की एक विस्तृत श्रृंखला जैसे बैलगाड़ियां, मोर के आकार के दीपक, घंटियां और घुंघरु, दर्पण के फ्रेम कुछ कलाकृतियों ने अंतरराष्ट्रीय शिल्प बाजार में पहचान बनाई है। भरेवा लोगों की आबादी मुख्य रूप से बैतूल जिले के कुछ इलाकों में केंद्रित है। जो राजधानी भोपाल से लगभग 180 किमी दूर है। बलदेव ने भरेवा कारीगरों की घटती संख्या में बढ़ोतरी की है। उन्होंने अपनी लगन से बैतूल के टिगरिया गांव को शिल्प ग्राम बना दिया है। अब भरेवा परिवार इस अनोखी शिल्प कला का अभ्यास करते हैं।

जनसम्पर्क अधिकारी अवनीश सोमकुवर ने बताया कि भरेवा लोगों को गोंड समुदाय के धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं का गहरा जान है। वे जिन देवताओं की मूर्तियां बनाते हैं, उनमें मुख्य रूप से हिंदू धर्म के सर्वोच्च भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती हैं। दूसरे हैं ठाकुर देव जो चमत्कारी घोड़े पर सवार होकर गांव की रक्षा करते हैं और माना जाता है कि वे इसे आपदाओं से बचाते हैं। शांति, समृ‌द्धि, खुशी और स्वास्थ्य के दूसरे देवता भी हैं। इस छोटे से टिगरिया गांव में बलदेव भरेवा ने इस परंपरा को जिंदा रखा है। उन्होंने यह कला अपने पिता से सीखी। उन्होंने एक मास्टर कारीगर के तौर पर नाम कमाया। बलदेव का परिवार अपनी पारंपरिक समझ, कलात्मक नजर और कड़ी मेहनत से हासिल किए गए हुनर पर गुजारा करता है।

------------------

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर

Tags